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FDI की जरूरत क्यों आन पड़ी?

रायपुर | अनवीषा गुप्ता: एफडीआई देश के लिये हाराकिरी साबित होगी. इसको इस प्रकार से समझा जा सकता है कि आप अपने घर के एक हिस्से का उपयोग करना बंद कर दें तथा खाना पकाने के लिये पड़ोसी के रसोई घर पर निर्भर हो जायें. जी हां, देश में, उस देश में जहां कौटिल्य के अर्थशास्त्र का बार-बार हवाला दिया जाता है, वहां ऐसा ही हो रहा है. जाहिर सी बात है कि हम देश के अर्थव्यवस्था की बात कर रहें हैं. इसके लिये पहले जान ले कि क्यों हमारे देश को उन्नयन के लिये विदेशी धन की जरूरत आन पड़ी है.

इसका सीधा सा जवाब है कि हमारे सरकार के पास धन की कमी है. उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार के पास पैसा टैक्स के माध्यम से आता है. इस साल मोदी सरकार ने संसद में जो बजट पेश किया है उसके अनुसार 2014-15 में 11लाख 89हजार 763करोड़ रुपयों का राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है. वहीं, इसी बजट में उल्लेखित है कि वर्ष 2014-15 में 17लाख 94हजार 892करोड़ रुपयों का व्यय होने का अनुमान है. बजट में राजस्व घाटा 3लाख 78हजार 348करोड़ रुपयों का होना संभावित है. इसी तरह से राजकोषीय घाटा 5लाख 31हजार,177करोड़ रुपयों का होने का अनुमान है.

केन्द्र सरकार के इस बजट को देखकर ऐसा लगता है कि देश की माली हालत खराब है तथा आय से ज्यादा व्यय हो रहा है. जब आय से ज्यादा व्यय हो रहा है तो सरकार से उम्मीद नहीं की जा सकती है कि रेल के आधुनिकरण तथा रक्षा उत्पादन में धन लगा सके. इस नजरिये से तो एक बारगी यही लगता है कि मोदी सरकार का रेल तथा रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में विदेशी निवेश को आमंत्रित करने का फैसला एकदम सही है.

अब हम फिर से कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर आ जाते हैं जिसका उल्लेख संसद में भी किया गया है. कौटिल्य ने कभी नहीं कहा कि टैक्स का बोझ केवल प्रजा पर डालों तथा बड़े व्यापारियों को करों में छूट देकर उनका मुनाफा इतना बढ़ाओं कि राज्य गरीब हो जाये. वास्तव में हमारे देश में यही किया जा रहा है. मनमोहन सिंह की सरकार भी यही किया करती थी तथा इस बार के मोदी सरकार ने भी यही किया है.

वर्ष 2014-15 के बजट में बड़े व्यापारिक घरानों को कार्पोरेट छूट, सीमा शुल्क तथा उत्पाद के शुल्क में 5.32 लाख करोड़ रुपयों की छूट दी गई है. यदि यह छूट नहीं दी गई होती तो 5.31 लाख करोड़ रुपयों का राजकोषीय घाटा हमारे देश को नहीं होता. बल्कि हमारे देश का बजट आय के बराबर व्यय का होता. इससे आप को स्पष्ट हो गया होगा कि बड़े कार्पोरेट घरानों को छूट देने के कारण देश की अर्थव्यवस्था डावां-डोल है.

आप की जानकारी के लिय हम यहां बता दे कि हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन का 1 फीसदी होता है 1.13 लाख करोड़ रुपये अर्थात् देश के सकल घरेलू उत्पादन के 4.70 फीसदी का तो ऐसे लोगों को दान दे दिया गया जिनकों इसकी जरूरत ही नहीं थी. दूसरी तरफ आम जनता को आयकर में कितनी छूट दी गई है उससे हम सब वाकिफ हैं. खबरों के अनुसार बुलेट ट्रेन की योजना में 60 हजार से 1 लाख करोड़ रुपयों तक के खर्च की संभावना है. यदि हमारे बजट में कार्पोरेट घरानों को छूट इसी एक साल छूट नहीं दी गई होती तो उससे बुलेट ट्रेन से लेकर और कई योजनाओं को मोदी सरकार अपने दम पर जामा पहना सकती थी.

यह तो हुआ 2014-15 का हिसाब-किताब. आपकों जानकर आश्चर्य होगा कि साल दर साल कार्पोरेट घरानों को इस प्रकार की छूट दी जा रही है. वर्ष 2005-06 में 2.29 लाख करोड़ रुपयों की छूट दी गई थी जो साल दर साल बढ़ता ही गया है. यदि इसे वर्ष 2005-06 से गणना करें तो अब तक कुल 36.5 लाख करोड़ रपयों की छूट कार्पोरेट घरानों को दी जा चुकी है. यह रकम हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन का 30 फीसदी करीब का है. जाहिर सी बात है कि इतनी बड़ी रकम लुटाने के बाद हमारे देश को अपना हाथ विदेशों के सामने फैलाना पड़ेगा ही.

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