भविष्य का फैसला सहयोग से: मनमोहन
बीजिंग | एजेंसी: मनमोहन सिंह ने कहा, “हमारे भविष्य का फैसला मुकाबले से नहीं, बल्कि सहयोग से होना चाहिए. यह आसान नहीं होगा, लेकिन हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.” मनमोहन सिंह सीमा रक्षा सहयोग समझौते के बाद अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सेंट्रल पार्टी स्कूल में सभा को संबोधित करेगें. इसे किसी भी साम्यवादी देश में दिया जाने वाला महत्वपूर्ण सम्मान माना जाता है.
चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने बुधवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के चीनी दौरे को द्विपक्षीय संबंधों की ऐतिहासिक घटना करार दिया था, जो दोनों देशों के संबंधों को नई गति प्रदान करेगी.
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि चीन भारत का सबसे बड़ा आर्थिक साझीदार बनकर उभरा है. उन्होंने कहा कि चीन के साथ स्थिरता भरे संबंधों की वजह से दोनों देशों के लिए उनके द्वारा किए गए आर्थिक विकास के अवसर के दोहन की परिस्थितियां तैयार हुई हैं.
उन्होंने कहा, “बेशक, दोनों के बीच चिंताएं है, चाहे वे सीमावर्ती इलाके की घटनाएं हों या सीमा पार नदियों एवं व्यापार असंतुलन का मसला रहा हो.” उन्होंने आगे कहा, “हमारे हालिया अनुभवों ने यह दिखाया है कि इस तरह के मसले द्विपक्षीय या बहुपक्षीय सहयोग के अवसरों के पूर्ण दोहन में अवरोध बन सकते हैं.”
मनमोहन सिंह ने कहा कि वह सीमा रक्षा सहयोग समझौता पर सहमति बनने से खुश हैं और जिन अधिकारियों ने नीति निर्धारित की है, “वे हमारे सहयोग को बढ़ाने और भारत-चीन संबंध को बढ़ावा देने के लिए सब कुछ करेंगे.”
प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति जी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली केकियांग ने उन्हें भारत एवं चीन के उन्नतिशाली राष्ट्र बनने एवं पारस्परिक सुसंगत होने के लक्ष्य को पाने का भरोसा दिलाया है.
भारत के रक्षा सचिव आर. के. माथुर और चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ के उपाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल सुन जियांगुओ ने सीमा रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में भारत और चीन के बीच 4,000 किमी. लंबाई में विस्तृत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति, सौहाद्र् एवं स्थायित्व बरकरार रखने के लिए कुल 10 प्रावधान रखे गए हैं.
समझौते में कहा गया है, “कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष के खिलाफ अपनी सैन्य शक्ति का इस्तेमाल नहीं करेगा, और न ही अपनी संबंधित सैन्य शक्ति का दूसरे पक्ष पर हमला करने के लिए इस्तेमाल करेगा.”
समझौते के तहत दोनों देशों की सीमा पर शांति स्थापित करने के लिए इससे पहले प्रयुक्त की जा रही प्रणाली को एकसाथ लाया गया है. भारत-चीन सीमा पर अक्सर घुसपैठ होती रहती है, जो विशेष तौर पर चीनी सैनिकों द्वारा की जाती है, तथा भारत के लिए चिंता का सबब बनी रहती है.
दोनों देशों ने समझौते में सैन्य अभ्यासों से संबंधित एवं गैर चिन्हित बारूदी सुरंगों या विमानों से जुड़ी सूचना के आदान-प्रदान पर सहमति बनी है. इसके अलावा वन्यजीवों एवं अन्य प्रतिबंधित पदार्थो की तस्करी से संबंधित गैर सैन्य गतिविधियों की जानकारी साझा करने पर भी दोनों देशों में सहमति बनी.
भारतीय राजदूत एस. जयशंकर के मुताबिक, दोनों देशों के बीच बैठकों की संख्या एवं स्तर में वृद्धि की जाएगी, जो सीमा स्तर से सैन्य अधिकारियों के स्तर तक और कमांड स्तर से संबंधित मंत्रालयों के स्तर तक विस्तृत होगी.
दोनों देशों द्वारा सीमा पर शांति के लिए मौजूदा प्रणालियां भी सुचारू रूप से काम करती रहेंगी, जिनमें ‘भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श एवं समन्वय के लिए कार्यतंत्र’ तथा ‘भारत और चीन के बीच रक्षा वार्ता के लिए वार्षिक बैठक’ शामिल हैं.
गौर तलब है कि भारत तथा चीन को एशिया की महाशक्ति कहा जाता है. इन देशों के बीच आपसी समझौते से क्षेत्र में मुकाबले के बजाये सहयोग से होगा.