प्रसंगवश

कैराना पर हुकुम सिंह से 10 सवाल

नई दिल्ली | सुदीप ठाकुर: भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने उनके क्षेत्र कैराना से पलायन करने वाले हिंदुओं की सूची जारी की है. उनकी पार्टी इसे 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन जैसा भी बता रही है. मैं उनकी सूची की गड़बड़ी पर कुछ नहीं कह रहा हूं, मैं उन लोगों की बात कर रहा हूं, जिन्होंने सचमुच धमकियां मिलने के बाद अपना घरबार छोड़ दिया. मीडिया में जो खबरें आई हैं, उनसे भी पता चलता है कि कैराना से पिछले करीब दो दशक से अनेक लोगों ने पलायन किया है. इनमें से अनेक लोग रोजगार के सिलसिले में दूसरे शहर या दूसरे प्रदेश तक चले गए. मीडिया में आई खबरों से यह भी पता चलता है कि उनमें से अनेक लोगों ने इसलिए कैराना छोड़ दिया, क्योंकि उनके परिवार में से किसी की हत्या कर दी गई या फिर उन्हें ऐसी धमकियां मिलीं कि उनका वहां रहना मुश्किल हो गया.

पलायन इस देश के लिए कोई नई बात नहीं है. यदि आजादी के बाद से देखें तो इस देश के विभिन्न हिस्सों से करोड़ों लोगों ने पलायन किया है, जिनमें ऐसे लोगों की संख्या अधिक है, जिन्हें विकास के नाम पर बनाई जा रही परियोजनाओं के कारण पलायन करना पड़ा है. झारखंड, उडीसा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हर वर्ष लाखों लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं. मैंने लोगों को आधी रात को ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से रोजगार और जीवनयापन के लिए पलायन करते देखा है. पलायन वाकई एक बड़ी त्रासदी है. उसकी पीड़ा वही समझ सकता है, जिसे अपना घरबार छोड़ना पड़ता है.

मगर कैराना का मामला अलग है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मई, 2014 के लोकसभा चुनाव से एक-डेढ़ वर्ष पहले से हालात बिल्कुल बदल गए हैं. 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगे, वह प्रस्थान बिंदु है, जहां से इसे समझा जा सकता है.

हुकुम सिंह और उनकी पार्टी तथा उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार इसे बखूबी जानती है. इसके पीछे कौन से कारण रहे हैं, उन्हें यहां दोहराने की जरूरत नहीं है. यह क्यों नहीं माना जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों की वजह से इस मुद्दे को फिर से उठाया जा रहा है. हुकुम सिंह कम से कम पांच बार विधायक भी रहे हैं और अभी तो वे सांसद हैं ही. पत्रकारिता की मेरी सामान्य समझ यह कहती है कि जन प्रतिनिधियों को उनके क्षेत्र में होने वाली घटनाओं की जानकारी होनी ही चाहिए. मेरे कुछ सवाल हुकुम सिंह जी से हैं-

1. यदि वहां से जैसा कि आपकी पार्टी कह रही है कि विगत दो वर्षों से हिंदुओं का पलायन हो रहा था, आपको सबसे पहले इस बारे में कब पता चला?

2. यदि कैराना में हालात बिगड़ रहे थे, तो जनप्रतिनिधि होने के नाते आपने क्या किया?

3. अमूमन सांप्रदायिक सदभाव बनाए रखने के लिए हर जिले में जिला कलेक्टर और जनप्रतिनिधि की पहल पर सद्भावना या शांति समिति वगैरह बनाई जाती हैं. क्या आपने ऐसी कोई पहल की?

4. आप इतने लंबे समय से वहां के जनप्रतिनिधि हैं तो क्या आपको पता नहीं था कि आपके क्षेत्र में कुछ लोग माहौल को बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं. क्या आपने इसे रोकने की कोई पहल की?

5. क्या कैराना में पलायन के पीछे मुजफ्फरनगर दंगों का कोई संबंध है?

6. ऐसा क्यों है कि आपने यह मुद्दा उस वक्त उठाया जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी?

7. क्या इस मुद्दे का कोई संबंध उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों से भी है?

8. पलायन की जानकारी आने के बाद क्या आपने उत्तर प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार को इसकी जानकारी दी?

9. जब आपके संज्ञान में लाया गया कि आपके क्षेत्र से लोग पलायन कर रहे हैं तो क्या आपने लोगों को रोकने और सद्भावना बनाए रखने की कोई पहल की?

10. यह मुद्दा कोई राजनीतिक या सांप्रदायिक रूप न ले ले, क्या इसके लिए आप कोई पहल कर रहे हैं? आखिर संगीत को किराना घराना जैसी विरासत देने वाले इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व होने के नाते यहां की गंगा-जमुनी तहजीब को संरक्षित रखने का कुछ हक तो आपका भी बनता ही है. यकीन मानिए अभी भी वक्त है आप खुद ही वहां शांति और सद्भाव कायम करने की पहल क्यों नहीं करते ?

(लेखक नई दिल्ली अमर उजाला अख़बार के स्थानीय संपादक हैं.)

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