बेमेतरा में 42 करोड़ का सोयाबीन खराब
बेमेतरा | एजेंसी: छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में अक्टूबर की बारिश से किसानों को फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ है. जिले में करीब 42 करोड़ रुपये का सोयाबीन पूरी तरह से खराब हो चुका है. इसी तरह चार करोड़ के धान ने भी अपना रंग बदल लिया है.
कृषि विभाग ने भी माना है कि सोयाबीन में 10 से 15 फीसदी तक की क्षति हुई है. एक से डेढ़ फीसदी अर्ली वैरायटी प्रभावित हुआ है. कृषि विभाग का मानना है कि धान बेरंग होने से उन्हें धान की वास्तविक कीमत नहीं मिल पाएगी. किसान अपनी मेहनत पर असमय पानी फिरने से सिर पीटने लगे हैं.
जानकारी के मुताबिक बेमेतरा जिले में वर्ष 2013 में सोयाबीन का रकबा करीब 41 हजार हेक्टेयर है. सबसे अधिक रकबा साजा में व सबसे कम बेरला ब्लाक में है. आमतौर पर सोयाबीन की पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. इस हिसाब से करीब 240 करोड़ रुपये का सोयाबीन इस साल होना था. 15 फीसदी के हिसाब से करीब 40 करोड़ के नुकसान की आशंका है. जिस क्षेत्र में खेत में पानी का भराव अधिक है वहां नुकसान की आशंका अधिक आंकी जा रही है.
कृषि विभाग ने 10 से 15 फीसदी के नुकसान का प्रारंभिक आकलन किया है. जिले में धान का रकबा 1 लाख 47 हजार हेक्टेयर है. इनमें से 42 हजार हेक्टेयर में अर्ली वैरायटी का धान बोया गया है. अक्टूबर में बारिश होने, खेतों में पानी भरने से खड़ी फसल के गिर जाने के कारण एक से डेढ़ फीसदी करीब 3 करोड़ रुपये की फसल खराब होने की बात कृषि विभाग मान रहा है.
सोयाबीन के पकते ही बारिश होने से किसान चिंतित हैं. ग्राम खंडसरा के बीज उत्पादक किसान शरद जोशी ने बताया कि सात एकड़ की फसल पानी डूबने के कारण सौ फीसदी नुकसान हो गया. करीब 25 एकड़ की फसल दागदार हो गई है.
तीन सालों में बीज निगम को अनुबंध के आधार पर बीज देने वाले जोशी ने कहा कि अक्टूबर की बारिश ने जो कहर मचाया है उसकी उम्मीद नहीं थी. जनपद सदस्य टोपेंद्र वर्मा ने बताया कि वह दो दिन पहले ही दागदार बीज लेकर कलेक्टर डॉ.बी राजू को दिखा चुके हैं.
वर्मा का कहना है कि कलेक्टर ने बीज तो देखा पर नमूना नहीं लिया. ग्राम धनगांव के किसान रामू निषाद का कहना है कि डूबने से चार एकड़ सोयाबीन की फसल पूरी तरह से खराब हो गई. निषाद ने कहा कि बीज में आई खराबी के कारण वर्ष 2014 में शत-प्रतिशत किसानों को बाजार से बीज लेना पड़ेगा. इस बारिश ने किसानों को तबाह कर दिया है.
बारिश के कारण सोयाबीन, धान ही नहीं सब्जी का भाव भी प्रभावित हुआ है. 10 रुपये नग बिकने वाली लौकी 30 से 40 रुपये किलो में बिक रही है. 15 रुपये का पालक 40 रुपये, 60-70 रुपये का धनिया 300 रुपये किलो में बिक रहा है.
इस सम्बन्ध में बेमेतरा कृषि विभाग के उप संचालक जीएस धुर्वे का कहना हैं कि जिले में अक्टूबर में हुई बारिश से सोयाबीन की फसल 10 से 15 फीसदी तक खराब हो चुकी है. दाने दागदार हो गए हैं. अर्ली वैरायटी धान की एक फीसदी फसल की क्षति बेरंग होने के कारण हुई है.
खेत की मिट्टी गीली होने के कारण कोई भी वाहन खेत में नहीं जा पा रहे हैं. मौसम की मार से आहत किसान अब किसी भी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते हैं. इसीलिए मजदूरों से फसल एकत्र करवा रहे हैं. 100 रुपये से कम पर मजदूर नहीं मिल रहे हैं. अवकाश होने के कारण बड़ी संख्या में बच्चे पालकों का हाथ बंटाने में लग गए हैं.
पंजाब से हार्वेस्टर लेकर आए राजेंद्र सिंह ने बताया कि वे दस सालों से छत्तीसगढ़ आ रहे हैं. यहां आने के बाद उसे दो दिन भी आराम करने का मौका नहीं मिला है. इस साल हाफनदी के किनारे ग्राम पड़कीडीह में एक माह से चार साथियों के साथ मंदिर के बरामदे में बिना काम के पड़े हैं. बारिश के कारण सोयाबीन की कटाई नहीं हो पाई. जब मौसम खुला तो खेत की मिट्टी इतनी गीली है कि दस दिन तक जमीन सूखने का इंतजार करना पड़ेगा. राजेंद्र का कहना है कि दस सालों में ऐसी स्थिति पहली बार हो रही है.
इसी तरह जिले में एक लाख 42 हजार हेक्टेयर में धान की बुआई की गई है, 3 करोड़ का धान बदरंग हो गया है. वहीं 10 से 15 फीसदी सोयाबीन की फसल चौपट हो गई. उधर, मजदूरों ने अपनी रोजी बढ़ा दी है. बहरहाल सोयाबीन और धान के नुकसान का यह आकलन भर है जबकि हकीकत तो इससे भी भयावह बताई जा रही है
छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में अक्टूबर की बारिश से किसानों को फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ है. जिले में करीब 42 करोड़ रुपये का सोयाबीन पूरी तरह से खराब हो चुका है. इसी तरह चार करोड़ के धान ने भी अपना रंग बदल लिया है. (22:40)
कृषि विभाग ने भी माना है कि सोयाबीन में 10 से 15 फीसदी तक की क्षति हुई है. एक से डेढ़ फीसदी अर्ली वैरायटी प्रभावित हुआ है. कृषि विभाग का मानना है कि धान बेरंग होने से उन्हें धान की वास्तविक कीमत नहीं मिल पाएगी. किसान अपनी मेहनत पर असमय पानी फिरने से सिर पीटने लगे हैं.
जानकारी के मुताबिक बेमेतरा जिले में वर्ष 2013 में सोयाबीन का रकबा करीब 41 हजार हेक्टेयर है. सबसे अधिक रकबा साजा में व सबसे कम बेरला ब्लाक में है. आमतौर पर सोयाबीन की पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. इस हिसाब से करीब 240 करोड़ रुपये का सोयाबीन इस साल होना था. 15 फीसदी के हिसाब से करीब 40 करोड़ के नुकसान की आशंका है. जिस क्षेत्र में खेत में पानी का भराव अधिक है वहां नुकसान की आशंका अधिक आंकी जा रही है.
कृषि विभाग ने 10 से 15 फीसदी के नुकसान का प्रारंभिक आकलन किया है. जिले में धान का रकबा 1 लाख 47 हजार हेक्टेयर है. इनमें से 42 हजार हेक्टेयर में अर्ली वैरायटी का धान बोया गया है. अक्टूबर में बारिश होने, खेतों में पानी भरने से खड़ी फसल के गिर जाने के कारण एक से डेढ़ फीसदी करीब 3 करोड़ रुपये की फसल खराब होने की बात कृषि विभाग मान रहा है.
सोयाबीन के पकते ही बारिश होने से किसान चिंतित हैं. ग्राम खंडसरा के बीज उत्पादक किसान शरद जोशी ने बताया कि सात एकड़ की फसल पानी डूबने के कारण सौ फीसदी नुकसान हो गया. करीब 25 एकड़ की फसल दागदार हो गई है.
तीन सालों में बीज निगम को अनुबंध के आधार पर बीज देने वाले जोशी ने कहा कि अक्टूबर की बारिश ने जो कहर मचाया है उसकी उम्मीद नहीं थी. जनपद सदस्य टोपेंद्र वर्मा ने बताया कि वह दो दिन पहले ही दागदार बीज लेकर कलेक्टर डॉ.बी राजू को दिखा चुके हैं.
वर्मा का कहना है कि कलेक्टर ने बीज तो देखा पर नमूना नहीं लिया. ग्राम धनगांव के किसान रामू निषाद का कहना है कि डूबने से चार एकड़ सोयाबीन की फसल पूरी तरह से खराब हो गई. निषाद ने कहा कि बीज में आई खराबी के कारण वर्ष 2014 में शत-प्रतिशत किसानों को बाजार से बीज लेना पड़ेगा. इस बारिश ने किसानों को तबाह कर दिया है.
बारिश के कारण सोयाबीन, धान ही नहीं सब्जी का भाव भी प्रभावित हुआ है. 10 रुपये नग बिकने वाली लौकी 30 से 40 रुपये किलो में बिक रही है. 15 रुपये का पालक 40 रुपये, 60-70 रुपये का धनिया 300 रुपये किलो में बिक रहा है.
इस सम्बन्ध में बेमेतरा कृषि विभाग के उप संचालक जीएस धुर्वे का कहना हैं कि जिले में अक्टूबर में हुई बारिश से सोयाबीन की फसल 10 से 15 फीसदी तक खराब हो चुकी है. दाने दागदार हो गए हैं. अर्ली वैरायटी धान की एक फीसदी फसल की क्षति बेरंग होने के कारण हुई है.
खेत की मिट्टी गीली होने के कारण कोई भी वाहन खेत में नहीं जा पा रहे हैं. मौसम की मार से आहत किसान अब किसी भी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते हैं. इसीलिए मजदूरों से फसल एकत्र करवा रहे हैं. 100 रुपये से कम पर मजदूर नहीं मिल रहे हैं. अवकाश होने के कारण बड़ी संख्या में बच्चे पालकों का हाथ बंटाने में लग गए हैं.
पंजाब से हार्वेस्टर लेकर आए राजेंद्र सिंह ने बताया कि वे दस सालों से छत्तीसगढ़ आ रहे हैं. यहां आने के बाद उसे दो दिन भी आराम करने का मौका नहीं मिला है. इस साल हाफनदी के किनारे ग्राम पड़कीडीह में एक माह से चार साथियों के साथ मंदिर के बरामदे में बिना काम के पड़े हैं. बारिश के कारण सोयाबीन की कटाई नहीं हो पाई. जब मौसम खुला तो खेत की मिट्टी इतनी गीली है कि दस दिन तक जमीन सूखने का इंतजार करना पड़ेगा. राजेंद्र का कहना है कि दस सालों में ऐसी स्थिति पहली बार हो रही है.
इसी तरह जिले में एक लाख 42 हजार हेक्टेयर में धान की बुआई की गई है, 3 करोड़ का धान बदरंग हो गया है. वहीं 10 से 15 फीसदी सोयाबीन की फसल चौपट हो गई. उधर, मजदूरों ने अपनी रोजी बढ़ा दी है. बहरहाल सोयाबीन और धान के नुकसान का यह आकलन भर है जबकि हकीकत तो इससे भी भयावह बताई जा रही है