शुभ्रांशु चौधरी को डिजिटल एक्टिविस्ट अवार्ड
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: भारतीय पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी वर्ल्ड डिजिटल एक्टिविस्ट अवार्ड के लिए चुने गए हैं. लन्दन में आज घोषित इस अवार्ड में श्री चौधरी ने इंटरनेट पर ही एक वोट में इंटरनेट एक्टिविस्ट एडवर्ड स्नोडेन सहित दो और संस्थाओं को भी हराया है. लंदन की इंडेक्स ओन सेंसरशिप नामक संस्था इस अवार्ड का आयोजन प्रति वर्ष करती है
श्री चौधरी मध्य भारत के आदिवासी इलाकों में पिछले कई वर्षों से सीजीनेट स्वर नामक प्रयोग से जुड़े हैं. सीजीनेट स्वर मीडिया को लोकतांत्रिक बनाने का एक प्रयोग है, जहां कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल फोन के माध्यम से अपनी बात कह सकता है जो सीजीनेट स्वर के कम्यूटर में रिकार्ड होने के बाद लोगों तक इंटरनेट और मोबाइल फोन के माध्यम से पहुँच जाता है .
पुरस्कार ग्रहण करते हुए श्री चौधरी ने कहा कि यह पुरस्कार इस प्रयोग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि सीजीनेट स्वर का प्रयोग शार्ट वेव रेडियो को भी इसमें जोड़े बगैर पूरा कर पाना संभव नहीं है और भारत सरकार किसी को भी शार्ट वेव रेडियो के प्रयोग की अनुमति नहीं देता.
वे इस पुरस्कार को ग्रहण करते समय भारत के बाहर लगे शार्ट वेव रेडियो संस्थाओं से मदद की अपील कर रहे हैं. उनका कहना है कि आज मोबाइल फोन के कारण कोई भी भारतीय चाहे वह कितने भी दूर दराज़ के इलाके में रहता हो और कोई भी भाषा बोलता हो पर आज अपनी बात सीजीनेट स्वर के कम्प्यूटर पर रिकार्ड करवाकर पत्रकारों, अधिकारियों और शेष भारतीयों तक पहुँच सकता है. पर उन्ही संदेशों को अधिक जनता तक पहुंचाने के लिए हमें शार्ट वेव रेडियो की ज़रुरत है
अभी दूर दराज़ के इलाके के साथी इन संदेशों को अपने मोबाइल फोन पर सुनते हैं पर मोबाइल फोन पर सुनना काफी महँगा होता है और यदि यही सन्देश शार्ट वेव रेडियो पेर सुनाई दें तो उसे मुफ्त में सुना जा सकता है और इसके बाद अधिक साथी एक दूसरे के संदेशों को सुनकर एक दूसरे की मदद कर सकते हैं .
श्री चौधरी ने आगे कहा कि मध्य भारत के आदिवासी इलाके की मूल समस्या आदिवासियों और मुख्य धारा के भारत के बीच की संवादहीनता है . माओवाद की समस्या इस मूल समस्या का एक परिणाम है
यदि मोबाइल फोन, इंटरनेट और शार्ट वेव रेडियो को जोड़कर हम एक लोकतान्त्रिक मीडिया का प्लेटफार्म बना सकें जहां जंगलों से घिरे दूर इलाकों के रहने वाले और गोंडी जैसी आदिवासी भाषा बोलने वाले (जिसे अधिकाँश अधिकारी या पत्रकार नहीं समझते) व्यक्ति भी अपनी आवाज़ उठा सकें और अपनी समस्याओं का समाधान करवा सकें तो उन्हें हिंसक आन्दोलनों में जुड़ने की ज़रुरत नहीं रह जाएगी .
पहले विदेशी शार्ट वेव रेडियो की मदद से वे भारत सरकार को यह दिखाना चाहते हैं कि लोगों की आवाज़ो को सुनकर, उनकी छोटी छोटी समस्याओं में से कुछ को हल करने से इस समस्या के हल के समाधान की ओर काम शुरू किया जा सकता है .
बीबीसी लन्दन जैसी संस्थाएं जहां श्री चौधरी इस प्रयोग को शुरू करने के पहले काम करते थे इसी तकनीक का प्रयोग करते हैं पर उनका कहना है की बीबीसी या किसी भी मुख्यधारा के मीडिया में क्या खबर है और क्या नहीं, यह शहर में बैठे थोड़े लोग ही तय करते हैं पर ज़रुरत इस बात की है कि आज राजनीति की तरह मीडिया भी लोकतांत्रिक हो और दूर दराज़ के इलाके में बैठा आख़िरी व्यक्ति भी मोबाइल की मदद से अपनी बात आज रख सकता है. ज़रुरत उन आवाजों को सहेजने ( कम्प्यूटर की मदद से) और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने ( शार्ट वेव रेडियो की मदद से) की है . एक बेहतर लोकतंत्र, लोकतांत्रिक मीडिया के बगैर संभव नहीं है.