Columnist

जनादेश नहीं, जनाक्रोश

विष्णु खरे
यह जनादेश नहीं, कांग्रेस और उसके पिछले दस वर्षों के सहयोगियों के कुशासन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐतिहासिक जनाक्रोश है. जो हम कथित बुद्धिजीवियोंको सोनिया-राहुल-मनमोहन-चिदंबरम् के ख़िलाफ़ लगातार करना चाहिए था वह भारतीय जनता ने चंद हफ़्तों में कर दिखाया.नेहरूजी के इस पचासवें पुण्यतिथि वर्ष, मास में कांग्रेस का यह अधःपतन अत्यंत प्रतीकात्मक है. गांधीजी की कांग्रेस को भंग करने की सलाह अपने-आप चरितार्थ हो रही है.

अब एक उम्मीद इसी में है कि अपने तरुण गोगोई और पराये नीतीश कुमार से सबक लेते हुए मां-बेटा दोनों पार्टी-पदों से इस्तीफे दे दें और उन्हें वापिस न लें. कांग्रेस की बागडोर कमलनाथ सरीखे किसी विश्वस्त,शाइस्ता,रणनीति-कुशल चाणाक्ष नेता को सौंप दी जाए. कुख्यात वड्रा को आसपास फटकने न दिया जाए.प्रियंका भी इसे समझे.वर्ना कांग्रेस का सवा-सत्यानास गारंटीशुदा है.

कुछ फ़िरक़ापरस्त तत्वों के बावजूद इसे साम्प्रदायिक वोट समझना ग़लत होगा.लोगों ने एक अयोग्य,निकम्मी और दूषित सरकार को उखाड़ फेका है और उसके सामने भाजपा को चुनने के अलावा कोई विकल्प था ही नहीं.यह अवश्य है कि जातियों के ध्रुवीकरण हुए हैं और एक नव-मंडलवाद उभरता दिखाई दे रहा है. जो सज़ा व्यापक रूप से सोनिया गांधी को मिली है वही यू पी में मायावती को सुनाई गयी है. यादव पिता-पुत्र का भविष्य भी अंधकारमय है.’’आप’’ ने जिस दिन दिल्ली से इस्तीफा दिया था, उसी दिन ख़ुदकुशी भी कर ली थी.

महाराष्ट्र में कांग्रेस और देश के शायद सबसे कुख्यात और अब ग़ैर-ज़रूरी, नेता शरद पवार को भी उनकी वक़त दिखा दी गयी है. अगले विधान-सभा चुनाव में दोनों की दुर्गति सुनिश्चित है.लेकिन यूपी-बिहार (और मुम्बई) में लोगों ने जिन कारणों से ही सही. जो भारी समर्थन भाजपा को दिया है उसके कारण ‘’भय्यों’’ के ख़िलाफ़ शिवसेना-मनसे का विष-वमन सदा-सर्वदा के लिए बंद होना चाहिए.

अपनी मूर्खता और भद्रलोकवाद के कारण वामपंथ का लगभग सफ़ाया हो गया है. सीपीआइ का तो कोई वजूद ही नहीं रहा. जब तक वामदल हिंदी प्रदेश में जड़ें नहीं जमाते,या एक नई हिन्दीभाषी कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना नहीं होती, तब तक करात-दम्पति या येचुरियों जैसों से हर उम्मीद बेकार है.

इसमें कोई शक़ नहीं कि फ़ायर-ब्रिगेड की घंटी बजा देने या कुछ संदेह-लाभ न देने से अभी कुछ महीनों तक कोई लाभ नहीं होगा,बल्कि शायद नुकसान ही हो सकता है,लेकिन भाजपा-आरएसएस ने मोदी के रूप में देश के लिए ही नहीं,खुद अपने लिए एक जिन्न या भस्मासुर छुट्टा छोड़ दिया है. उसके नेतृत्व में ऐसी महती विजय के बाद पार्टी के हर महत्वाकांक्षी प्रतिद्वंद्वी नेता-नेत्री की घिग्घी बंध गयी है.

सच तो यह है कि भावनात्मक रूप से आज देश के अधिकांश वोटर, पूंजीपति, एन्काउन्टरवादी पुलिसवाले और शाश्वत अवसरवादी नौकरशाह मोदी को वाइमार रिपब्लिक के ज़माने के हिटलर जैसे तानाशाही अधिकार देने को तत्पर हैं. अब हर दूसरी पार्टी भी भाजपा का मोदी-मॉडल आजमा सकती है और ‘’प्रजातंत्र का अंतिम क्षण है कहकर आप हँसे’’ सरीखी रघुवीरीय स्थिति की कल्पना की जा सकती है.

देश की ग़रीबी,ग़ैर-बराबरी, शोषण, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, धर्मान्धता, दकियानूसियत, स्त्री के प्रति अन्याय,अमेरिकी बाज़ारीकरण,देशी-विदेशी सांस्कृतिक प्रदूषण और पतन ,अंध-मध्यवर्गवाद,अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य आदि को लेकर जो लोग सक्रिय और आशंकित हैं, उन्हें अगले वर्षों में बहुत जागरूक, निडर, एकजुट और हर किस्म के अन्याय,अत्याचार और ज़मीनी युद्ध के लिए तैयार रहना होगा.
*लेखक हिंदी के शीर्ष कवि और पत्रकार हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!