प्रसंगवश

व्यापारियों पर माओवादी हमले और विरोध

सुरेश महापात्र
अब नक्सलियों द्वारा दक्षिण बस्तर में व्यापारियों पर जानलेवा हमलों की शुरूआत की गई है. पहले पालनार बाजार में एक सर्राफा व्यवसायी और उसके बाद तुमनार बाजार में गल्ला व्यापारी संतोष गुप्ता की मौत ने दक्षिण बस्तर की जीवन रेखा को चिंतित कर दिया है.

यहां लगने वाले साप्ताहिक बाजार आदिवासियों की जीवन रेखा का काम करते हैं. इसमें दूर-दराज से पहुंचने वाले व्यापारियों का बहुत बड़ा योगदान होता है. इससे स्थानीय स्तर पर वनोपज की खरीद-बिक्री तो होती ही है साथ ही अन्य शहरी जरूरतों की पूर्ति भी पूरे सप्ताह भर के लिए करने का माध्यम बनता है. दक्षिण बस्तर में पहुंच विहिन बहुत से इलाकों में ऐसे साप्तहिक बाजार आदिवासियों की आवश्यकताओं की पूर्ति का बड़ा माध्यम रहे हैं.

अब माओवादी सीधे इस जीवन रेखा पर चोट पहुंचा रहे हैं. संतोष गुप्ता की हत्या से उपजे सवालों में बेहद महत्वपूर्ण यह है कि व्यापारी के रूप में बेहद सज्जन और सरल स्वभाव के व्यक्ति पर आखिर माओवादियों ने क्या सोचकर हमला किया? क्या अब वे अपने वसूली के लिए बचे खुचे सिद्धांतों को भी ताक पर रखने पर उतारू हो गए हैं? अगर ऐसा नहीं है तो फिर ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी जो संतोष गुप्ता की मौत से माओवादियों को हासिल हो सकी. इसका रहस्योद्घाटन उन्हें करना चाहिए.

अपने ही कैडर की हत्या के बाद से माओवादियों के कैंप में बढ़ी बेचैनी को महसूस किया जा सकता है. एक प्रकार से अब माओवादी वैचारिक रूप से कमजोर होने के बाद दबाव के लिए जो हथकंडे अपना रहे हैं उससे उन्हें फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा, यह तय है. लोगों का भरोसा और भी कम होगा.
यह बात सामने आती रही है कि माओवादी अपनी आर्थिक जरूरतों की पूर्ति के लिए लेव्ही की वसूली करते रहे हैं. इसके लिए वे तमाम आर्थिक संसाधनों से जुड़े लोगों पर दबाव बनाते रहे हैं. पर वसूली के लिए सीधे हत्या जैसे मामलों का सामने आना निश्चित तौर पर आम जनमानस के लिए चिंताजनक है.

व्यापारी की हत्या के विरोध में आज दंतेवाड़ा और गीदम बंद सफल रहा. व्यापारियों द्वारा बंद के द्वारा यह जताया गया है कि इस मौत ने पूरे व्यापारी समाज को आहत किया है. बड़ी बात यह है कि व्यापारियों का ही एक वर्ग ऐसा भी है जो माओवादियों को रुपया, संसाधन मुहैया करवाता है. इसकी आड़ में वे कीमत भी वसूलते हैं.

हाल ही में कबाड़ी व्यापार से जुड़े एक व्यापारी समूह द्वारा माओवादियों को जिस तरह की सहायता पहुंचाई जाने की पुष्टि हुई है, उससे आम जनमानस चिंतित भी है. आईजी एसआरपी कल्लूरी ने तुमनार हमले के बाद गीदम में इस आशय को लेकर जो चेतावनी दी है, वह भी गौरतलब है.

पुलिस के पास जो सूचना थी उसके मुताबिक माओवादियों ने व्यापारियों से वसूली के लिए संपर्क किया है. इसकी सूचना व्यापारियों ने अपनी ओर से नहीं दी. जब तक पुलिस को इस बात की सूचना नहीं होगी तो उस पर कार्रवाई के लिए दबाव कैसे बनाया जा सकता है?

दक्षिण बस्तर में माओवादियों में मचे घमासान की खबरों के बीच इस तरह के हमले बड़ी चेतावनी है. बस्तर को हाट बाजार से पहचाना जाता है. अगर इसके साप्ताहिक हाट बाजार पर संकट के बादल गहरा गए तो अंदरूनी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को बड़ा नुकसान होगा. इसकी भरपाई करने की स्थिति में नक्सली भी नहीं होंगे.

माओवादी भी इस बात को अच्छे से समझते हैं कि अगर अंदरूनी इलाकों में बाजार बंद हो गये तो उन्हें ज्यादा दिक्कत होगी. किसी भी समाज में व्यापार की सफलता ही विकास का आधार होता है. आर्थिक रीढ़ पर हमला क्षेत्र को अक्षम बना सकता है. दक्षिण-पश्चिम बस्तर के कई बड़े साप्ताहिक बाजारों के बंद होने के बाद उसके पुन: प्रारंभ करने के लिए प्रयास किए गए. जिसे आंशिक सफलता प्राप्त हो पाई है. ऐसे में व्यापारियों पर साप्ताहिक बाजारों में किए जा रहे हमले बेहद चिंताजनक हैं.

बड़ी बात यह है कि अगर सही मायने में व्यापारी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें दाई से पेट छिपाने का काम नहीं करना चाहिए. उन्हें अपनी हर जायज चिंता सरकार व प्रशासन के सामने मुखर होकर रखना होगा. मौतों के बाद विरोध प्रदर्शन और बंद से तब तक कुछ भी हासिल नहीं हो सकता जब तक व्यापारी अपने बीच में छिपे ऐसे बहुरूपियों को बेनकाब करने के लिए सामने ना आएं. बहरहाल बस्तर की जीवन रेखा पर माओवादी हमले और उसके विरोध का भविष्य तय नहीं है.

* लेखक दंतेवाड़ा से प्रकाशित ‘बस्तर इंपैक्ट’ के संपादक हैं.

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