प्रसंगवशराष्ट्र

ये भी बोले

कनक तिवारी
कांग्रेस में इन दिनों सबसे व्यस्त महासचिव जनार्दन द्विवेदी हैं. तहसीलदार, डिप्टी कलेक्टर, कलेक्टर होते हुए अधिकारी राज्य शासन के सचिव बन जाते हैं.

द्विवेदी की पदोन्नति भी वैसी ही हुई है. कांग्रेस अध्यक्ष का बस्ता लेकर चलना और उनके निर्देश पर दफ्तर का पूरा काम करना प्रभारी महासचिव की जिम्मेदारी होती है. स्वामिभक्ति और परिश्रम में कांग्रेस मुख्यालय में कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा और जनार्दन द्विवेदी का कोई मुकाबला नहीं है.

द्विवेदी पहले अध्यापक थे और वे लेखक भी हैं. बड़ी प्रसिद्धि उन्हें नहीं मिली. फिर भी एकनिष्ठ रहे हैं. इन दिनों वे अचानक मुखर बल्कि वाचाल हो रहे हैं. उन्होंने एक विचारक का मुखौटा ओढ़ लिया है. पहले वे उच्च कमान की ओर से निर्देशित अधिकृत बयान दिया करते थे. अब अपनी निजी राय दे रहे हैं.

उन्होंने पहले यह कहा कि 2009 के चुनाव में कांग्रेस 206 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी. फिर भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण उसे सरकार नहीं बनानी थी. द्विवेदी ने यह नहीं बताया कि कांग्रेस से आधी सीटों वाली भाजपा कैसे सरकार बनाती. तब देश का क्या होता? संविधान के प्रावधानों के अनुसार केन्द्र में राष्ट्रपति शासन तो लगता नहीं. फिर चुनाव होता. छह महीनों में जनता यदि फिर किसी को बहुमत नहीं देती. तब क्या होता?

अब महासचिव ने राहुल गांधी को कांग्रेस के घोषणापत्र में यह मुद्दा शामिल करने का सुझाव दिया है कि जाति आधारित आरक्षण संविधान में खत्म होना चाहिए. उनका यह कहना ठीक है कि आदिवासी दलित और पिछड़े वर्गों में आरक्षण का लाभ केवल मलाईदार तबका उठाता है, लेकिन इसका उत्तर आरक्षण को खत्म करने से नहीं मिलेगा. कुछ जातियां सदियों से पीड़ित हैं. उनके लिए आरक्षण तब तक लागू रखना होगा, जब तक शिक्षा, संस्कृति, आर्थिक समृद्धि और सामाजिक स्वीकृति के आधार पर जातीय समरसता हासिल नहीं हो जाए.

कांग्रेस में ही अर्जुन सिंह रहे हैं जिनके आग्रह के कारण संविधान संशोधन किया गया. पदोन्नति में भी जातीय आरक्षण का प्रावधान रचा गया. अनारक्षित वर्ग के कुलीन लोग अपने कारणों से नाक मुंह सिकोड़ते हैं. आरक्षण के मुद्दे पर ही मंडल कमीशन के हथियार से कमंडल वाली पार्टी को परास्त कर विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए थे. आज भी छत्तीसगढ़ में विदर्भ के इलाके से आए महार लोगों को जातीय आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है. वह उन्हें महाराष्ट्र में उपलब्ध है.

जाति प्रथा की गंदगी ढोता यह देश दुनिया में सबसे बुरी हालत में है. यह तो ब्राह्मणवादी व्यवस्था को सोचना होगा कि कब और कैसे यह कुप्रथा सांप के फन की तरह तथाकथित पिछड़ी जातियों के भविष्य पर फन काढ़कर इतिहास में आई. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी के अनारक्षित वर्ग का सोच जनार्दन द्विवेदी के मुंह से वक्त की दहलीज़ पर बोलता हुआ आया है. पता नहीं भविष्य क्या करेगा.
* उसने कहा है-8

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