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कोहिनूर पर भारत का हक

नई दिल्ली | जेके कर: जिस कोहिनूर पर नाज़ था उसे अब महरानी को उपहार में दिया गया बताया जा रहा है. सोमवार को केन्द्र सरकार की ओर से सर्वोच्य न्यायालय को अवगत कराया गया कि कोहिनूर हीरे को महाराज दिलीप सिंह ने ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को भेंट स्वरूप दिया था. हालांकि, सर्वोच्य न्यायालय ने ने छः सप्ताह का अतिरिक्त समय देकर कहा है कि इस रुख को स्वीकार कर लेने से कोहिनूर हीरे पर भारत का दावा समाप्त हो जायेगा.

सॉलिस्टर जनरल रंजीत कुमार ने सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में संस्कृति मंत्रालय का पक्ष बताते हुए कहा कि 105 कैरेट के इस कोहिनूर हीरे को महाराजा दिलीप सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपा था.

संस्कृति मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक 1849 में अंग्रेजों और सिखों के बीच हुए युद्ध के बाद महाराजा दिलीप सिंह ने हर्ज़ाने के तौर पर ये हीरा ब्रिटिश सरकार को सौंपा था.

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इसी के साथ सवाल उठता है कि कोहिनूर हीरे पर भारत का हक है या नहीं. सभी जानते है तथा इतिहास भी गवाह है कि हारे हुये को जीतने वालों को अपनी बहुमूल्य चीजें मजबूरन भेंट करनी पड़ती है. यदि राजा दिलीप सिंह पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमला न किया होता तो उसे यह हीरा निश्चित तौर पर उन्हें न मिला होता.

भला हमलावर को मजबूरन दी गई भेंट को खुशी के साथ तथा ख़ास मौके पर दी जाने वाली भेंट कैसी मानी जा सकती है.

इससे भी बड़ा सवाल है कि कोहिनूर पर भारत का हक नहीं है इसे परोक्ष रूप से स्वीकार करने को क्या राष्ट्रीय सहमति प्राप्त है.

ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार कोहिनूर यह गोलकुंडा की खान से निकला था, जो आंध्र प्रदेश में, विश्व की सवसे प्राचीन खानों में से एक है. शब्द गोलकुण्डा हीरा, अत्यधिक श्वेत वर्ण, स्पष्टता व उच्च कोटि की पारदर्शिता के लिये प्रयोग की जाती रही है. यह अत्यधिक दुर्लभ, अतः कीमती होते हैं.

इस हीरे के बारे में, दक्षिण भारतीय कथा कुछ पुख्ता लगती है. यह सम्भव है, कि हीरा, आंध्र प्रदेश की कोल्लर खान, जो वर्तमान में गुंटूर जिला में है, वहां निकला था. दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश का अंत 1320 में होने के बाद गियासुद्दीन तुगलक ने गद्दी संभाली थी. उसने अपने पुत्र उलुघ खान को 1323 में काकातीय वंश के राजा प्रतापरुद्र को हराने भेजा था.

इस हमले को कड़ी टक्कर मिली, परन्तु उलूघ खान एक बड़ी सेना के साथ फिर लौटा. इसके लिये अनपेक्षित राजा वारंगल के युद्ध में हार गया. उस समय वारंगल की लूट-पाट, तोड़-फोड़ व हत्या-काण्ड महीनों चली. सोने-चांदी व हाथी-दांत की बहुतायत मिली, जो कि हाथियों, घोड़ों व ऊंटों पर दिल्ली ले जाया गया.

कहा जाता है कि कोहिनूर हीरा भी उस लूट का भाग था. यहीं से, यह हीरा दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकारियों के हाथों से मुगल सम्राट बाबर के हाथ 1526 में लगा था.

मुगल सम्राटों से होता हुआ कोहिनूर अंततः पंजाब के राजा दिलीप सिंह तक पहुंचा था.

इस तरह से कोहिनूर वक्त के साथ अलग-अलग राजा-महराजाओं के ताज तथा खजाने की शोभा बढ़ाता रहा है. निश्चित तौर पर अब यह ब्रिटेन की महारानी के पास है जो केवल नाम की महारानी है वर्ना वहां भी राजतंत्र नहीं लोकतंत्र स्थापित हो गया है. जिस समय कोहिनूर महारानी की ताज की शोभा बना था उस समय ब्रिटिश शासन का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था.

आज स्थिति एकदम अलग है. भारत एक संप्रभु व स्वतंत्र राष्ट्र है वह ब्रिटेन का गुलाम नहीं है जिसे अपनी कोई हुई अमानत वापस पाने का पूरा हक है.

केंद्र सरकार ने सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी कोहिनूर हीरे को भारत से लूटकर नहीं ले गई थी, बल्कि सिख सम्राट महाराजा दिलीप सिंह ने उसे ब्रिटेन को उपहार में दिया था.

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर तथा न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ को सरकार ने इस बात से अवगत कराया. न्यायालय एक गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था.

एनजीओ ऑल इंडिया ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस फोरम ने न्यायालय से कोहिनूर हीरे को वापस लाने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की है.

न्यायालय ने सरकार को हालांकि छह सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया और कहा कि यदि न्यायालय सरकार के रुख को स्वीकार कर लेता है, तो हीरे के ऊपर दावे के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे.

वर्ष 1850 में अंग्रेजों-सिखों के बीच युद्ध के बाद 108 कैरट के इस हीरे को ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया था. युद्ध में सिखों की हार हुई थी और अंग्रेजों ने अविभाजित पंजाब के पूरे सिख साम्राज्य पर नियंत्रण कर लिया था. (एजेंसी इनपुट के साथ)

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