छत्तीसगढ़

यूपी के बच्चे छत्तीसगढ़ में बंधक

बिलासपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में बच्चों को बंधुआ मज़दूर बनाने का मामला सामने आया है.राज्य में पहली बार सामने आये इस मामले में पुलिस और श्रम विभाग के अफसर एक-दूसरे का कार्य क्षेत्र बता कर पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

इधर इस मामले को लेकर नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा है कि यह दुखद और शर्मनाक स्थिति है. उन्होंने कहा कि यह राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति को बताता है.

छत्तीसगढ़ के लोगों को उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में बंधक बनाए जाने के कई मामले सामने आते रहते हैं लेकिन अब छत्तीसगढ़ में उत्तरप्रदेश के बच्चों को बंधक बनाया जाने लगा है. बिलासपुर की एक छाता फैक्ट्री में ऐसा ही मामला सामने आया. श्रम विभाग ने यहां गुरुवार की दोपहर छापेमारी की कार्रवाई की. कार्रवाई की भनक लगते ही बच्चों को फैक्ट्री के पीछे के दरवाजे से भगा दिया गया. इसके बाद भी श्रम विभाग को 100 से ज्यादा लोग काम करते मिले, जिसमें 30 नाबालिग थे. पीछे से भगाए गए बच्चों की कोई खबर नहीं है, जबकि फैक्ट्री संचालक राजा सिंह एवं गुरप्रीत उर्फ चंचल सिंह के खिलाफ बाल श्रम अधिनियम के तहत अपराध दर्ज हुआ है.

घटनाक्रम बिल्हा विधायक सियाराम कौशिक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक के घर से महज एक किलोमीटर की दूरी पर चिचिरदा मोड़ के करीब स्थित छाता फैक्ट्री की है. श्रम विभाग के दो इंस्पेक्टर सूचना के आधार पर यहां कार्रवाई के लिए पहुंचे थे. इंस्पेक्टर सीपी पटेल और सब इंस्पेक्टर श्री यादव फैक्ट्री के भीतर पहुंचे और कर्मचारियों से संचालक की जानकारी लेने लगे. इतने में दूसरे कमरे के कर्मचारी ने शोर मचा दिया कि बच्चों को भगाओ. बगल के कमरों में भगदड़-सी मच गई.

इंस्पेक्टर भाग रहे मासूम बच्चों के पीछे लपका, लेकिन फैक्ट्री के पिछले हिस्से में घास का घना जंगल है, जहां बच्चे गुम हो गए. अफसरों ने फैक्ट्री में मौजूद लोगों पर नजर डाली तो इनकी संख्या 100 से ज्यादा मिली, जिसमें 30 तो नाबालिग थे. सभी कर्मचारी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. इंस्पेक्टर ने उनसे समस्या जाननी चाही लेकिन समस्या बताना तो दूर किसी ने अपना नाम तक जाहिर नहीं किया. फैक्ट्री संचालक का भय उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था. श्रम विभाग ने अपनी जांच रिपोर्ट के आधार पर संचालकों के खिलाफ बाल श्रम, न्यूनतम वेतन और अंतरराज्यीय प्रवासीय कर्मकार अधिनियम के तहत अपराध कायम कर लिया है.

फैक्ट्री से भागे किशोर ने सुनाई प्रताडऩा की दास्तां
अब तक के घटनाक्रम में बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर श्रम विभाग के इंस्पेक्टर फैक्ट्री कैसे पहुंचे. इसका श्रेय उस किशोर को जाता है, जो फैक्ट्री से जान बचाकर भाग निकला था ओर रेलवे स्टेशन के करीब रोता बैठा था. आसपास के लोगों ने उससे पूछताछ की तो उसने अपनी पहचान उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिला निवासी कैलाश सिंह (परिवर्तित नाम) के तौर पर दिया. उसने बताया कि उसके गांव का गिरीश छाता फैक्ट्री में मैनेजर के तौर पर काम करता है. गिरीश गांव गया था तो उसने कैलाश सिंह व उसके दोस्तों को अच्छी नौकरी देने का झांसा दिया.

कैलाश की तरह चार अन्य किशोर भी उसके साथ बिलासपुर आ गए. वे सभी 1 जनवरी 2014 को छाता फैक्ट्री पहुंच गए. वहां पहुंचते ही गिरीश का व्यवहार बदल गया. वह दुश्मनों की तरह पेश आने लगा. फैक्ट्री मालिक सुबह 6 बजे से काम कराता और 11 बजे एक कप चाय पिलाता. फिर काम कराता और दोपहर 3 बजे जली रोटी और पनियल दाल खाने को देता. काम फिर शुरु होता जो रात 3 बजे तक चलता. रात में काम चलता तो खाना देर रात 3 बजे मिलता. काम रात में नहीं चले तो भूखे ही सोना पड़ता. लोगों ने कहानी सुनने के बाद किशोर को श्रम विभाग के हवाले किया.

पुलिस का उदासीन रवैया
इस मामले में पुलिस ने सहयोग ही नहीं किया. नाबालिग कैलाश को लोगों के हवाले करने वालों ने मामले की जानकारी पहले पुलिस को दी थी. पुलिस ने टाल मटोल की तो फिर श्रम विभाग का सहारा लिया गया.

पुलिस ने सजगता दिखाई होती तो बच्चों को बंधक बनाए जाने का बड़ा मामला प्रकाश में आता. दिलचस्प है कि श्रम विभाग की कार्रवाई और बड़े रहस्योद्घाटन के बाद भी पुलिस फैक्ट्री में छापा मारने से कतरा रही है. पुलिस यह भी जानने की कोशिश नहीं कर रही कि आखिर उन 30 मासूमों का क्या हुआ, जिन्हें कार्रवाई होते देख भगा दिया गया था.

फैक्ट्री में सांस लेना भी दुभर
छाता फैक्ट्री के भीतर 150 लोग थे, लेकिन इनके रहने की कोई व्यवस्था ही नहीं दिखी. चारों ओर छाता तैयार करने के सामान बिखरे मिले. सवाल था कि कर्मचारी और मासूम सोते कहां हैं. एक बाल मज़दूर ने धीमे स्वर में कहा कि यहां सोता कौन है, जिसे जहां जगह मिल जाए, वह वहीं झपकी ले लेता है. फैक्ट्री में पानी पीने की जगह घुटने भर का कीचड़ है तो शौचालय बजबजा रहा है. श्रम विभाग की टीम बमुश्किल 15 मिनट ठहर पाई. इस माहौल में दिन रात रहने की कल्पना से ही रूह कांप उठता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!