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तुम नेहरू अब तक उदास हो

कनक तिवारी
1964 में 27 मई को मौत के बाद जवाहरलाल नेहरू का यश इतिहास की थाती है. उनका अनोखापन बेमिसाल है. नेहरू में दोष भी ढूंढ़े जा सकते हैं. हुकूमत की मौजूदा विचारधारा उनके सिर पापों की गठरी बांध उन्हें गुमनामी में धकेल देना चाहती है.

नेहरू विस्मृति के अंधेरे में भी जुगनू की तरह दमकते ही रहते हैं वे अकेले हैं जो दक्षिणपंथ के हमले का शिकार हैं. आजा़दी की जद्दोजहद में तिलक, गांधी, नेहरू और सुभाष उत्तरोत्तर पड़ाव हैं.

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद नेहरू ने गांधी का सम्मान करते भी उनकी आदर्शवादिता को अव्यावहारिकता कहकर ठुकरा दिया. उन्हें कठोर पत्र भी लिखे. उन्होंने गांधी की मुखालफत करते भगतसिंह के पक्ष में करीब आधी कांग्रेस को खड़ा भी किया. सुभाष बोस के साथ भगतसिंह के मुकदमे की पैरवी की.

उन पर सरदार पटेल के साथ भारत विभाजन का दोष भी थोपा गया. उन्होंने योजना आयोग, भाखरा नांगल, आणविक शक्ति आयोग, भाषावाद प्रांत, सार्वजनिक उपक्रम, संसदीय तमीज और संविधान की इबारतें नायकत्व की भूमिका के साथ रचीं. कश्मीर समस्या को लेकर उनमें उलझाव बताया गया.

पंचशील के मुखिया होने के बावजूद चीन ने दोस्ती और विश्वास में बहुत बड़ा धोखा दिया. कीमत देश की धरती को चुकानी पड़ी. लोकतंत्र के रहनुमा नेहरू ने अपना व्यक्तित्व कई बार थोपने की कोशिशकी लेकिन बहुमत के आगे मासूमियत से हारते भी रहे.

कांग्रेस अध्यक्ष बेटी इंदिरा ने केरल की सरकार की बर्खास्ती को लेकर उसे खारिज कर दिया. नेहरू राजेन्द्र प्रसाद को दुबारा राष्ट्रपति बनाने के बदले उपराष्ट्रपति डॉक्टर राधाकृष्णन को प्रोन्नत करना चाहते थे.

कांग्रेस ने बात नहीं मानी. नेहरू अदब से झुक गए. दिल्ली की जनसभा में संचालक ने यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो को पहला पुष्पगुच्छ देने नेहरू को आमंत्रित किया. जवाहरलाल ने चेहरा लाल पीला करते कहा.

दिल्ली के नागरिकों की ओर से पहला पुष्पगुच्छ सौंपने का अधिकार महापौर अरुणा आसफ अली को है. यह संस्कारशीलता आज महापौरों को उपलब्ध नहीं है. उन्हें मंत्री, सचिव और आयुक्तों के सामने ऊंची नाक रखने से मना किया जाता है. तपेदिकग्रस्त पत्नी को स्विट्ज़रलैंड के अस्पताल में छोड़ जेलों में जवानी सड़ा दी.

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान खंदकों में बैठकर हेरल्ड लास्की के फेबियन समाजवाद के पाठ पढ़े. अपनी बेटी को पिता के पत्र के नाम से चिट्ठियों की शृंखला लिखी. वह इतिहास बन गई. बेटी देश की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री बनी और शहीदों की मौत पाई. नेहरू खानदान पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाले यह नहीं कहते.

जवाहरलाल ने अपना उत्तराधिकारी जयप्रकाश में ढूंढ़ा था, इंदिरा गांधी में नहीं. वे अटलबिहारी वाजपेयी को कांग्रेस में लाने लाने को थे. नहीं चाहने पर भी मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के दबाव के कारण छत्तीसगढ़ में भिलाई इस्पात संयंत्र को लाकर प्रदेश को नया औद्योगिक तीर्थ दिया.

उनकी किताबों विश्व इतिहास की झलक, भारत की खोज और आत्मकथा की रॉयल्टी से परिवार का खर्चा चलता रहा.

नेहरू में कवि और दार्शनिक था. उनकी इतिहास दृष्टि में नदियां, हवाएं और तरंगें बहती हैं. नेहरू की गंगा सुदूर अतीत से भविष्य के महासागर तक संस्कारों का सैलाब लिए अनंतकाल तक बहती रहेगी. उनकी गंगा वसीयत से बेहतर वसीयत संसार में कहीं नहीं है.

असाधारण बौद्धिक सांसद हीरेन मुखर्जी ने कहा था-मैं ऐसी वसीयत लिखने वाले की हर गलती माफ कर सकता हूं. यहां तक कि खराब सरकार को भी.

नेहरू ने प्रधानमंत्री नहीं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष की हैसियत से सर्वोच्च सोवियत नेता ख्रुश्चेव को लिखा था. डॉक्टर जिवागो उपन्यास के लेखक बोरिस पास्तरनाक को रूसी समाज की कथित बुराइयों को उजागर करने के आरोप में अनावश्यक सजा़ नहीं दें.

आल्डस हक्सले ने लिखा-जवाहरलाल का व्यक्तित्व गुलाब की पंखुड़ियों से बना है. शुरू में लगता था चट्टानी राजनीति में गुलाब की पंखुड़ियां कुम्हला जाएंगी. लेकिन गुलाब की पंखुड़ियों ने तो पैर जमाने षुरू कर दिए हैं. नेहरू का स्पर्श पाकर राजनीति सभ्य हो गई है. टैगोर ने उन्हें भारत का ऋतुराज कहा था. विनोबा के लिए अस्थिर दौर में सबसे बड़े स्थितप्रज्ञ थे.

उनके निंदक आज भी फलफूल रहे हैं. शेख अब्दुल्ला को नेहरू का अवैध भाई बताते हैं. उनके पूर्वजों में मुसलमानों का रक्त अफवाहों के इंजेक्शन के जरिए डालते हैं.

एडविना माउंटबेटन से उनके संबंधों में मांसलता का वीभत्स देखते हैं. उन्हें कॉमनवेल्थ को कायम रखते हुए कई समझौतों के लिए दोषी करार दिया जाता है.

यह सफेद झूठ कहने वाले सर्वोच्च पद पर हैं. नेहरू सरदार पटेल की अंत्येष्टि में नहीं गए थे. निखालिस हिन्दू लगते गांधी, मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, सरदार पटेल, लालबहादुर षास्त्री, राजगोपालाचारी वगैरह कांग्रेसियों की तस्वीरों का संघ परिवार मुरीद है.

नेहरू के सियासी और खानदानी वंशज गाफिल हैं. जवाहरलाल से बेरुख भी हैं. कांग्रेस इस असाधारण बौद्धिक से घबरा या उकताकर मिडिलफेल जीहुजूरियों के संकुल को अपना बौद्धिक विश्वविद्यालय बनाए हुए है. काश! वे महान क्रांतिकारी भगतसिंह को पढ़ लेते.

उसने कहा था मैं देश के भविष्य के लिए गांधी, लाला लाजपत राय और सुभाष बोस वगैरह सब को खारिज करता हूं. केवल जवाहरलाल वैज्ञानिक मानववाद होने के कारण देश का सही नेतृत्व कर सकते हैं.

नौजवानों को चाहिए नेहरू के पीछे चलकर देश की तकदीर गढ़ें. नेहरू चले गए. भगतसिंह भी. उस वक्त के नौजवान भी. वर्तमान के ऐसे करम हैं कि नेहरू अब भी उदास हैं.

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