बस्तर

तेंदूपत्ता: पाबंदी हटाएं माओवादी

दंतेवाड़ा | संवाददाता: बस्तर की धरा को नजर लग गई है. यहां होने वाले वनोपज के व्यापार पर माओवादी-पुलिस के संघर्ष और सरकार की योजनाओं का सीधा असर पडऩे लगा है. परिणाम यह है कि अब तेंदूपत्ता का व्यापार बंद होने के कगार पर पहुंच चुका है. ठेकेदारों ने हाथ खींच लिए हैं. सो अब सीधे समितियों के माध्यम से तेंदूपत्ता की तोड़ाई और संग्रहण की जिम्मेदारी है. बाद में उसकी बिक्री होना या ना होना सरकार की जिम्मेदारी होगी.

वर्तमान में माओवादियों के हमलों के बाद दक्षिण-पश्चिम बस्तर में जिस तरह के हालात उत्पन्न हुए हैं, उससे तेंदूपत्ता संग्रहण, विभाग के लिए सबसे बड़ी चिंता बनती दिख रही है. बस्तर में तेंदूपत्ता व्यापार में लगे ग्रहण की बड़ी वजह यहां की परिस्थितियों को माना जा रहा है.

माओवादियों ने पर्चा जारी कर अलग-अलग क्षेत्र में संग्रहण के लिए अपना भाव घोषित कर दिया है. ग्रामीणों पर इस बात को लेकर दबाव भी बनाया हुआ है कि उनके द्वारा मांग की गई दर से नीचे तेंदूपत्ता का संग्रहण ना किया जाए. अगर ग्रामीण चाहें भी तो माओवादियों के दबाव के चलते इस सीजन में तेंदूपत्ता तोड़ाई से होने वाले फायदे से उन्हें वंचित होना पड़ सकता है.

यानी संग्राहकों का सीधा नुकसान होने से अगर कोई रोक सकता है तो वह माओवादी संगठनों के ही प्रभाव से ही संभव है. अंदरूनी इलाकों में माओवादियों के सहयोग के बगैर निहत्थे वनोपज समिति और संग्राहक प्रकृति की संपदा का न तो दोहन कर सकते हैं और ना ही अपने हिस्से का लाभ अर्जित कर सकते हैं.

बस्तर में वनोपज का अकूत भंडार आदिवासियों के जीवन की खुशहाली का संदेश लेकर पहुंचता है. इसके कीमत और आदिवासियों के हक को लेकर सकारात्मक दबाव को गैरवाजिब नहीं माना जा सकता. सरकारी नीति और ठेकेदारी प्रथा के बीच फंसे आदिवासियों और वनोपज संग्राहकों के लिए संवेदनशीलता की दरकार केवल एक पक्ष से नहीं है. सभी पक्षों को इसके लिए अपनी नीति स्पष्ट करनी होगी.

ऐसा नहीं है कि माओवादी पहली बार तेंदूपत्ता को लेकर दबाव बना रहे हैं. हर बार दबाव बनता रहा है पर जिस तरह से दबाव बढ़ रहा है कि उससे वनोपज का व्यापार ही ठप हो सकता है. सरकार वनोपज समितियों के माध्यम से होने वाली वनोपज खरीदी के बाद संग्राहकों के लिए बीमा, बोनस, छात्रवृत्ति और सुविधाएं प्रदान करती है. अगर संग्रहण ही नहीं हो सका तो इन सुविधाओं से भी संग्राहक सीधे तौर पर वंचित होंगे. बस्तर में तेंदूपत्ता व्यवसाय बीते करीब एक दशक से ठेकेदारों के बूते हो रहा है. इसके लिए सरकार ग्लोबल टेंडर करवाती रही है. इस बार इसमें व्यापारियों की जिस तरह से अरुचि प्रदर्शित हुई है यह आने वाले दिनों में बस्तर के वनोपज व्यापार में लगने वाले ग्रहण का अंदेशा जता रही है.

आदिवासियों के हक पर लगने वाले ग्रहण पर केवल सरकार ही नहीं बचा सकती. इसके लिए स्वयं को आदिवासियों का हितैशी मानने और बताने वाले माओवादियों को भी आदिवासियों के हितों का ध्यान रखना होगा. पहली जरूरत संग्रहण के अवरोध को दूर करने की है. इसके बाद बाकि जरूरतों के लिए सकारात्मक पहल करना चाहिए.

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