राष्ट्र

राहुल का नया अवतार

दिल्ली | एजेंसी: दिल्ली का रामलीला मैदान राजनीतिक रणभूमि का एक बार फिर गवाह बना. रविवार को आयोजित कांग्रेस की किसान रैली और उसमें राहुल गांधी की मौजूदगी को कांग्रेस के पुनर्जन्म और राहुल गांधी के नए अवतार के रूप में देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि इस रैली के बहाने कांग्रेस जहां अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाशना चाहती है, वहीं ‘अज्ञातवास’ के दौरान राहुल गांधी की रणछोर छवि को जुझारू तेवर में बदलना चाहती है.

कांग्रेस का इस रैली के बहाने राहुल गांधी को ‘री-लांच’ करना प्रमुख वजह है. हलांकि इसमें कोई गुरेज नहीं है. यह राजनीति की रणनीति का एक अहम हिस्सा है. कांग्रेस पर यह भी आरोप है कि किसान और भूमि अधिग्रहण विधेयक महज राजनीति का बहाना है. यह सच भी हो सकता है.

हालांकि हाल के दिनों में कांग्रेस और सोनिया गांधी की ओर से जिस तरह की राजनीतिक सक्रियता दिखाई गई है, वह निश्चित तौर पर कांग्रेस की सकारात्मक राजनीतिक सक्रियता की ओर इशारा करती है. लेकिन भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से इस रैली से विचलित थे.

कांग्रेस की किसान रैली के ऐन वक्त उन्होंने सासंदों की कार्यशला में बार-बार सरकार की उपलब्धियां गिनाने पर बल दिया. प्रधानमंत्री का पूरा जोर गांव, गरीब, और किसानों पर रहा. निश्चित तौर पर यह राहुल गांधी की किसान रैली का ‘डैमेज कंट्रोल’ था. लेकिन इससे एक बात साफ हो चली है कि राहुल गांधी और कांग्रेस की सक्रियता भाजपा और मोदी की सबसे बड़ी चिंता है.

सरकार के कारपोरेट प्रेम और भूमि अधिग्रहण पर ‘अड़ियल रुख’ ने मोदी सरकार पर किसान विरोधी होने का ठप्पा लगा दिया है. प्रतिपक्ष के लाख विरोध के बाद भी मोदी अध्यादेश के जरिए इस विधेयक को पास करवाना चाहते हैं. सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है, यही उसके लिए सबसे बड़ी परेशानी का कारण है.

कांग्रेस इस रैली के बहाने यह बताने में पूरी तरह सफल हुई है कि केंद्र की मोदी सरकार किसान विरोधी और उद्योग जगत की प्रेमी है. अब इसका असर किसानों और आम जनता में कितना होगा यह समय बताएगा.

कांग्रेस की उम्मीद से अधिक भीड़ भी इस रैली में जुटी थी. 56 दिनों बाद अज्ञातवास से लौटे राहुल गांधी पर सबकी निगाहें थीं. लोगों के दिल और दिमाग में यह बात थी की आखिरकार राहुल गांधी अपनी चिंतन की झोली में क्या खास लाए हंै.

सत्ता की निगाहें कांग्रेस की किसान रैली और राहुल गांधी पर टिकी थी. अगर ऐसा न होता तो उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी को सांसदों के लिए कार्यशाला आयोजित करने का कोई मतलब नहीं था. दो दिन पहले अभी प्रधानमंत्री तीन देशों की यात्रा से लौटकर आए हैं. देश को उन्हें उसके बारे में बताने की जरूरत थी.

इसके बजाय सांसदों के लिए कार्यशाला आयोजित करने की जरूरत समझी गई. उस कार्यशाला में हालांकि कोई खास बात उभर कर नहीं आई है. उन्होंने उन्हीं उपलब्धियों का गुणगान किया, जिसका वे करते आए हैं.

11 माह में उन्हें सांसदों के लिए दो-दो कार्यशालाओं का आयोजन करना पड़ा है. प्रधानमंत्री को लगता है कि विपक्ष हमलावर हो रहा है. सरकार की नीतियों की पहुंच आम लोगों तक नहीं हो पा रही है. प्रधानमंत्री की चिंता वाजिब भी है. अब तक सरकार की ओर से जितने काम किए गए हैं, उन्हें प्रचार तो अधिक मिला है पर जितने लोग इससे जुड़े हैं उसका लाभ आम लोगों को नहीं मिल रहा है.

अगर हम एलपीजी सब्सिडी की बात करें तो ग्रामीण भारत में कनेक्शनधारियों की फीसद बेहद कम है. सब्सिडी का सारा लाभ शहरी और अमीर लोग उठा रहे हैं. कांग्रेस के लिए रैली वरदान साबित हो सकती है, क्योंकि रामलीला मैदान से जितने भी आंदोलनों की शुरुआत हुई है उसका परिणाम सार्थक रहा है. अन्ना हजारे, बाबा रामदेश की ओर से कांग्रेस के खिलाफ किया गया आंदोलन अपनी परिणति को प्राप्त हुआ. यहां से ‘आप’ जैसे दल का आगाज हुआ.

इस रैली से निश्चित तौर पर कांग्रेस को बढ़त मिली है. कांग्रेस किसानों को यह संदेश देने में पूरी तरह सफल रही है कि किसानों की असली मसीहा वही है. यह बात भी सच है कि इसी बहाने कांग्रेस सत्ता में अपनी वापसी की जमीन तलाश रही है.

राहुल गांधी ने मोदी सरकार के ‘उद्योग प्रेम’ पर सीधा हमला बोला. उन्होंने कहा कि मोदी ने चुनाव जीतने के लिए उद्योगपतियों से कर्ज लिया था. उसकी अदायगी किसानों की जमीन देकर की जाएगी. राहुल ने एक बड़ी बात कही कि मोदी सरकार नींव नहीं, कंगूरों की मजबूती चाहती है. वह देश को ताअंदर खोखला करना चाहती है. उसका मेक इन इंडिया का सपना कभी पूरा नहीं होगा.

भूमि विधेयक के जरिए कांग्रेस ने किसानों की दुखती रग पर हाथ रखा है. संसद में सिर्फ 44 सीटों के आंकड़े में कांग्रेस को आंकने की गलती भाजपा को मुश्किल में डाल सकती है. हाल के दिनों में कांग्रेस और सोनिया गांधी की सक्रियता मोदी के लिए बड़ी मुसीबत बनती दिखती है.

सोनिया की अगुवाई में भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्ष की एका, राष्ट्रपति भवन तक सोनिया का मार्च, किसानों की दुखती रग पर हाथ धरने के लिए उन्होंने राहुल गांधी की गैर मौजूदगी में हरियाणा, राजस्थान समेत कई राज्यों के दौरे कर सकारात्मक राजनीति का परिचय दिया हैं.

देश के सामने कांग्रेस ने यह जताने की कोशिश की है कि वह सब कुछ आंख बंद कर नहीं देख सकती. उसके लिए संख्या बल कोई मायने नहीं रखता है. वह खुद नकारात्मक भूमिका से निकलना चाहती है. कांग्रेस बड़े आत्मविश्वास से भाजपा और मोदी पर हमला बोलने के लिए तैयार दिखती है. उधर एक छतरी के नीचे आया जनता परिवार सोने में सुहागा का काम करेगा.

राहुल ने रैली के संबोधन में ही सरकार पर सीधा हमला करते हुए कहा कि देश की सरकार उद्योगपतियों की सरकार है. हिंदुस्तान का किसान और मजदूर घबराया हुआ है. हिंदुस्तान का वजूद किसानों से है. वह हरित क्रांति के जरिए सभी का पेट भरता है. लेकिन आज का किसान बेटी के ब्याह की चिंता में मर रहा है. उसे चिंता जमीन बचाने की है.

राहुल ने किसानों की आत्महत्या के संदर्भ में विदर्भ और बुदेलखंड का भी उल्लेख किया. देश में बढ़ते नक्सलवाद के लिए औद्योगिक विकास को ही जिम्मेदार ठहराया. इसके लिए उन्होंने नीलगिरि के युवकों और वेदांता का उदाहरण दिया. भट्ठा पारसौल की बात भी सामने रखी. उनका साफ इशारा था कि जंगल और जमीन को औद्योगिक विकास के लिए न लिया जाए. हालांकि उन्होंने यह बात भी रखी कि विकास और मेक इन इंडिया जरूरी है. लेकिन उसकी नीति अलग होनी चाहिए.

मोदी सरकार के लिए राहुल गांधी ने एक और चुनौती दी. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार में 70 हजार करोड़ का कर्जमाफ किया गया था. निश्चित तौर पर यह बड़ा हमला था. देश के किसानों की हालत बेहद बुरी है. बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि से किसान तबाह हो चुका है. प्रधानमंत्री जब देश का किसान बदहाल और परेशान है. वह आत्महत्या कर रहा है. उस स्थिति में प्रधानमंत्री विदेश जाकर मेक इन इंडिया का गुणगान कर रहे हैं.

सांसदों की कार्यशाला में मोदी और रामलीला मैदान में राहुल गांधी ने कहा कि सरकार गरीबों के लिए होनी चाहिए. लेकिन यह सब मंचों पर दिख रहा है. जल, जंगल और जमीनों के जरिए राजनीति की जा रही है. किसानों को बेवकूफ बनाया जा रहा है. खाद की सब्सिडी और सिंचाई बजट को कम करने पर भी मोदी को कटघरे में खड़ा किया. इसके साथ ही कृषि विकास योजना का बजट आधा किए जाने पर भी कांग्रेस युवराज ने सवाल उठाए.

निश्चित तौर पर मोदी सरकार को इन अरोपों का जवाब देना होगा. प्रधानमंत्री अस्पताल के पहले शौचालय की बात कर रहे हैं. शहरी विकास में उन्हें गांव की भूमिका दिख रही है. जमीन विधेयक पर वे आंख में आंख मिला कर बात करने का दम भर रहे हैं. गांव की क्रय शक्ति बढ़ाने का जोर दिया है.

कायार्शाला के जरिए उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि राजनीति कहती है कि खजाना खाली करो. मनरेगा में भ्रष्टाचार उजागर करने का भी मसला उठाया. जबकि उसी मंच से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोदी पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया. किसानों को सब्जबाग दिखाने की बात कही. इसके अलावा किसानों को भरोसा भी दिलाया कि हम किसान विरोधी ताकतों का डटकर मुकाबला करेंगे.

सोनिया गांधी ने भी प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा किया. प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा के दौरान दिए गए भाषण पर भी राहुल ने सवाल खड़े किए. प्रधानमंत्री के कचरे वाले बयान की भर्त्सना की. कांग्रेस ने इस रैली के बहाने यह संदेश देने में कामयाब रही है. अब मोदी सरकार इस हमले से कैसे निपटती है यह देखने की बात है. लेकिन उसने सांसद कार्यशाला के जरिए धार को कम करने की कोशिश की हैं लेकिन वह नाकाफी है.

रामलीला मैदान की किसान रैली में राहुल गांधी और कांग्रेस नए अवतार में लौटती दिखती है. यह भाजपा के लिए चिंता का विषय है.

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