सेक्स पर नहीं…
प्राचीन मिस्र की अंतिम फराह शासक क्लियोपेट्रा सप्तम यानी ओलीतिज़ शक्तिशाली महिला थी. उसे सौंदर्य की देवी कहा जाता था लेकिन ऐसा था या नहीं, इस पर आज भी बहस जारी है. हां, यह बात तय है कि उसने जूलियस सीज़र से लेकर अपने जीवन में आये सभी पुरुषो को खूब चकरघिन्नी खिलाई. क्लियोपेट्रा ने किस उम्र से यौन संबंध बनाना शुरू किया, यह नहीं कहा जा सकता पर उनका विवाह जूलियस सीज़र से 22 वर्ष की उम्र में हुआ था. आज उसी मिस्र में यौन सम्बन्ध बनाने की उम्र लडकियों के लिए 18 वर्ष है.
ओमान, क़तर तथा सऊदी अरब में शादी के पश्चात् ही यौन संबंध की अनुमति है. बहरीन में 15 वर्ष की आयु में यौन संबंध बनाया जा सकता है पर शादी आवश्यक है. विभिन्न देशों में वहां की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक हालात के मुताबिक देह संबंधों में सहमति की आयु कानूनी तौर पर तय किये गये हैं. वैसे यह कानूनी कम सामाजिक मुद्दा ज्यादा है. कानूनी तौर पर यौन संबंधों की सहमति की आयु अर्जेंतेनिया में 15, बेल्जियम में 16, हांगकांग में 12, इंडोनेशिया में 16, इजराइल में 16, जापान में 13, मलेशिया में 16, नेपाल में 16, पाकिस्तान में 16 तथा अमरीका एवं ब्रिटेन में 16 वर्ष है.
सामान्य तौर पर सेक्स या यौन क्रिया एक जीव विज्ञानी जरुरत है और माना जाता है कि विवाह इसके लिये एक सामाजिक स्वीकरोक्ति है. भारत की केन्द्रीय काबीना की बैठक ने महिलाओं पर अत्त्याचार के खिलाफ कानून बनाते-बनाते लडकियों के लिए सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र भी तय कर दी है. क्या इस बहस को छेड़ने के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य हो सकता है, इसे देखने की जरुरत है. हालांकि यह बात बहुत साफ है कि जनता के मूल समस्याओं महंगाई, नौकरियों की कमी, स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्चे, भूख, गरीबी, आत्महत्या से यदि बहस को हटा कर ऐसे दूसरे विषयों पर केन्द्रित कर दिया जाये तो मनमोहन सरकार को रणनीतिक फायदा होता दिख रहा है.
इस बहस से समाज के स्वयंभू ठेकेदार और कथित खुलेपन के पैरोकारों को एक मसला मिल गया है. स्वयं केन्द्रीय मंत्रीमंडल भी इस मुद्दे पर बटी हुई है कि इसे 18 वर्ष ही रखा जाये या 16 वर्ष कर दिया जाए. लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा तो यह है कि अत्याचारी को उसकी विकृत मानसिकता से समाज को मुक्ति दिलाना चाहिये न की उम्र के पचड़ो में पड़ना चाहिये. महिलाओ की सुरक्षा तथा उनको बराबरी का हक़ दिलाने के लिये कानून बनना चाहिए.
इस बहस का दूसरा पहलू यह है कि क्या विवाह पूर्व संबंध बनाने की अनुमति प्रदान की जा रही है. हमारे देश में लडकियों के लिये विवाह की आयु 18 वर्ष है. ऐसे में क्यों 16 वर्ष में सहमति की इजाजत देने की कोशिश की जा रही है? यदि कानूनी तौर पर इसे मान्यता दी गई तो सहमति मांगने वाला भी आ खड़ा होगा. तब क्या कीजियेगा. आप तो पीछा करने, घूर कर देखने तथा फब्तियां कसने पर सजा तय करने जा रहे हैं. आरोपी का अधिवक्ता तो यही तर्क देगा कि मेरा मुवक्किल तो सहमत है कि नहीं, यह जानना चाह रहा था.
बेकार की बातों को उछालने के बजाय महिलाओं की सुरक्षा तथा बराबरी का हक दिलाने के लिये कानूनी तथा सामाजिक कदम उठाने चाहिये, जिसे संबंध बनाना है वो तो बनायेगा ही. आवश्यकता है बलात्कार को रोकने की और इससे भी कहीं बड़ी ज़रुरत इस बात की है कि देश के बड़े मुद्दे कैसे सुलझाएं जाएं. भूखे लोगों को रोटी दिये जाने पर बहस की जरुरत है और जनता पर एक के बाद एक थोपे जा रहे टैक्स पर भी. कारपोरेट घरानों के यहां बांदी बन कर फैसला करने वाले अदालतों और धनपशुओं के तलवे चाटने वाले राजनेताओं पर भी बहस करने की जरुरत है. सेक्स की उम्र पर भी बहस कर लीजिएगा लेकिन उससे पहले बरसों से कई मुद्दे अपनी कतार में कातर भाव से खड़े हैं. तो शुरु करें बहस ?