केजरीवाल: 18 कांटों का ताज
जे के कर
अरविंद केजरीवाल ने 18 कांटों का ताज पहनने की सहमति दे दी है. वही 18 सवाल जो उन्होंने कांग्रेस तथा भाजपा से पूछे थे अब उन्हें पूरे करने की जिम्मेवारी केजरीवाल साहब की है.
सबसे गौर करने वाली बात यह है कि अरविंद केजरीवाल तथा उनके सहयोगियों को कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में बदलाव करे बगैर इस काम को अंजाम देना है. दिल्ली की जनता ने तो केवल विधायिका में बदलाव किया है. ऐसी हालात में केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन कैसे करेंगे यह अपने आप में एक यक्ष प्रश्न है.
आम आदमी पार्टी ने व्यवस्था परिवर्तन का जो वादा किया है उसमें सबसे प्रमुख है कि तीन माह के अंदर बिजली के बिल आधे हो जायेंगे. बिजली के बिल आधे करने के लिये जांच करवाने की बात की गई है. यह स्थापित सत्य है कि यदि बिजली के बिल ज्यादे लिये जा रहें हैं तो वह किसी न किसी के जेब में तो जरूर जा रहा होगा. केजरीवाल को उसे रोकना है वर्तमान कार्यपालिका के द्वारा ही.
यहां पर इस बात का उल्लेख करना गैर वाजिब नहीं होगा कि दुनिया का इतिहास गवाह है कि नौकरशाही में बदलाव लाये बिना क्रांतिकारी कदम नहीं उठाये जा सकते हैं. केजरीवाल की सरकार जब भी बिजली के बिल आधा करने की कोशिश करेगी तभी उसके खिलाफ कई दानव उठ खड़े होएंगे जिनसे निपटना आम आदमी के बस की बात नहीं है. लेकिन यह भी सत्य है कि आम आदमी ने आप को जो वोट दिया है उसके मूल में बिजली के बिल आधे करना एक प्रमुख कारण है.
आम आदमी पार्टी का दूसरा महत्वपूर्ण वादा है कि दिल्ली की जनता को प्रति परिवार, प्रतिदिन 700 लीटर स्वच्छ पानी मुफ्त में मुहैया करायी जायेगी. आप के संकल्प पत्र में दर्ज है कि दिल्ली में टैंकर माफिया हैं जिन्हें भाजपा का वरदहस्त प्राप्त है. इन टैंकर माफियाओँ से अरविंद केजरीवाल साहब कैसे निपटेंगे यह भी एक बड़ा सवाल है. मुफ्त में पानी देने के लिये केजरीवाल की सरकार को दिल्ली महानगर पालिका निगम से जूझना पड़ेगा जो भाजपा के आधिपत्य में है.
जनता ने आम आदमी पार्टी को शासन करने के लिये वोट दिया है. यदि जनता से उम्मीद की जाये कि वह पग-पग पर माफियाओँ से लड़ने में आप का साथ देगी तो यह बचपना होगा. लोगों को व्यवस्था के खिलाफ जागृत करना एक बात है तथा उस व्यवस्था से लड़वाना अलग बात है. इय तथ्य की ओर केजरीवाल साहब ने क्या सोचा है यह वही जानते होंगे.
हम चाहते हैं कि केजरीवाल साहब अपने जनकल्याणकारी वायदों को जरूर पूरा करें. हम उन कांटों की ओर केजरीवाल साहब का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं जिनसे भविष्य में आम आदमी पार्टी को जूझना है. आम आदमी पार्टी ने वादा किया है कि वह दिल्ली में विदेशी खुदरा दुकान नहीं खुलने देगी. इसे खुदरा दुकानदार सड़क पर उतर कर समर्थन देंगे चाहे वे कियी भी पार्टी के प्रति सहानुभूति रखते हों. परन्तु सवाल यह है कि जब वालमार्ट पैसे के बल पर लाबिंग करेगी तब उस धन बल से कैसे निपटा जायेगा. विदेशी धन्ना सेठ राजमहलीय षड़यंत्र करने में माहिर हैं.
देखा जाये तो आम आदमी पार्टी का संकल्प पत्र देशी तथा विदेशी धन्ना सेठों के खिलाफ लड़ने की घोषणा करता नजर आ रहा है. एक साथ किस प्रकार से दो-दो मोर्चो पर लड़ा जायेगा यह भी यक्ष प्रश्न है. हालांकि ‘आप’ ने दिल्ली की जनता की भागीदारी को आंदोंलन से आगे लाया है परन्तु वह व्यवस्था परिवर्तन के संघर्षो तक जाये इसके लिये लगातार प्रयासरत रहना होगा. तभी इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि आम आदमी पार्टी अपने संकल्प पत्र को लागू कर पायेगी.
क्या दिल्ली की वह जनता जिसने वोट के बाद मत संग्रह में भी अरविंद केजरीवाल को समर्थन दिया है अपने उस ज़स्बे को कायम रखने को तैयार है. व्यवस्था के खिलाफ लड़ना कोई मामूली बात नहीं है. दुनिया के इतिहास को देख लीजिये की किस प्रकार से अरब तथा पनामा गणराज्यों में अपने मनमाफिक शासकों को सत्तारूढ़ करने के लिये पैसा पानी की तरह बहाया गया है. क्या इस लोकतंत्र का नियंता धनतंत्र चुपचाप अपने झोली को खाली होता देखकर चुप रहेगा.
केजरीवाल का हर वादा उसे व्यवस्था से लड़ने के लिये मजबूर कर देगा. चाहे वह निजी स्कूलों की फीस कम करने का मामला हो या दिल्ली से भ्रष्टाचार से छुकारा दिलाने की बात हो. हां कुछ वादे ऐसे हैं जिन्हें अमलीजामा पहनाने में ज्यादा दिक्कत नहीं आयेगी. जिनमें से कुछ ये हैं- महिलाओं के लिए 1 लाख टॉयलेट बनवाना, नये सरकारी अस्पताल खोलना, वैट प्रणाली का सरलीकरण, वक्फ बोरेड को दलालो से मुक्त करना, आटो स्टैंड बनवाना तथा यमुना में सीवरेज के पानी को जाने रोकना इत्यादि.
कुछ वादें तो हैं जो प्रशासनिक आदेशों तथा थोड़ी सी मश्क्कत के बाद पूरे किये जा सकेंगे परन्तु जिन वादों को पूरा करने के लिये व्यवस्ता से लड़ना है उसे आम आदमी पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल कैसे पूरा कर पायेंगे. बहरहाल अरविंद केजरीवाल ने कांटों का ताज पहनना स्वीकार कर लिया है जिसके लिये हम उन्हें साधुवाद देते हैं.
केजरीवाल के आम आदमी पार्टी के जीत के पीछे जनता का व्यवस्था परिवर्तन के प्रति समर्थन देना है. केवल दिल्ली ही नहीं वरन् पूरे देश की नजर केजरीवाल के सरकार के काम-काज पर रहेगी. आखिरकार जनता ने व्यवस्था पर चोट करते हुए उन्हें वोट दिया है, वह चोट तो ‘आप’ को करनी ही होगी. न केवल व्यवस्था पर चोट करना होगी साथ ही साथ जनता का नेतृत्व भी करना पड़ेगा.
इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिये कि आम आदमी पार्टी ने कार्पोरेट घराने के समर्थन प्राप्त दलो को हराया है. जो आसानी से हार नहीं मानने वाले हैं, जैसे ही मौका मिलेगा कार्पोरेट घराने यथास्थिति को कायम रखने के लिये जोड़-तोड़ में लग जायेंगे. दिल्ली ही नहीं पूरे देश की जनता अरविंद केजरीवाल को लड़ता हुआ देखना चाहती है, ‘आप’ की सरकार यदि लड़ेगी तो जनता साथ देगी. जनता को असफलता से नहीं धोखे से नफरत है.