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यह कैसा ‘मेक इन इंडिया’

जेके कर
मेक इन इंडिया के तमाम दावों के बावजूद भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. कम से कम पिछले तीन सालों का सरकारी आकड़ा यही चीख-चीखकर कह रहा है. देश का व्यापार घाटा बढ़ने से तात्पर्य है कि हमारे देश से कम माल विदेशों में जा रहा है तथा विदेशों से ज्यादा माल हमारे देश में आ रहा है. नतीजा देश से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा विदेशों में चली जा रही है.

उदाहरण के तौर पर घर का कोई सदस्य किसी अन्य शहर में नौकरी करने जाता है तथा घर में पैसे भेजने की बजाये घर से पैसे मंगाकर अपना काम चलाता है. ऐसे में उसे दूसरे शहर जाकर नौकरी करने की क्या जरूरत है?

हालांकि, व्यापार घाटा अपने आप में एक पेचीदा विषय है परन्तु उपरोक्त उदाहरण आंख खोलने के लिये पर्याप्त है.

याद कीजिये साल 2013 को जब कार्पोरेट घराने इस बात पर मनमोहन सिंह पर ख़फा थे कि उऩके व्यापार के लिये अनुकूल परिस्थिति का निर्माण नहीं किया जा रहा है. उस समय मोदी के रूप में भारत में उन्हें आशा की एक नई किरण नज़र आई जिसने पश्चिम बंगाल से भगाई गई टाटा नैनो को अपने यहां पनाह दी थी.

मनमोहन सिंह के जमाने में भी भारत का विदेश व्यापार घाटे का सौदा रहा है तथा मोदी के जमाने में अच्छे दिन आने के बावजूद भी वह घाटा होता ही चला जा रहा है. देश का निर्यात घटने का अर्थ है कि भारत में उत्पादित वस्तुयें विदेशों में कम जा पा रही है.

साल 2013-14 में भारत ने विदेशों को 19,05,01,108.86 लाख रुपयों का निर्यात किया तथा 27,15,43,390.74 लाख रुपयों के वस्तुओं का आयात किया.

साल 2014-15 में भारत ने विदेशों का 18,96,34,841.76 लाख रुपयों के माल का निर्यात किया तथा आयात उस साल 27,15,43,390.74 लाख रुपयों का था.

साल 2015-16 में भारत से निर्यात 14,11,33,860.22 लाख रुपयों का तथा आयात 21,01,93,152.06 लाख रुपयों का हुआ.

इसी तरह से साल 2013-14 में भारत का व्यापार घाटा 8,10,42,281.88 लाख रुपयों का हुआ.

यही व्यापार घाटा साल 2014-15 में बढ़कर 8,40,73,816.08 लाख रुपयों का हो गया.

इसी तरह से साल 2015-16 में 10 माह में यह घाटा 6,90,59,291.84 लाख रुपयों का हो चुका था. साल का पूरा ब्यौरा अभी उपलब्ध नहीं है.

गौर से इनका अध्ययन करने से पता चलता है कि साल 2013-14 की तुलना में 2014-15 में विदेशों को निर्यात -0.45 फीसदी घटा है तथा इसी दौरान हमारे देश में विदेशों से आयात +0.80 फीसदी बढ़ा है.

इससे पहले भी मनमोहन सिंह के समय देश का व्यापार घाटा करीब इतना ही या इससे बढ़ा था.

जहां तक चीन की बात है भारत ने साल 2013-14 में उसे 4,02,825.09 लाख रुपयों का निर्यात किया था जो साल 2014-15 में -14.08 फीसदी घटकर 3,46,116.02 लाख रुपयों का हो गया. इसके उलट चीन से भारत ने साल 2013-14 में 3,09,23,495.99 लाख का आयात किया जो साल 2014-15 में 19.51 फीसदी बढ़कर 3,69,56,536.01 लाख रुपयों का हो गया.

इसी तरह से भारत से पाकिस्तान साल 2013-14 में 13,83,234.04 लाख रुपयों निर्यात हुआ जो साल 2014-15 में -17.93 फीसदी घटकर 11,35,211.32 लाख रुपयों का हो गया. वहीं पाकिस्तान से आयात साल 2013-14 में 2,60,656.88 लाख रुपयों का था जो साल 2014-15 में 16.65 फीसदी बढ़कर 3,04,066.81 लाख रुपयों का हो गया. जाहिर है कि चीन के सामान ही भारत का पाकिस्तान से व्यापार संतुलन घाटे का है.

इसके बाद यदि मेक इन इंडिया को साकार करना है तो हमें विदेशों को अपने मालों का निर्यात बढ़ाना पड़ेगा तता वहां से आयात घटाना पड़ेगा.

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