कलारचना

जिंदगी तो मानो अभी शुरू हुई है

वाशिंगटन | एजेंसी: प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां ने नौ अक्टूबर को अपने जीवन का 70वां वसंत पार कर लिया है. वह दुनिया को जोड़ने और संघर्षपूर्ण माहौल के बीच अमन व सौहार्द लाने के लिए ‘सुरमयी प्रेमसंबंध’ के हर कतरे का लुत्फ उठा रहे हैं.

उन्होंने न्यूयॉर्क से फोन पर कहा, “मुझे लगता है, जैसे जिंदगी अभी शुरू हुई है. इसे एक नई दिशा मिल गई है.”

खां छह सितंबर के बाद से अपने प्रतिभाशाली बेटों अमान और अयान के साथ यूएस वेस्ट कोस्ट टूर पर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि उनके पिता हाफिज अली खां कहा करते थे कि ‘एक संपूर्ण संगीतकार बनो.’ उनके पिता ने ही उन्हें संगीत सिखाया.

दिग्गज सरोद वादक ने कहा, “बच्चा होने की वजह से मैं उनका मतलब नहीं समझता था. अब मुझे दिखना शुरू हो गया है कि एक संपूर्ण संगीतकार वह है, जो हर संगीत सिस्टम या तंत्र में अच्छे अवसर देख सकता है.”

खां ने बीथोवेन, बैच, मोजार्ट और चेकोव्स्की सरीखी यूरोपीय संगीतकारों और उनके सुर मिलाने वाले सिस्टम की तारीफ की.

उन्होंने दुखी मन से कहा, “यह भारत में विकसित नहीं हो सकता. हमारे पास अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक भी ऑर्केस्ट्रा नहीं है, क्योंकि हमारे देश में हर कोई प्रधानमंत्री बनना चाहता है.”

खां ने कहा, “हम सामूहिक कार्य की ज्यादा परवाह नहीं करते. हर कोई एकल संगीतकार बनना चाहता है.”

लेकिन वह कहते हैं कि सामूहिक कार्य का असर दशकों तक रहता है. यही वजह है कि उन्होंने ‘समागम’ की धुनें तैयार कीं, जिसे कोई भी कहीं भी बजा सकता है.

खां ने मंच पर एक ही वक्त में लिखने और वाद्ययंत्र बजाने वाले यूरोपीय संगीतकारों से तुलना करते हुए लिखा, “हम मंच पर भगवान भरोसे जाते हैं और जो बनकर सामने आता है, हम उसे दोबारा तैयार नहीं कर सकते.”

उन्होंने कहा कि लेकिन जिंदगी के इस पड़ाव पर वह धुनें तैयार कर रहे हैं और इस सुरमयी प्रेमसंबंध का इस उम्मीद के साथ लुत्फ उठा रहे हैं कि संगीत दुनिया को एकजुट करेगा और हम शांति और सौहार्द का प्रचार कर पाएंगे.

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