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एमपी में सियासी रंगत फीकी

भोपाल | एजेंसी: चुनाव आयोग द्वारा मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही राज्य में सियासत का रंग कमजोर पड़ने लगा है.

अब सड़कों पर दौड़ती इक्का-दुक्का गाड़ियों पर ही पार्टियों के झंडे नजर आ रहे हैं, जबकि हर तरफ नजर आने वाले नेताओं और राजनीतिज्ञों के बड़े से लेकर छोटे होर्डिग और बैनर गायब हैं.

चुनाव की तारीख की घोषणा होने के साथ राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू कर दी गई है. इसके बाद से राज्य में सरकारी मशीनरी की सक्रियता बढ़ गई है. राजधानी भोपाल से लेकर गांव की गलियों तक में लगे राजनीतिक दलों से जुड़ी हस्तियों की तस्वीरों और बैनरों को हटाने का अभियान शुरू कर दिया गया है.

राज्य में आचार संहिता लगने से पहले की स्थिति पर गौर करें तो अधिकांश सड़कें और गलियां नेताओं की तस्वीरों से लेकर सरकार की योजनाओं से पटी पड़ी थीं. हर तरफ राजनेताओं की तस्वीरों के पोस्टर, होर्डिग ही नजर आते थे. कार्यकर्ता अपने नेता को खुश करने के लिए उनकी तस्वीरों और पार्टियों के बड़े बड़े होर्डिग आए दिन लगाते थे.

इससे सबसे ज्यादा परेशानी उन कंपनियों को होती थी, जो अपनी योजनाओं के जरिए ग्राहकों को लुभाने के लिए शहर में होर्डिग लगाते हैं. क्योंकि इन निजी कंपनियों के विज्ञापन होर्डिग के ऊपर हर बार किसी न किसी राजनीतिक दल का पोस्टर चस्पां मिलता था.

अब राजधानी भोपाल की सड़कें हो या राज्य के दूसरे प्रमुख शहरों की सड़कें, सभी जगहों से शनिवार को राजनीतिक दलों और नेताओं के पोस्टर, होर्डिग व बैनर गायब दिखे. इतना ही नहीं बिजली के खंभे और सड़क डिवाइडर भी अब पोस्टर रहित और साफ सुथरे नजर आ रहे हैं. अब हाल यह है कि कोई भी राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता अब सड़क पर होर्डिग, बैनर आदि लगाने से कतरा रहे हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह का कहना है कि चुनाव नजदीक आने पर आचार संहिता लागू होते ही राजनीतिक दल ताकत विहीन हो जाती है. चुनाव आयोग की सख्ती अब सभी जान चुके हैं. यही कारण है कि आचार संहिता के बाद राजनीतिक दलों और नेताओं का अंदाज बदला नजर आता है. सभी को डर रहता है कि कहीं उनके किसी कदम को चुनाव आयोग विधि के विरुद्घ न मान ले. इतना ही नहीं प्रचार का खर्च पार्टी के खाते में जुड़ने का भी भय रहता है.

प्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी जयदीप गोविंद ने शनिवार को बताया कि आचार संहिता लगने के बाद पोस्टर, होर्डिग और बैनर हटाने का अभियान चलाया जा रहा है. अब तक हजारों की संख्या में पोस्टर, बैनर हटाए जा चुके हैं.

चुनाव आयोग के सख्त रवैये को देखते हुए एक तरफ जहां सडकें साफ सुथरी नजर आ रही हैं, तो दूसरी ओर समाचार पत्रों और क्षेत्रीय टीवी चैनलों से राजनीतिक विज्ञापन गायब हो चुके हैं. कुल मिलाकर सड़क से लेकर संचार माध्यम तक राजनीतिक विज्ञापनों से खाली हैं.

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