अखिलेश को जोर का झटका धीरे से लगा
लखनऊ | समाचार डेस्क:एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ कहा है कि अखिलेश सरकार आतंकी घटनाओं के आरोपियों के मुकदमे वापस नहीं ले सकती है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ खंडपीठ ने गुरुवार को कहा है कि ऐसे मामलों में केन्द्र सरकार की अनुमकि आवश्यक है. गौर तलब है कि उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार ने आतंकी घटनाओं के 19 आरोपियों के मुकदमे वापस लेने के निर्देश दिये थे.
इस फैसले को अखिलेख यादव सरकार के लिए झटका माना जा रहा है. न्यायमूर्ति अशोक पाल सिंह, न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति अजय लाम्बा की पीठ ने यह फैसला लखनऊ निवासी अधिकवक्ता रंजना अग्निहोत्री व अन्य याचिकाकर्ता की तरफ से दायर जनहित याचिका के जवाब में दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अखिलेश सरकार मुसलमान वोट बैंक को लुभाने के लिए आतंकी घटनाओं में शामिल मुस्लिम समुदाय के युवकों के मुकदमे वापस ले रही है.
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने लखनऊ , फैजाबाद और गोरखपुर की कचहरियों में 2007 में हुए विस्फोटों व राज्य में हुई अन्य आतंकी घटनाओं में शामिल होने के आरोप में जेल में बंद 19 मुसलमान युवकों के मुकदमे पिछले दिनों वापस लेने के आदेश दिए थे. उस समय कुछ राजनीतिक दलों और समाजिक संगठनों ने राज्य सरकार के इस फैसले की तीखी आलोचना की थी.
याचिकाकर्ताओं के वकील हरिशंकर जैन के मुताबिक, अदालत ने कहा कि आतंक से जुड़े मामलों के आरोपियों के मुकदमे राज्य सरकार बगैर केंद्र सरकार की अनुमति के वापस नहीं ले सकती. राज्य सरकार को मुकदमे वापस लेने के लिए केंद्र सरकार को पर्याप्त कारण बताने होंगे.
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव के समय अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि पार्टी सत्ता में आने पर आतंकी घटनाओं में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किए गए बेगुनाह मुसलमान युवकों के मुकदमे वापस लेगी.
उधर विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि मजहबी राजनीति करने वाली सपा के लिए अदालत का यह फैसला करारा तमाचा है. उन्होंने कहा, “कोई बेगुनाह है या नहीं यह तय करना राज्य सरकार का नहीं बल्कि अदालत का काम है. जो उसे करने देना चाहिए. राज्य सरकार को खुद अदालत का काम नहीं करना चाहिए.”
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने भी कहा है कि अगर कोई बेगुनाह है तो उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए, लेकिन यह तय करना अदालत का काम है. राजनीतिक हल्कों में कहा जा रहा है कि उत्तरप्रदेश के अखिलेश सरकार को जोर का झटका धीरे से लगा है.