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कश्मीर के महान नेता थे मुफ्ती

जम्मू/श्रीनगर | समाचार डेस्क: मुफ्ती मुहम्मद सईद का 80वें जन्मदिन से सिर्फ चार दिन पहले निधन हो गया. वह एक कुशल वार्ताकार थे और इस बात में कोई शक नहीं कि वे कश्मीर की मुख्यधारा के अंतिम नेताओं में से एक थे.

वह भारतीय राजनीति के पुराने नेताओं में से एक थे. मुफ्ती एक बुद्धिमान नेता थे जो अतीत के साथ ही भविष्य पर भी नजर रखते थे.

हालांकि निजी तौर पर वे एक दिलदार दोस्त थे, जो अपने दोस्तों के साथ ब्रिज गेम खेलना पसंद करते थे.

वह जम्मू-कश्मीर के सबसे सलीकेदार पोशाक पहनने वाले मुख्यमंत्री थे. उनकी इज्जत और पहुंच राजनीतिक संपर्को से बढ़कर थी.

उनके करीबी अक्सर कहा करते थे कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है, यह कोई तब तक नहीं जान सकता, जब तक वह खुद न बताते थे.

वह अक्सर मरहूम शेख अब्दुल्ला की तारीफ किया करते थे- जिनके राजनीतिक वर्चस्व को उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में कड़ी चुनौती दी थी. वह शेख अब्दुल्ला को कश्मीरियों के बीच राजनीतिक जागृति पैदा करने के लिए ‘शेर-ए-कश्मीर’ कहा कहते थे.

प्रदेश के जानेमाने न्यूरोलोजिस्ट डॉ. सुशील राजदान ने बताया, “सईद एक ऐसे दोस्त थे, जिस पर आप हमेशा निर्भर रह सकते थे. उन्होंने एक बार मुझे अपने एक बीमार दोस्त की जांच करने को कहा था. वे ऐसे लोगों में से नहीं थे जो अपना काम निकालने के बाद भूल जाते हैं.”

एक चीज सईद के बारे में कही जा सकती है कि उन्हें यह स्वीकार नहीं था कि कोई उन्हें हल्के में ले. यही कारण है कि वे 23 दिसंबर को जीरो डिग्री से भी कम तापमान में उन्होंने श्रीनगर का दौरा करने का फैसला किया और वहां 14 राजकीय कार्यक्रमों में शामिल हुए.

किसी में उनसे ऐसा कहने की हिम्मत नहीं थी कि वह 79 साल के उम्रदराज व्यक्ति हैं, उन्हें हृदय रोग है, इसलिए उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. उन्हें उसी शाम निमोनिया हो गया और राज्य सरकार के हवाई एबुंलेस से उन्हें दिल्ली लाया गया.

सईद के परिवार में पत्नी गुलशन आरा, बेटा मुफ्ती तसादुक सईद और तीन बेटियां- महबूबा मुफ्ती, मेहमूदा मुफ्ती और रुबिया सईद और दो नातिनी इल्तिजा इकबाल व इरटिका इकबाल को छोड़ गए हैं.

सईद का जन्म 12 जनवरी, 1936 को ‘पीर’ परिवार में हुआ था. उनकी आजीविका धार्मिक कर्मकांडों से चलती थी. सईद ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अनंतनाग जिले के दक्षिण कश्मीर स्थिर बिजवेहरा शहर में कांग्रेस पार्टी के साथ की थी.

उन्होंने एक बार कहा था, “मैं कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद जिला अध्यक्ष बनना चाहता था. लेकिन वह पद उनके वरिष्ठ साथी को मिल गया.”

कश्मीर में उस जमाने में नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक और प्रसिद्ध कश्मीरी नेता मरहूम शेख मुहम्मद अब्दुल्ला की बड़ी धाक थी.

सईद के सामने उस वक्त शेख अब्दुल्ला की राजनीतिक पकड़ के सामने खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती थी.

मुफ्ती सईद के एक दोस्त बताते हैं, “यह कुछ ऐसा काम था जिसे करना आसान नहीं था, क्योंकि वे कश्मीरियों के लिए एक राजनेता से कहीं बढ़कर थे. उनको चुनौती देना बहुत अधिक जोखिमपूर्ण काम था.”

लेकिन सईद ने जमीनी स्तर पर एक कर्मठ सिपाही की तरह मेहनत करते हुए कार्यकर्ताओं की फौज तैयार की, जिसके बूते कांग्रेस पार्टी नेशनल कांफ्रेंस को चुनौती दे सकी. हालांकि बाद में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया. राजनीतिक विशेषज्ञों ने इसका कारण अब्दुल्ला परिवार से उनकी दुश्मनी को बताया.

उनकी बेटी और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने 2014 में दिए गए एक इंटरव्यू में कहा, “हम एक बिनम्र ग्रामीण परिवार से हैं और यह सवाल उठाना गलत होगा कि अब्दुल्ला परिवार को हम निजी महत्वाकांक्षा या सत्ता के लिए चुनौती देते हैं.”

“मुफ्ती साहब हमेशा अपने लोगों के लिए बेहतर डील चाहते थे और अपने समूचे राजनीतिक जीवन में उन्होंने ऐसा ही किया.”

मुफ्ती सईद ने श्रीनगर कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की थी और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अरबी में परास्नातक की उपाधि हासिल की थी. सईद पहली बार 1964 में जी.एम. सईद की अगुआई में बनी कांग्रेस सरकार में एक कनिष्ठ मंत्री बने थे. बाद में वे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने. कांग्रेस उसी दौर में नेशनल कांफ्रेस को चुनौती देने लायक बन सकी.

वह 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुआई में बनी जनता दल सरकार में भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री बने थे.

उनके कार्यकाल के दौरान ही उनकी बेटी डॉ. रुबिया सईद का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था. रुबिया की रिहाई राज्य सरकार द्वारा सात आतंकवादियों को छोड़ने के बाद हुई थी.

सईद ने ही 1990 के दशक में जगमोहन को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाने में अहम भूमिका निभाई थी, जब वहां आतंकवाद चरम पर था.

सईद ने 1999 में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया. इस पार्टी ने 2002 के विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे और 87 विधानसभा सीटों में 17 पर जीत हासिल की.

सईद ने पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन की सरकार में दिसंबर 2002 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और नवंबर 2005 तक वे अपने पद पर बने रहे.

साल 2014 के विधानसभा चुनावों में पीडीपी को 28 सीटें मिलीं. किसी दल को बहुमत नहीं मिलने के कारण कई दिनों तक विधानसभा स्थगित रही. आखिरकार उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई.

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