छत्तीसगढ़

टीकाकरण में पिछड़ा छत्तीसगढ़

रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ में 30 फीसदी नवजात टीके से वंचित हो रहें हैं. इसका कारण यह है कि छत्तीसगढ़ में जन्म लेने वाले प्रत्येक नवजात तक स्वास्थ्य विभाग की पहुंच नहीं है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में 47 फीसदी प्रसव आज भी घर में ही हो रहे हैं.

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की साल 2013-14 की रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी रायपुर सहित छह जिले ऐसे हैं, जहां 30 फीसदी से अधिक नवजात शिशुओं को अनिवार्य टीके नहीं लग पा रहे हैं. सालाना समीक्षा बैठक के बाद टीकाकरण कार्यक्रम में लापरवाही बरतने वाले जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को हालांकि चेतावनी पत्र जारी कर दिया गया है.

राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉ. सुभाष पांडे ने बताया, “जिन जिलों में टीकाकरण की स्थिति औसत से कम रही है, उन जिलों के सीएमएचओ को लिखित में चेतावनी पत्र जारी किया गया है. हाल ही में हुई बैठक में टीकाकरण पर समीक्षा हुई थी और रिपोर्ट मेरे पास से ही गई थी. रिपोर्ट में कुछ टंकन की त्रुटियां हैं, जिन्हें सुधारा जाना है.”

टीकाकरण जन्म से एक साल और पांच साल तक लगवाना अनिवार्य है. जन्म से पांच साल तक कुल सात प्रकार के टीके लगते हैं, जो शिशु को बीमारियों से बचाते हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग का मजबूत तंत्र और पहुंच से हजारों बच्चे वंचित रह जा रहे हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्ण टीकाकरण में सबसे खराब स्थिति सुकमा जिले की है, जहां सिर्फ 51.90 फीसदी ही टीकाकरण हुआ. इसके बाद बालोद में 64.20, गरियाबंद में 65.20, राजनांदगांव में 65.50, कवर्धा में 66.30, सूरजपुर में 67.80, महासमुंद 68.50, रायपुर 68.60 टीकाकरण हुआ.

सबसे अच्छी स्थिति दुर्ग, सरगुजा और बेमेतरा जिले की है. रिपोर्ट में यह भी जिक्र है कि मिजल्स के सेकंड डोज का प्रतिशत 50 फीसदी से भी कम रहा है. खसरा के लिए साल 2013-14 में 6 लाख 25 हजार 600 लक्ष्य दिया गया, जबकि सिर्फ 3 लाख 39 हजार ही टीकाकरण हुआ. रिपोर्ट में शून्य से 5 साल तक के 10 बच्चों में डिप्थीरिया , 23 बच्चों में कुकर खांसी और 1346 बच्चों में मिजल्स की पुष्टि हुई है.

हालांकि इसमें जिक्र है कि इस रिपोर्ट को दोबारा सत्यापित करें, क्योंकि रिपोर्ट भारत सरकार को भेजी जानी है. स्वास्थ्य विभाग के अफसर मानते हैं कि इसके लिए जितने दोषी अफसर हैं, उनके परिजन भी हैं, क्योंकि हर शिशु तक, हर टीकाकरण की तारीख पर पहुंच पाना संभव नहीं, इसलिए यह जिम्मेदारी परिजनों की भी है.

डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. शारजा फुलझले का मानना है कि अगर जन्म से 1साल तक के बच्चों का अनिवार्य टीकाकरण नहीं हो रहा है तो यह चिंताजनक है, क्योंकि इससे कई तरह की घातक बीमारियां जन्म ले सकती हैं, जैसे टीबी, पीलिया, हेपेटाइटिस-बी, खसरा, पर्टसिस और डिप्थीरिया.

उनका मानना है कि कई बार परिजन ही लापरवाही करते हैं, एक साल तक टीका लगवाते हैं और उसके बाद फिर स्वास्थ्य केंद्र में बुलाया जाता है तो नहीं आते. इसके लिए जागरूकता बेहद जरूरी है.

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013-14 में सूबे में कुल चार लाख 60 हजार प्रसव हुए और इनमें से सिर्फ 53 फीसदी प्रसव ही स्वास्थ्य केंद्रों में हो सके. 41 फीसदी गर्भवती महिलाएं सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पहुंचीं, जबकि 12 फीसदी ने निजी अस्पतालों का रुख किया, जबकि कुल प्रसव के 21 फीसदी का रिकॉर्ड स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है. यानी साफ है कि जिन बच्चों का जन्म घर पर हुआ, वे अनिवार्य सात टीकों से वंचित रह जाते हैं और फिर यही बीमारियों को जन्म देता है.

बहरहाल, इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सरकार का स्वास्थय महकमा हरकत में आया है.

error: Content is protected !!