भ्रष्टाचार निरोधक कानून खरा नहीं: जेटली
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: केंद्रीय वित्त मंत्री ने वर्ष 1988 में बने भ्रष्टाचार निरोधक कानून को आज के हिसाब से नाकाफ़ी कहा है. उन्होंने एक समारोह में बोलते हुये कहा कि इसमें कई ऐसे दरवाजे हैं जिनसे भ्रष्टाचारी बच निकलता है. उन्होंने इस कानून में संशोधन की वकालत की है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून में पूर्ण संशोधन की जरूरत बताई और कहा कि 27 साल पुराना यह कानून ईमानदारी से फैसला लिए जाने की राह में बाधक है और इसमें भांति-भांति प्रकार से व्याख्या के लिए कई गुंजाइश खुली छोड़ दी गई है. जेटली यहां केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रथम निदेशक डी.पी. कोहली की स्मृति में आयोजित व्याख्यान दे रहे थे. उन्होंने कहा, “क्या 1988 का कानून भ्रष्टाचार और ईमानदारी से लिए गए फैसले में हुई भूल के बीच फर्क कर सकता है?”
उन्होंने कहा, “1988 का कानून परीक्षा पर खरा नहीं उतर पाया है.” खास कर यह कानून अलग-अलग तरीके से व्याख्या किए जाने के लिए खुला हुआ है और इसमें भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की अलग-अलग तरीके से व्याख्या करने की गुंजाइश छोड़ दी गई है.
जेटली ने कहा कि जांच पुलिस का काम है, लेकिन ऐसी स्थिति आ गई है कि अदालत जांच की निगरानी कर रही है, जिससे जांचकर्ता और अन्य पक्ष बचाव की मुद्रा में आ गए हैं. इसके कारण नीति निर्माता फैसले लेने से कतराने लगे हैं.
उन्होंने कहा, “किसी भी आर्थिक गतिविधि में फैसले तेजी से लिए जाने चाहिए. लेकिन हमारी विकास दर घट रही थी, महंगाई दर बढ़ रही थी. फैसले के अवरुद्ध रहने की हमें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है.” जेटली पिछली सरकार द्वारा फैसले लेने में की गई देरी की ओर इशारा कर रहे थे.
उन्होंने कहा, “कहीं न कहीं हमने अपनी निर्णय निर्माण प्रक्रिया की विश्वसनीयता खो दी है.”
उन्होंने कहा कि 2014 में देश में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ.
जेटली ने कहा, “2014 में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ. 30 साल बाद स्पष्ट जनादेश मिला.” उन्होंने कहा कि अब महत्वपूर्ण विषय पर तेजी से फैसला किया जा सकता है.