भारत में चीतों के आगमन के 2 साल पूरे
भोपाल | संवाददाताः दो साल बाद भी भारत लाए गये विदेशी चीते, यहाँ की परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हो पाए हैं. यही कारण है कि इन चीतों को खुले जंगल में रखने की योजना अब तक आकार नहीं ले पा रही है.
आज ही के दिन यानी 17 सितंबर को पहली बार ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत देश में चीतों को बसाने की कवायद शुरू की गई थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर नामीबिया से आए 8 चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था.
इसके बाद फरवरी 2023 में 12 चीते दक्षिण अफ्रीका से लाए गए थे. उन्हें भी कूनो के जंगल में छोड़ा गया था.
नामीबिया और दक्षिण अफ्रिका से कुल 20 चीते भारत लाए गए थे.
भारत आने के बाद 8 वयस्क चीतों की मौत हो चुकी है. इनमें तीन मादा और पांच नर चीते हैं.
भारत में 17 नए शावकों का जन्म हुआ है, जिनमें से 5 की मौत हुई है, वहीं 12 जीवित हैं.
कूनो में शावकों सहित कुल चीतों की संख्या 24 हो गई है.
बाड़े में बंद हैं चीते
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों को लाने के बाद उन्हें कूनो के खुले जंगल में छोड़ा गया था, लेकिन वे वहां की पारिस्थितिकी से सामंजस्य नहीं बैठा पाए.
माना जा रहा है कि इसके कारण ही एक के बाद एक चीतों की मौत होने लगी थी.
जिसके बाद कूनो प्रबंधन ने चीतों को बाड़े में रखने का निर्णय लिया. वर्तमान में सभी चीते एक खुले बाड़े में ही हैं.
चीतों की मौत की अलग-अलग वजहें बताई जा रही हैं. ऐसे में कूनो प्रबंधन के पास उन्हें खुले में छोड़ने की कोई योजना फिलहाल नहीं है.
बीते दिनों सबसे फुर्तीले चीते पवन की मौत के बाद कूनो में चीतों की आजादी पर लगभग प्रतिबंध लग गया है.
कूनो प्रबंधन ने जारी किया वीडियो
चीतों के आगमन के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में कूनो प्रबंधन ने पिछले दिनों एक वीडियो जारी किया.
इस वीडियो में चीतों के शावक अपनी मां की पीठ पर चढ़कर कूदते तो कभी प्यार करते नजर आ रहे हैं.
कूनो प्रबंधन चीता परियोजना के दो साल पूरे होने का जश्न मना रहा है.
प्रबंधन का कहना है कि दो साल पहले हमने एक ऐतिहासिक यात्रा शुरू की थी. यह एक आसान रास्ता नहीं था, लेकिन विपरीत परिस्थितयों और चुनौतियों के बाद परियोजना सफल होती दिख रही है.
यह परियोजना वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी प्रयास है, जो खोई हुई वन्यजीव आबादी और पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने की आशा का प्रतीक है.
गांधी सागर अभयारण्य नया ठिकाना
कूनो का जंगल चीतों की आबादी के हिसाब से छोटा पड़ रहा है.
ऐसे में अब गांधी सागर अभयारण्य में चीतों को बसाने की तैयारी चल रही है.
यहां के लिए केन्या से चीते लाए जाएंगे.
केन्या के चीतों के नए जत्थे को लाने के लिए समझौता ज्ञापन प्रक्रिया प्रगति पर है.
भारत की ओर से इसे अंतिम रूप से दिया गया है, वहीं केन्या की ओर से इस पर मंजूरी का इंतजार है.
इसके बाद दोनों सरकारें एमओयू पर हस्ताक्षर करेंगी.
छत्तीसगढ़ में मारे गए थे देश के अंतिम चीते
भारत के अंतिम चीते छत्तीसगढ़ के कोरिया के जंगल में मारे गए थे.
कोरिया रियासत के राजमहल के एक कमरे में, मारे गए इन अंतिम चीतों के सिर टंगे हुए हैं.
पुराने दस्तावेज़ के अनुसार, दिसंबर 1947 में कोरिया के महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव ने अपनी रियासत के रामगढ़ इलाक़े में तीन चीतों का शिकार किया था.
उसके बाद भारत में एशियाई चीतों के कोई प्रमाण नहीं मिले.
भारत सरकार ने 1952 में चीता को भारत में विलुप्त प्राणी घोषित कर दिया था.