प्रसंगवश

नोटबंदी अब तक कितना सफल रहा?

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: नोटबंदी के 50 दिन पूरे हो गये हैं. ऐसे में इससे कितना काला धन बर्बाद हुआ तथा भ्रष्ट्राचार कितना कम हुआ और आतंकवाद एवं नकली नोटों पर इसका क्या असर पड़ा इसकी उपलब्ध तथ्यों एवं आकड़ों के आधार पर चर्चा की जानी चाहिये.

काला धन-
नोटबंदी से काले धन पर लगाम लगेगी इसके दावे तथा हकीकत में जमीन आसमान का अँतर है. जिस दिन नोटबंदी की घोषणा की गई थी उस दिन 500 और 1000 रुपयों के जो नोट प्रचलन में थे वे 15.44 लाख करोड़ रुपयों के थे. यह माना जा रहा था कि इसमें से कम से कम 3 लाख करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में लौटकर नहीं आने वाले हैं. क्योंकि काले धन को बैंकों तथा पोस्ट ऑफिस के माध्यम से सफेद नहीं किया जा सकता है. इस तरह से सरकार को 3 लाख करोड़ का लाभ होने जा रहा है. लेकिन इसके उलट पुराने नोट जितने तेजी से बैंकों में जमा होने लगे उससे इस दावे की हवा निकल गई. रिजर्व बैंक ने भी 13 दिसंबर के बाद से बैंकों में कितने पुराने नोट आये उसके आकड़े जारी करना बंद कर दिया.

जानकारों का मानना है कि इन 50 दिनों में 14 लाख करोड़ रुपयों के पुराने नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ चुके हैं. हालांकि, असल आकड़ें रिजर्व बैंक द्वारा 30 दिसंबर के बाद जारी किये जाने पर ही पता लग सकता है. वैसे रिजर्व बैंक ने इन 14 लाख रुपयों के बैंकिंग सिस्टम में लौट आने का आधिकारिक खंडन नहीं किया है.

इस तरह से मात्र 1.44 लाख करोड़ रुपये अभी तक बैंकिंग सिस्टम में वापस नहीं आये हैं. दो-तीन दिनों के बाद क्या स्थिति होगी यह बाद में पता चल सकेगा. अब यदि मान भी लिया जाये कि 1.44 लाख करोड़ रुपयों के पुराने नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस नहीं आने वाले तो इससे क्या हासिल हुआ.

उधर, सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) के मुताबिक 30 दिसंबर 2016 तक नोटबंदी अभियान के तहत होनेवाला कुल खर्च 1.28 लाख करोड़ रुपया है. दूसरी तरफ रिज़र्व बैंक ने मान लिया है कि विकास दर 7.6% से घटकर 7.1% ही रह सकती है.

भ्रष्ट्राचार-
नोटबंदी ने नये तरह के भ्रष्ट्राचार को जन्म दिया है. कहा जाता है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, ठीक उसी तरह से.
* नोटबंदी की घोषणा के बाद धड़ल्ले से सोना खरीदा जाने लगा. इस तरह से काले धन को काले सोने में बदला जाने लगा.

* दिहाड़ी मजदूरों को लाइन में लगवाकर पुराने नोट बदलवाये जाने की खबर भी आई हैं.

* जनधन खातों में लाखों रुपये जमा कराये गये हालांकि उस पर सरकार की नज़र है.

* व्यापारियों ने पुराने नोटों में जिनके पास खाते के अनुसार कैश नहीं था उनसे उधार ले लिया जिनके पास खाते से ज्यादा कैश थे. इस तरह से दोनों की बल्ले-बल्ले हो गई. सरेआम काला, सफेद हो गया.

* जिन सेक्टरों में कुछ दिनों तक पुराने नोट चलाने की अनुमति दी गई थी वहां पर धड़ल्ले से पुराने नोट खपाये गये. छत्तीसगढ़ के रायपुर में ही 15 दिसंबर तक पेट्रोल पंपों में कमीशन लेकर पुराने नोट खपाये जाने की खबर है. अब इतनी अक्ल देश के दूरे हिस्सों के कारोबारियों में नहीं होगी ऐसा मानना क्या अक्लमंदी की बात होगी.

* पहली बार कुछ बैंक अधिकारियों को रिजर्व बैंक के निर्देश न मानने के कारण निलंबित किया गया तथा उन्हें उनके स्थान से हटाया गया. निजी बैंकों में धड़ल्ले से पुराने नोट बदले जाने की खबर है. बैंक यूनियन द्वारा मांगें जाने पर भी रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा निजी बैंकों को दिये गये नये नोटों के आकड़ें उपलब्ध नहीं कराये हैं.

* लाखों के नये नोटों की खेप जब्त की गई. जिनके पास से इन्हें जब्त किया गया वे इसका हिसाब देने में असमर्थ हैं. इससे अंदेशा होता है कि बैंकिंग क्षेत्र के छिद्र से नये नोट रिस रहें हैं.

आतंकवाद-
आतंकवादियों के फंडिग पर लगाम लगेगा यह कुछ हद तक सत्य भी है. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि जब काले कारोबारी अपना काला धन सफेद कर सकते हैं तो आतंकवादियों को इससे कैसे रोका जा सकता है. हां, नक्सलियों द्वारा जमा किये गये पुराने नोट जरूर बर्बाद हो गये हैं. तथा इससे वे आर्थिक रूप से पंगु जरूर हो गये हैं. जहां तक आतंकवादियों को विदेशी फंडिंग की बात है उसके लिये आतंक के पोषक राष्ट्र बाद में जरूर कोई रास्ता निकाल लेगें. फिलहाल तो उनकी कमर टूट गई है.

नकली नोट
जहां तक बैंकिंग सिस्टम द्वारा नकली नोट पकड़े जाने का मामला है साल 2014-15 में 500 रुपये के 2,73,923 नोट तथा साल 2015-16 में 2,61,695 नोट पकड़े गये जो कि 500 रुपये के कुल चलन के नोटों के महज 0.00002087 तथा 0.0000167 फीसदी के थे. इसी तरह से 1000 रुपयों के नोटों के मामले में साल 2014-15 में 1,31,190 नकली नोट तथा साल 2015-16 में 1,43,099 नोट बैंकिंग सिस्टम द्वारा पकड़े गये जो कि चलन में रहने वाले 1000 के नोटों के महज 0.00002338 तथा 0.0000226 फीसदी के थे.

(प्रस्तुत लेख में नोटबंदी का तथ्यों/आकड़ों के आधार पर विश्लेषण करने की कोशिश की गई.)

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