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सूखती फसलों की चिंगारी

भ्रष्टाचार की अमरलताएं पटवारी से शुरू जरूर होती हैं पर कहां तक जाती हैं, इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है. भाकिसं के प्रदेश महामंत्री रविदत्त बताते हैं कि जब सोयाबीन के फूल सूखे थे उसी समय उनके संगठन ने प्रभावित संभाग के कमिश्नरों को ज्ञापन देकर मांग की थी कि अभी समय है, सर्वे कर लीजिये क्योंकि, जब फूल सूख गए तो फल कहां से होंगे. पर तब किसी अधिकारी ने गौर नहीं किया. अब जबकि खेतों से सूखी फसल हटाकर जुताई कर दी गई है, वे पूछ रहे हैं कि कहां कितनी फसल थी. ‘सबकी नीयत खराब है, सबके सब भ्रष्ट हैं.’ नियम इतने सारे हैं कि किसी न किसी नियम की आड़ में राहत रोक दी जाती है. गुढ़ के कांग्रेस विधायक सुंदरलाल तिवारी बताते हैं कि हर साल करीब 50 फीसदी राहत राशि बंट ही नहीं पाती है.

भाकिसं अध्यक्ष बीज और खाद की आपूर्ति में व्यापक भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए बुंदेलखंड का उदाहरण देते हैं जहां नकली बीज की आपूर्ति कर दी गई. ‘ बताइये, किसान इतनी मेहनत से खेत जोतता है, बीज डालता है. सिंचाई करता है. और फसल की उम्मीद में टकटकी लगाए रहता है. बाद में उसे यह पता चले कि फसल इसलिए नहीं हुई कि बीज नकली था तो कैसा लगेगा? यही हो रहा है इस सरकार में.’ बुंदेलखंड राज्य का वैसा इलाका है जहां हमेशा से जल संकट रहा है. पिछले कुछ सालों में यहां स्थिति बद से बदतर होती गई है. सिंचाई तो क्या पीने का पानी मिलना भी कठिन होता जा रहा है. बड़े पैमाने पर इलाके के लोग पलायन कर रहे हैं.

सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि इतनी खराब स्थिति है तो जनता बार-बार शिवराज सिंह के हाथ में अपना भविष्य क्यों सौंप रही है? विपक्ष उनपर दबाव क्यों नहीं बना पा रहा है? और सबसे बड़ा सवाल यह कि किसान सबकुछ खामोशी से बर्दाश्त क्यों कर रहा है? इनके जवाब खोजते समय कई नए सवाल खड़े हो जाएंगे.

राजमणि धमकाते हैं कि अब भाजपा को वोट नहीं देंगे. दिव्यराज सिंह विधायक हैं, कभी आते ही नहीं. अब किसे वोट देंगे? ‘किसी को भी दे देंगे, पर भाजपा को नहीं.’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषांगिक समझा जाने वाला भारतीय किसान संघ भाजपा सरकार के खिलाफ विद्रोह का विगुल फूंक चुका है. ‘ हम तो लोहिया के शिष्य हैं, हमें संघ से कोई लेना-देना नहीं है. हम जान चुके हैं कि राज्य में चौहान सरकार और केंद्र की मोदी सरकार किसानों की दुश्मन है और कारपोरेट के लिए काम करती है.’ अध्यक्ष शर्मा बिना किसी हिचकिचाहट के यह बात कह रहे हैं कि चौहान ने सिर्फ झूठ बोलकर किसानों को मूर्ख बनाया है.

दूसरी तरफ सुंदरलाल तिवारी यह नहीं मानते कि विपक्ष कुछ नहीं कर रहा है. राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 163 के मुकाबले महज 57 सीटें हासिल करनेवाली कांग्रेस के विधायक तिवारी मानते हैं कि सरकार जो कर रही है वह कांग्रेस के दबाव का ही नतीजा है. उनके दबाव में ही सूखाग्रस्त इलाके घोषित किए गए हैं. अब उनकी मांग है कि सरकार बिजली बिल मांफ करें, कर्ज की वसूली रोके और इंश्योरेंस समाप्त करें क्योंकि यह बेकार है. वे भरोसा जताते हैं कि कांग्रेस के दबाव में सरकार ऐसा करने पर विवश हो जाएगी. इसके लिए आंदोलन की तैयारी की जा रही है. हालांकि वे इसका कोई जवाब नहीं दे पाए कि राज्य कांग्रेस की कोई एकजुट आवाज क्यों नहीं सुनाई पड़ रही?

जहांतक किसानों की बात है, भाकिसं नेता कहते हैं कि वह अपने खेत से बंधा होता है. अभी वह अपनी बची खुची फसल को सहेजने में लगा है. फिर अगली फसल की तैयारी में लग जाएगा. किसान आंदोलनों में नहीं पड़ना चाहता. ‘वह सरकार की दमनकारी नीति से घबराता है. ऐसे आंदोलनों के बाद सरकार 300 लोगों को गिरफ्तार करती है तो 900 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लेती है.’ अब ये अज्ञात ऐसा शब्द है जिससे कभी भी किसी को फंसाया जा सकता है. यहां से शुरू होता है सरकारी दमन. किसान खेती करेगा या मुकदमेबाजी? ‘लेकिन अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है. इतनी परेशानी तो कांग्रेस के शासन में भी नहीं होती थी. तब हम संघ में ही थे लेकिन कभी कांग्रेसी सीएम से अपनी बात रखने में परेशानी नहीं हुई. अगर पचास मांगें रखी जाती थी तो 15-20 तो मान ही ली जाती थी. पर यह सरकार तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं है.’

जाहिर है कि अपने भी अब शिवराज सरकार का साथ छोड़ने लगे हैं. भूमि अधिग्रहण विधेयक पर पार्टी लाइन तोड़कर किसानों ने एकजुटता दिखाई तो मोदी को झुकना पड़ा. बिहार चुनाव के नतीजे मोदी विरोधियों को एकजुट होने का संदेश दे चुके हैं. भाकिसं की राज्य इकाई पर 2013 में संघ विरोधियों का कब्जा हो चुका है. भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे देशभर के किसान संगठनों ने 22-24 अक्टूबर तक चंडीगढ में व 2-4 नवंबर तक बंगलूर में डेरा जमाया था. अब ये दिसंबर में जयपुर में सम्मेलन करनेवाले हैं.

उसके बाद जनवरी में किसी समय मध्यप्रदेश में भी इनका जुटान होगा. यह मांग की जा रही है कि सरकार किसानों के लागत मूल्य देने की गारंटी ले. शिवकुमार हूंकार भर रहे हैं कि ऐसा न होने पर सरकार को उखाड़ फेकेंगे. पर बदले में किसे लाएंगे? इस सवाल पर वे ठहर जाते हैं. ‘किसी को भी जो किसानों के हक की बात करें.’ राज्य में कौन हो सकता है? क्या कांग्रेस? वे कहते है कि ‘जरूरत पड़ी तो कांग्रेस का भी समर्थन करेंगे.’ 21 नवंबर को हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से रतलाम-झाबुआ सीट छीन ली है. कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के दिवंगत सांसद दिलीप सिंह भूरिया की विधायक पुत्री निर्मला भूरिया को 88 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया है. सहानुभूति लहर को दरकिनार कर क्षेत्र की आठ में से सात विधानसभा सीटों (सभी ग्रामीण क्षेत्र) पर कांग्रेस को जीत मिली है. सिर्फ शहरी क्षेत्र रतलाम में ही भाजपा सफल रही है.

ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या राज्य के किसान वाकई भाजपा सरकार से इतने त्रस्त हो चुके हैं कि कांग्रेस राज में लौटना चाहेंगे? इसका जवाब हालांकि अभी नहीं दिया जा सकता. मुन्ना सिंह कहते हैं, अभी कोई राजनीतिक विकल्प नजर नहीं आ रहा. किसान नेता शर्मा कहते हैं- ‘बिहार ने देश को बचाने का रास्ता बता दिया है.’

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