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विकास के बावजूद गरीबी : सार्क

काठमांडू | एजेंसी: दक्षिण एशियाई क्षेत्र की 2000 से 2012 के बीच आर्थिक विकास दर भले ही 6.5 के औसतन ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हो, लेकिन सिर्फ तेज आर्थिक विकास के बलबूते ही गरीबी और खाद्य सुरक्षा का समाधान प्राप्त नहीं किया जा सकता. इस क्षेत्र में आज भी 32 प्रतिशत आबादी करीब 75 रुपये प्रतिदिन की कमाई पर निर्भर है. सार्क द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में ये बातें कही गई हैं.

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, ‘सार्क रीजनल पॉवर्टी प्रोफाइल’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में अभी भी 32 प्रतिशत नागरिकों को 1.25 डॉलर, करीब 75 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन की आमदनी पर जीवन व्यतीत करना पड़ता है.

रिपोर्ट के अनुसार, “इस क्षेत्र के कुछ देश हालांकि 2015 तक बेहद गरीब लोगों की संख्या आधा करने के सहस्राब्दि विकास लक्ष्य को हासिल करने की कगार पर हैं, इसके बावजूद इस क्षेत्र में सामान्यत: अति गरीबी, भुखमरी एवं कुपोषण की दर ऊंची बनी हुई है.”

दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों में खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, लेकिन देश के अंदर और विभिन्न देशों के बीच इस उत्पादन में भी काफी अंतर विद्यमान है.

उदाहरण के लिए भारत दाल और तेल को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है. वहीं पाकिस्तान गेहूं और चावल उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है.

इनके अलावा नेपाल, अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों को अनेक खाद्य उत्पादों के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है.

एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रबंधक कैटलिन वीजेन ने एक समारोह में कहा कि विश्व की सर्वाधिक गरीब जनसंख्या दक्षिण एशिया में रहती है, इसलिए इस समस्या के समाधान के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण एवं केंद्रित प्रयास करने की जरूरत है.

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