प्रसंगवश

शिवराज का खुशहाली मंत्रालय

‘हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल को बहलाने के लिए ‘गालिब’ ये खयाल अच्छा है.’ देश में पहली बार मध्यप्रदेश में आनंद या प्रसन्नता या खुशहाली या ‘हैप्पीनेस मिनिस्ट्री’ बनने जा रहा है. वजह जो भी हो, यह तो मानना ही पड़ेगा कि देश का दिल कहे जाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह निस्संदेह प्रयोगधर्मी हैं.

सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों के बीच खुद को ‘मामा’ बनाकर उन्होंने न केवल पूरे प्रदेश में गांवों से लेकर शहरों तक, बल्कि हर घर में जबरदस्त छाप छोड़ी थी और विद्यार्थियों के हितार्थ जितनी भी योजनाएं लागू कीं, उन्हें ‘भांजा-भांजियों’ के लिए कहकर खूब लोकप्रियता बटोरी. इसका फायदा भी उन्हें किसी न किसी रूप में पिछले चुनाव में मिला.

इसे कल्पना कहें या प्रयोग, बड़ी हकीकत यह है कि आमतौर पर लोग मंत्रालयों का कामकाज देखते-देखते या तो बोर हो जाते हैं या बुरा अनुभव होता है. अगर नागरिकों को वाकई खुशहाली देने के लिए ही मंत्रालय के गठन की तैयारी है तो बेशक एक अच्छी शुरुआत है और इसकी चर्चा पूरे देश में होगी, होनी भी चाहिए.

हो सकता है कि देर-सबेर केंद्र में भी इस तरह की शुरुआत की जाए. राजनीति के चश्मे से देखने वाले भले ही ये कहें कि ‘अच्छे दिन’ की कब से आस लगाए बैठे हैं, लेकिन कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि अच्छे दिन आ गए हैं या आएंगे, अलबत्ता शिवराज सिंह ने नागरिकों को खुशहाली देने के लिए पूरा मंत्रालय ही बना देने की बात कहकर मप्र में जरूर नागरिकों के अच्छे दिन की वचनबद्धता के लिए सरकारी कदम उठाकर बहुत बड़ा ‘नवाचार’ किया है.

इस घोषणा को लेकर शिवराज सिंह चौहान ने अपने ट्विटर हैंडल पर कुछ ट्वीट करके अपनी अवधारणा के बारे में बड़ी सहजता से बताया. उन्होंने ट्वीट कर लिखा है, “व्यक्ति की खुशी के लिए समृद्धि के अलावा कई अन्य कारण भी होते हैं. प्रदेशवासियों की समृद्धि के साथ उनके जीवन में खुशी के लिए प्रयास करेंगे.”

इसी तरह दूसरे ट्वीट में लिखा है, “प्रदेश के लोगों के जीवन में हर स्तर पर खुशहाली के लिए ‘हैप्पीनेस मिनिस्ट्री’ होगी, जिसके माध्यम से हर व्यक्ति को सकारात्मक वातावरण दिया जाएगा.”

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा है, “लोगों को अच्छी शिक्षा मिले, शिक्षण संस्थाओं का वातावरण अच्छा हो, विपरीत परिस्थितियों में लोग हौसला न छोड़ें, ऐसी व्यवस्था की जाएगी.”

दुनियाभर के कई देशों में लोगों की खुशी को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, तो क्या देर सबेर मप्र में भी यही आधार होगा?

शिवराज सिंह के मन में यह विचार कहां से आया, ये तो वही जानें पर भारत के करीब एक छोटा-सा देश भूटान है, जहां पर 1972 में नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगुचक ने, सकल घरेलू उत्पाद या सकल घरेलू आय की जगह ‘ग्रॉस हैप्पीनेस इंडेक्स’ लागू किया और सभी मंत्रालयों की यह जिम्मेदारी तय की कि भूटान के लोगों की समस्याओं को सुलझाकर जीवन स्तर और बेहतर किया जाए.

निश्चित रूप से राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए यह आदर्श मापदंड है. इसी तरह अमरीका में 2011, सिंगापुर में 2013, कनाडा में 2011, वेनेजुएला में 2013 में अलग.अलग नामों से जनता की खुशहाली के लिए या तो मंत्रालय या सरकारी योजनाएं या सामाजिक सरोकारों को तय करने वाले मापदंड लागू किए गए.

ऐसी व्यवस्था यूएई और इक्वाडोर में भी है. निश्चित रूप से आपाधापी भरे इस प्रतियोगी दौर में अगर लोगों के पास कुछ नहीं है तो वो हैं खुशी के वे लम्हे, जिसमें वे कभी खुश रहकर भी अपनी जिंदगी को खुशनसीब बना पाए.

खुशहाली मंत्रालय का स्वरूप कैसा होगा, कामकाज का तौर तरीका क्या होगा और लोगों की खुशी के लिए योजनाएं क्या होंगी, इस पर पूरे देश की निगाहें हैं.

पांच सांस्कृतिक संगमों निमाड़, मालवा, बुंदेलखंड, बघेलखंड और चम्बल में रचे-बसे मप्र की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 7,25,97,565 है. इसमें 51.8 प्रतिशत पुरुष तथा 48.2 प्रतिशत महिलाएं हैं. ऐसे में 51 जिलों के मप्र में अनगिनत समस्याएं भी हैं जो नागरिकों के चेहरे से खुशी छीनने की वजह बनती हैं.

पहली बार ‘हैप्पीनेस मंत्रालय’ बनाने जा रहे मप्र की ही बात करें तो यहां किसानों की विकट समस्या है, यही वह प्रदेश है जहां जल सत्याग्रह की न केवल शुरुआत हुई, बल्कि यह हफ्तों और महीनों तक कई बार चला भी. फसल को सींचने के लिए किसान अपने बच्चों तक को गिरवी रखने का मजूबर हो जाता है और अतिवृष्टि के बाद चौपट फसलों के ऊंट के मुंह में जीरा जैसे मुआवजे के लिए सरकारी तंत्र की ओर मजबूरी भरी निगाहों से देखता है और अंतत: आत्महत्या कर लेता है.

महिला अपराधों के मामले में फरवरी, 2015 से जनवरी, 2016 तक के आंकड़े हालात बयां करने को काफी हैं. आंकड़ों के अनुसार, 2552 दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज हुए. कितने मामले तो लोकलाज और भय से दर्ज न हो पाए होंगे और उनका कोई आंकड़ा नहीं है.

इसी तरह शिशु मृत्युदर में मप्र असम के साथ पहले क्रम पर है जहां प्रति हजार में 54 बच्चे साल भर भी जीवित नहीं रह पाते. इसी तरह प्रसव के दौरान प्रति लाख महिलाओं की मृत्युदर 221 है, जबकि अन्य प्रांतों में यह 167 है.

भारी भरकम वैट (31 प्रतिशत) चुकाने वाला राज्य भी मप्र है. बिजली के भारी भरकम बिल, मध्याह्न् भोजन की घटिया स्थिति, मनरेगा को लेकर हर कहीं असंतोष, आंगनबाड़ी में दर्ज संख्या और वास्तविकता में फर्क, जननी एक्सप्रेस की हकीकत, सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा, पीने के पानी की किल्लत किसी से छुपी नहीं है. बहुचर्चित व्यापम घोटाला और इससे जुड़ी रहस्यमय मौतों को लेकर बदनामी है सो अलग.

फिर भी नकारात्मक जीवन शैली को सुधारने के लिए देश में कोई प्रदेश अगर नई शुरुआत करता है तो उसकी प्रशंसा होनी ही चाहिए.

मंत्रालय के कामकाज के बारे में मुख्यमंत्री की सोच भी अलग सी है. वह मानते हैं कि दौलत वाले नकारात्मकता से अटे पड़े हैं, आत्महत्याएं कर रहे हैं, वहीं आदिवासी, ग्रामीण और झोपड़पट्टी में रहने वाले ही अपनी मूल संस्कृति को बचाकर खुशी के पल जीते हैं.

‘खुशहाली मंत्रालय’ सबको खुशिया बांटेगा. इसमें योग, ध्यान, सांस्कृतिक आयोजनों के साथ हर वह प्रयास होगा जो दुनिया में अन्य जगह किया जाता है और लोगों को खुशी मिलती है. निश्चित रूप से अभिनव प्रयोग की इस कल्पना की भूरि-भूरि प्रशंसा होनी ही चाहिए.

दुआ कीजिए कि मप्र के ‘हैप्पीनेस मिनिस्ट्री’ पर गालिब की यह पंक्ति भी फिट बैठे- ‘कतरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए, काम अच्छा है वो जिसका मआल (परिणाम) अच्छा है.’ (एजेंसी)

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