रुपए के लिए उथल-पुथल भरा साल रहा 2013
मुंबई | एजेंसी: रुपया इस साल सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं में रही. कमजोर घरेलू अर्थव्यवस्था और अमेरिकी राहत कार्यक्रम में कटौती की संभावना के बीच इसने इस साल डॉलर के मुकाबले 68.85 का ऐतिहासिक निचला स्तर छुआ.
जून और अगस्त के बीच रुपये में करीब 27 फीसदी गिरावट दर्ज की गई. अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा 2008 की आर्थिक मंदी के बाद अमेरिका की अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने के लिए हर माह बांड की खरीदारी पर 85 अरब डॉलर खर्च करने की जगह कम खर्च करने का संकेत देने के बाद रुपये में यह गिरावट दर्ज की गई है.
फेड ने 17 मई को बांड खरीदारी कार्यक्रम का आकार घटाने का संकेत दिया था और इसके बाद तीन महीने में ही रुपये ने 68.85 रुपये प्रति डॉलर का ऐतिहासिक निचला स्तर छू लिया.
डिलॉयट इंडिया के वरिष्ठ निदेशक अनीस चक्रवर्ती ने कहा कि सुस्त विकास, महंगाई, वित्तीय घाटा और चालू खाता घाटा में वृद्धि जैसे आर्थिक आंकड़ों का भी रुपये पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा.
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) ने जून और अगस्त के बीच भारतीय शेयर बाजारों में 3.7 अरब डॉलर की बिकवाली कर डाली, जिसके कारण बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स में 10 फीसदी से अधिक गिरावट दर्ज की गई. फेड के संकेत के बाद वैश्विक फंडों ने इस साल 8.9 अरब डॉलर मूल्य के बांडों की भी बिकवाली की.
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रुपये में मजबूती लाने के लिए उठाए गए कई कदमों के कारण हालांकि रुपये और शेयर बाजारों में मजबूती आई. इसके बाद मध्य सितंबर में फेड ने भी बांड खरीदारी कार्यक्रम में तब कटौती नहीं करने का संकेत दिया.
जानकारों के मुताबिक फेड वित्तीय प्रोत्साहन में जनवरी 2014 से कटौती कर सकता है, जिससे फिर से रुपये पर दबाव बढ़ सकता है, लेकिन इसका उतना नकारात्मक असर नहीं होगा, जितना मई में फेड के संकेत के बाद हुआ था.
एंजल ब्रोकिंग में गैर कृषि कमोडिटी और मुद्रा खंड में मुख्य प्रबंधक रीना रोहित ने कहा, “अगले छह महीने में रुपये में मजबूती की उम्मीद है, हालांकि तेल आयातकों द्वारा डॉलर की खरीदारी के कारण अधिक मजबूती की उम्मीद नहीं है.”
रोहित ने कहा, “आने वाले महीने में कच्चे तेल का मूल्य बढ़ सकता है. साथ ही डॉलर की खरीदारी के कारण रुपये में अधिक मजबूती की उम्मीद नहीं है.”
चालू खाता घाटा के आंकड़ों में सुधार और रिजर्व बैंक द्वारा विभिन्न साधनों से 34 अबर डॉलर जुटाने से रुपये को संबल मिला है.
साल के आखिर में रुपया 61-62 के स्तर पर मंडरा रही है, जो अगस्त के स्तर के मुकाबले 10 फीसदी मजबूत है. यही नहीं वैश्विक फंडों ने इस साल नवंबर तक भारतीय शेयर बाजारों में जितनी बिकवाली की है, उससे 17.5 अबर डॉलर अधिक लिवाली की है.
एसोचैम के अध्यक्ष राणा कपूर ने कहा कि चालू खाता घाटा में सुधार का सबसे अधिक फायदा रुपये की मजबूती के रूप में दिखेगा. कपूर यस बैंक के भी प्रबंध निदेशक हैं.
2013 के प्रमुख बिंदू :
– रुपया 28 अगस्त को डॉलर के मुकाबले 68.85 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर.
– रुपये का जून और अगस्त के बीच 27 फीसदी अवमूल्यन.
– अमेरिका के वित्तीय प्रोत्साहन कार्यक्रम में कटौती की आशंका के बीच एफआईआई द्वारा भारी बिकवाली.
– सुस्त विकास दर, महंगाई और घाटे के कमजोर आर्थिक आंकड़ों का भी रुपये पर दबाव.
– रिजर्व बैंक के कदम और फेड के संकेतों के बाद सितंबर और दिसंबर के बीच रुपये में 10 फीसदी मजबूती.