मुंबई फिल्म मार्ट
मुंबई | एजेंसी: मुंबई फिल्म मार्ट, एमएफएम को अपनी निर्माणाधीन या पूरी हो चुकी फिल्में अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों के समक्ष पेश करने का मंच प्रदान करने के लिए काफी सराहा जा रहा है. लेकिन साथ ही साथ यह स्वतंत्र फिल्मकारों के लिए एक बड़ी चुनौती भी साबित हो रहा है.
फिल्मकार भास्कर हजारिका का कहना है कि एमएफएम सचमुच काम की चीज है. हजारिका इस समय असमी भाषा की परालौकिक रोमांच पर आधारित फिल्म पर काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “मेरे हिसाब से यह एक तर्कपूर्ण विचार है, क्योंकि कोई इंसान यहां कुछ बेचना चाहता है और चीन जैसी दूर देशों से लोग उसके उत्पाद को खरीदने आते हैं.”
हालांकि वह मानते हैं कि इसमें कुछ चुनौतियां भी हैं. उनहोंने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों के साथ सौदा पक्का करते समय कई बार हमारा सामना रूढ़िवादी लोगों से भी होता है. यूरोप जैसे देशों से आए खरीदार ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ जैसी फिल्मों की चाहत लेकर आते हैं. दूसरी फिल्मों में उनकी रुचि नहीं होती. भारत के बारे में उनके दिमाग में यही एक बसी बसाई तस्वीर होती है, जिसे खत्म करने की जरूरत है.”
मुंबई फिल्म महोत्सव के साथ साथ चलने वाले एमएफएम ने इस साल दो नई पहलें द फिल्मी रूम एवं इंडिया प्रोजेक्ट रूम लांच की हैं.
निर्देशक अनुराग मिश्रा जिनकी फिल्म ‘राइड’ को अच्छी खासी प्रतिक्रिया मिली, उन्होंने बताया, “मैं महोत्सव में फिल्म व्यवसाय को समझने आया हूं, क्योंकि मेरी फिल्में थोड़ी अलग थलग होती हैं. मेरा अनुभव काफी बढ़िया रहा और अपनी फिल्म के लिए मुझे फायदेमंद प्रतिक्रियाएं मिलीं.”
इंडिया प्रोजेक्ट रूम श्रेणी के तहत छह फिल्मों का प्रदर्शन किया गया जिनमें प्रमुख हैं, ‘हंटर्र’, ‘हरामखोर’, ‘द अनसीन सीक्वेंस’, ‘प्लेसबो’, ‘इलाई’ और ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’.
इसके अलावा निर्माणाधीन फिल्में भी महोत्सव के दौरान प्रस्तुत की गईं.