सरिता का यह प्रवाह बना रहे
दंतेवाड़ा| सुरेश महापात्र: ‘छू लो आसमान’ योजना ने दक्षिण बस्तर की तस्वीर बदलने का काम शुरू कर दिया है. यह लगातार तीसरा साल है जब इस बात का विश्वास होने लगा है कि प्रदेश के सुदूर इस क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बल्कि उन्हें संवारने की जरूरत थी. इस साल कक्षा 12वीं की परीक्षा में विज्ञान संकाय से बचेली की सरिता ने प्रदेश के प्रावीण्य सूची में आठवें स्थान पर अपना नाम दर्ज करवाया है. बधाईयों का दौर चल रहा है और दक्षिण बस्तर के बच्चों में सफलता के प्रति विश्वास का माहौल और भी मजबूत हो रहा है. छू लो आसमान योजना अब समूचे प्रदेश के लिए अनुकरणीय बन चुका है. इस योजना के तहत शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों में 98 फीसदी इस साल सफल रहे. जिसमें से करीब 65 फीसदी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए. यह परिणाम प्रदेश को भले ही चौंका रहा हो पर दक्षिण बस्तर के परिप्रेक्ष्य में यह कामयाबी की शुरूआत भर है.
‘सरिता’ की यह सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यों कि यह बस्तर संभाग की इकलौती छात्रा है जिसनें प्रदेश के प्रावीण्य सूची में अपना नाम दर्ज करवाया है. बचेली के बेहद साधारण मध्यम वर्गीय परिवार की इस संतान ने केवल दंतेवाड़ा जिला बल्कि समूचे बस्तर का नाम रौशन किया है. ‘सरिता’ का यह प्रवाह दक्षिण बस्तर में आत्मविश्वास का लहर पैदा करेगा.
पूर्व कलेक्टर ओमप्रकाश चौधरी के कार्यकाल में शुरू की गई ‘छू लो आसमान’ योजना को मिल रही सफलता बस्तर के भविष्य का निर्माण करने की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण कदम साबित होगा. समूचे बस्तर में विज्ञान और अंग्रेजी संकाय में शिक्षकों की कमी चिंता का विषय रही. हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों में गणित, विज्ञान और अंग्रेजी की शिक्षा पर ग्रहण लगा हुआ था. जिले के होनहारों को चयनित कर इस योजना के तहत एक ही स्थान पर शिक्षा देकर उनके भविष्य गढ़ने का यह प्रयास रंग दिखा रहा है. जेईई, एआईट्रिपलई, आईआईटी, पीएमटी, पीईटी, पीएटी जैसी परिक्षाओं की तैयारी करवाने से यहां के बच्चों को दिशा भी मिल रही है. बीते दो बरसों में ऐसे सफल विद्यार्थियों की संख्या 100 के पार जा चुकी है.
‘छू लो आसमान’ योजना ने दक्षिण बस्तर के ऐसे विद्यार्थियों के लिए द्वार खोले जिन्हें पढ़ने की तमन्ना थी. सुविधाओं के अभाव के चलते सफलता हाथ नहीं लग रही थी. ऐसे बच्चों के लिए शिक्षा का बेहतर माहौल बनाने का काम इस योजना ने किया. ओम प्रकाश चौधरी के जाने के बाद कलेक्टर केसी देव सेनापति ने इस योजना को सफल करने और इससे एक कदम आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास शुरू किया है. ‘लक्ष्य’ के तहत जिले के शिक्षित बेरोजगारों को प्रतियोगी परीक्षा के लिए तैयार करवाने और उन्हें उनके सपनों की मंजिल तक पहुंचाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है. आने वाले दिनों में लक्ष्य को लेकर भी सफलता का इंतजार होने लगा है.
बड़ी बात यह है कि इस विपदाग्रस्त क्षेत्र को केवल और केवल इसी राह से विकसित क्षेत्र बनाया जा सकता है. शिक्षा की कमी और स्थानीय प्रतिभाओं को सुविधाओं के अभाव ने नाकामयाबी का दंश दिया. नाकामयाबी ने युवाओं को दिग्भ्रमित किया है. इस क्षेत्र के हर युवा के चाहत है कि वह भी बड़े शहरों के बच्चों की तरह अपनी सफलता की कहानी लिखे. सरिता जैसी लड़कियों को मिल रही कामयाबी ने इस क्षेत्र की पहचान बदलनी शुरू की है. यह तथ्य और भी महत्वपूर्ण है कि जिस इलाके ने आजादी के बाद से केवल दूसरे शहरों की नकल पर ध्यान दिया. उसे अपना बहुत कुछ होते कुछ भी नहीं होने का दंश झेलना पड़ रहा था. क्षेत्र के विकास के लिए औद्योगिक पहल की जरूरत को भी इसी परिप्रेक्ष्य में रेखांकित किया जा सकता है.
चाहे ‘छू लो आसमान हो’ या ‘लक्ष्य’ ऐसी योजनाओं के लिए दंतेवाड़ा जिले को एनएमडीसी, एस्सार जैसी कंपनियों से मिल रही परिक्षेत्रीय विकास निधि यानी सीएसआर की राशि का भी बड़ा योगदान है. यह भी समझना होगा कि अपने क्षेत्र के होनहारों के लिए अपने पैसे का इंतजाम हो सका. जिससे कामयाबी की इबारत लिखी जा रही है. इस क्षेत्र से अब ऐसी पहल बाहर आई है कि उसकी नकल समूचे प्रदेश में होने लगी है. संसाधनों का बेहतर उपयोग और उसके लिए सतत प्रयास की प्रशासनिक इच्छाशक्ति से किसी भी क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर बदली जा सकती है. इसका साक्षात उदाहरण दंतेवाड़ा जिले की छू लो आसमान योजना है. हर कोई चाहता है कि दक्षिण बस्तर में सफलता की ‘सरिता’ का प्रवाह यूं ही बना रहे. जिससे यहां की तस्वीर और तकदीर बदले.