तकनीक

पहला परमाणु बिजली घर

ओबनिंस्क | एजेंसी: सोवियत वैज्ञानिकों ने 60 साल पहले 26 जून, 1954 को दुनिया का पहला परमाणु विद्युत संयत्र एक ग्रिड से जोड़ा था. इसकी क्षमता संभवत: पांच मेगावॉट थी. दुनिया के सबसे पहले परमाणु विद्युत संयंत्र, ओबनिंस्क संयंत्र को 2002 में बंद कर दिया गया. अब इसे संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है.

इस संयंत्र के माध्यम से सोवियत वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक और साध्य ऊर्जा की एक नई दुनिया ही खोल दी थी. इस संयंत्र के माध्यम से परमाणु ऊर्जा सैन्य महकमे से निकलकर असैन्य अनुप्रयोगों तक पहुंची.

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने भी इस संयत्र का दौरा किया था.

यहां एक वरिष्ठ शोधकर्ता मिखाइल गयादिन ने बताया, “केवल आठ या नौ महीनों में बना रिएक्टर इतनी ऊर्जा उत्पादित कर सकता है जिससे 50,000 कप कॉफी उबाली जा सकती है.”

सोवियत परमाणु बम के जनक आइजर कुर्चातोव ने एकल रिएक्टर एएम-1 बनाया था. 1950 के दशक में शांतिपूर्ण प्रयोजनों के लिए इसका रूपांतरण कालुगा औद्योगिक क्षेत्र के ओबनिंस्क परमाणु ऊर्जा संयत्र विकसित करने में निर्णायक साबित हुआ.

यह रिएक्टर चेर्नोबिल-टाईप आरबीएमके उच्च ऊर्जा रिएक्टरों का अग्रदूत था. ओबनिंस्क महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस समय के अन्य ग्रेफाइट रिएक्टरों से अलग था. इसका प्रयोग हथियार बनाने के लिए नहीं बल्कि बिजली बनाने में किया गया.

इसमें ग्रेफाइट का प्रयोग गर्मी को नियंत्रित करने के आसाधारण गुणों के कारण किया गया. हालांकि तमिलनाडु के कु डनकुलम संयत्र में स्थापित रूसी वीवीईआर जैसे पानी के दबाव वाले रिएक्टर, आरबीएमके रिएक्टरों से सुरक्षित डिजाइन हैं.

ओबनिंस्क संयंत्र के पूरे जीवन काल में कोई दुर्घटना नहीं हुई. इसे तकनीकी कारणों से नहीं बल्कि आर्थिक कारणों से बंद किया गया था.

गयादिन ने कहा, “सोवियत युग खत्म होने बाद का वक्त आर्थिक रूप से कठिन समय था.”

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