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हजारों साल पुराना विलय संगीत

जाकिर हुसैन ने कहा भारत में फ्यूजन हजारों वर्षो से विद्यमान रहा है. तबला उस्ताद जाकिर हुसैन 1970 से अब तब जॉन मैक्लॉघलिन, मिकी हार्ट और बिल लसवेल जैसे संगीतकारों के साथ कई जुगलबंदियों में अपना हुनर दिखा चुके हैं, लेकिन उनका कहना है कि वह ही फ्यूजन (विलय) संगीत के एकमात्र ध्वजवाहक नहीं हैं और यह भारत में हजारों वर्षो से विद्यमान रहा है.

हुसैन ने एक साक्षात्कार में कहा, “उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत वास्तव में पयूजन ही है, चाहे उसे रवि शंकर, विलायत खा या भीमसेन जोशी कोई भी प्रस्तुत करें. सूफी कवि और संत अमीर खुसरो मंदिरों में प्रस्तुत किए जाने वाले संगीत से बेहद प्रभावित थे, जिसे हवेली संगीत या प्रबंध गायकी के नाम से जाना जाता था. वह ध्रुपद शैली के काफी करीब था.”

हुसैन के मुताबिक, “आध्यात्मिक संगीत ने खुसरो को कौल और कलबना की याद दिलाई, जो कि ध्यान की सूफी गायन शैलियां थीं और जिन्हें अब कव्वाली के नाम से जाना जाता है.”

खुसरो ने मंदिरों की शैलियों, कौल और कलबना के समागम से एक नया संगीत तैयार किया, जिसे ‘खयाल’ के नाम से जाना जाता है और सभी उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीतकार उसे प्रस्तुत करते हैं. इस प्रकार फ्यूजन का जन्म हुआ.

हुसैन भारतीय शास्त्रीय संगीत को ऊंचे मुकाम तक पहुंचाने का श्रेय पंडित रविशंकर को देते हैं.

मात्र 12 वर्ष की उम्र से प्रस्तुतियां दे रहे दिग्गज तबला वादक ने कहा, “रविशंकर ने इसे विदेश में ख्याति दिलाई और भारतीय शास्त्रीय संगीत को मंच पर पेश करने की कला सिखाई, क्योंकि इससे पूर्व इसे केवल महलों में ही प्रस्तुत किया जाता था.”

हुसैन ने सितम्बर के शुरू में एक लाइव अल्बम ‘डिस्टेंट किन’ जारी किया, जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत और सेल्टिक संगीत का फ्यूजन है.

हुसैन ने कहा कि यह संगीत जिसे स्कॉटिश संगीतकार बजाते थे, वह उन्हें बचपन में मुंबई के माहिम इलाके की एक दरगाह में बजने वाली धुनों की याद दिलाता है.

64 वर्षीय संगीतकार भारतीय संगीत को विस्तृत लोगों तक पहुंचाने का श्रेय डिजिटल मीडिया को भी देते हैं.

हुसैन ने कहा, “भारतीय शास्त्रीय संगीत की सीडी या डीवीडी ज्यादा नहीं बिकती, लेकिन डिजिटल मीडिया पर यह काफी लोकप्रिय है.”

इसी बीच हुसैन अपने लाइव कार्यक्रम का इंतजार कर रहे हैं.

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