राष्ट्र

आम आदमी का शपथ

रायपुर | विशेष संवाददाता: आम आदमी क्या शपथ ले सकता है जो उसे खास बनने से रोके? खास बनने से रोकने का तात्पर्य है कि शपथ लेने के बाद भी आम आदमी उससे अपनी समस्यायें कह सके तथा उसका निपटारा हो सके. आज, आम आदमी पर दिल्ली ही नहीं सारे देश की नजर है भले ही पिछले लोकसभा चुनाव में देश के अधिकांश ने उसे ठुकरा दिया था. कैसी विटंबना है कि उसके बावजूद भी देश का आम आदमी उससे उम्मीद लगाये बैठा है कि दिल्ली से आम आदमी को उसका दुश्वारियों से निजात दिलाने का काम प्रारंभ हो.

इसे आम आदमी का अधिकार माना जाना चाहिये कि वह कब किसे सिर पर बैठा ले तथा कब उससे मुंह फेर ले. आम आदमी के लिये शपथ लेने का तात्पर्य है कि किये गये वादों के अनुसार पानी की समस्या से निजात दिलवाई जाये. दिल्ली में आम आदमी साफ पानी के लिये तरस जाता है. ऐसे हालात में राजनीतिक आकाओं से आशीर्वाद प्राप्त टैंकर माफिया पानी के नाम पर ऐसी लूट मचाये बैठे हैं जैसी मारा-मारी नखलिस्तान में भी नहीं होती है.

आम आदमी चाहता है कि उसे बिना किसी शर्त के पानी पर उसके प्राकृतिक आधिकार को सुनिश्चित किया जाये.

बिजली का बिल एक ऐसा कागज है जिसके घर में आते ही अन्य जरूरतों में क्या तथा कितनी कटौती करनी है उसकी गणना शुरु कर देनी पड़ती है. प्रकाश का अधिकार, जीवन जीने के अधिकारों में शामिल है. इसलिये बिजली का बिल उतना ही होना चाहिये जितना आसानी से दिया जा सके. इस बिल की बदौलत खास आदमी अपनी तिजोरी भरता जाये इसे रोके जाने की जरूरत है. हमारी संस्कृति में है कि, ” साईँ इतना दीजिये जामें कुटीर समाये, मैं भी भूखा न रहू, साधु न भूखा जाये”. इस मुहावरे को बिजली वितरण करने वाली कंपनियों को समझाकर उसका उनसे पालन कराया जाये.

स्वास्थ्य की मूल समस्या उस पर किये जा रहे कम खर्च के कारण उत्पन्न हुई है. आम आदमी चाहता है कि सरकार स्वास्थ्य में अपने खर्चे में बढ़ोतरी करें ताकि आम आदमी को जिंदा रहने के लिये अपने पाकेट से कम खर्च करना पड़े.

स्वास्थ्य के बाद बारी आती है बच्चों के शिक्षा की. शिक्षा उच्च स्तरीय तथा सर्व सुलभ हो. आम आदमी भी अपने बच्चों की परवरिश अच्छे ढ़ंग से करना चाहता है. कीमत चुकाने की क्षमता न होने पर उसे इस अधिकार से वंचित रखा जा रहा है. आम आदमी चाहता है कि इसे तुरंत दुरस्त किया जाये.

आम आदमी यथास्थितिवादी नहीं होता है वह तो समय के साथ चलना चाहता है. यथास्थिति का अर्थ है मौजूदा दुश्वारियों को बनाये रखना.

यह भी कहा जा सकता है कि आम आदमी से सलाह किसने मांगी है. याद रखें मुफ्त में सलाह देना तथा अपने लिये बेहतरी की मांग करना आम आदमी का खास अधिकार है.

आम आदमी व्यवस्था परिवर्तन की आस लगाये नहीं बैठा है. वह तो मौजूदा व्यवस्था में ही अपने लिये बेहतर जीवन जीना चाहता है. उम्मीद है कि आम आदमी को निराश नहीं किया जायेगा.

यदि दिल्ली का आम आदमी कुछ पाता है तो वह देश के अन्य आम आदमी को भी वहीं पाने के लिये लालायित करेगा. कुल मिलाकर आम आदमी की शपथ सीमित ही सही यथास्थिति को बदलने का होना चाहिये.

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