कलारचना

डराता है यह पिज्जा

मुंबई | संवाददाता: अक्षय अक्किनेनी की फिल्म पिज्जा असल में तमिल फिल्म की रिमेक है, ऐसे में तमिल फिल्मों की छौंक-बघार तो इस फिल्म में है लेकिन अच्छा ये है कि इस फिल्म में एक अच्छी कहानी को पेश करने की कोशिश की गई है. वरना तो हिंदी में अब तक आने वाली अधिकांश हारर फिल्मों में कोई कहानी नहीं होती और भूत या डराने वाला पात्र इतना हास्यास्पद होता है कि उसे देख कर बच्चे तक हंसने लगते हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि पिज्जा हारर फिल्म देखने वालों को थोड़ी राहत देता है.

फिल्म में अक्षय ओबेराय एक पिज्जी डिलेवरी ब्वाय की भूमिका में हैं तो पार्वती ओमनीकुट्टन एक हारर फिल्मों की लेखिका बनी है. दोनों की शादी होती है और कुछ ही दिनों के भीतर अक्षय ओबेराय एक बंगले में पिज्जा देने पहुंचते है लेकिन किसी तरह उस बंगले के भीतर बंद हो जाते हैं. इसके बाद अक्षय अपनी पार्वती को वहां मदद के लिये बुलाते हैं.

फिल्म की कुल जमा कहानी तो इतनी भर ही है लेकिन कहानी के साथ जो उप कथाएं और दृश्य बुने गये हैं, वह दर्शकों को बांधे हुये हैं. एक के बाद एक रोचक दृश्य फिल्म में हैं लेकिन फिल्म का जो अंत होता है, वह दर्शकों को मायूस कर सकता है. फिल्मकार को इस बारे में विचार करना चाहिये था कि आखिर किसी भी फिल्म का अंतिम हिस्सा ही दर्शक अपने मन-मस्तिष्क में जमा कर सिनेमाघर से बाहर आता है. ऐसे में फिल्म का अंत निराश करता है.

फिल्म का संगीत अच्छा है और थ्रीडी इफेक्ट के साथ मिल कर बेहतर वातावरण बनाता है.

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