बिलासपुर

छत्तीसगढ़: आशियाने को तरसती वृद्वा

रतनपुर | उस्मान कुरैशी: कभी कभी कानून कायदे कि पेचीदगी किस हद तक मजाक बन कर रह जाती है. इसकी एक और बानगी अस्सी साल की निराश्रित बुजुर्ग महिला के हालात देखने के बाद मिलती है. जिसे पूरा गांव महागरीब मानता है पर गरीबी रेखा की सर्वे सूची में नाम नहीं होने की वजह से सरकारी अफसरों की नजर में वह गरीब नहीं है नतीजा उम्र के इस आखरी पड़ाव में कथित विक्षिप्त बेटे के साथ वह बेघर होने के कगार पर है.

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर की दूरी में कोटा ब्लाक का ग्राम पुचायत नवागांव मोहदा है. जहां के डोंगी गांव में अस्सी साल की निराश्रित दुधमत बाई जर्जर झोपड़ी में रहती है. होने को तो उसके तीन बेटे हैं पर उम्र के इस आखरी पड़ाव में दो बेटों ने इस बेबस बूढ़ी मां से किनारा कर लिया है. वहीं एक जवान छोटा बेटा जो कथित रूप से पागल है के देखरेख की जिम्मेदारी भी इसी के सिर पर है. इन सब के बाद भी इस ममता की मूरत मां को अपने बेटों के साथ छोड़ने को लेकर कोई गिला शिकवा नहीं करती है. उसे चिंता तो अपनी जर्जर झोपड़ी की है जहां ठीक से खड़े होने की भी जगह नहीं है. जो अब पूरी तरह धरासायी होने के कगार पर है. जहां वहा अपने कथित पागल बेटे के साथ रहती है. अपने जर्जर झोपड़ी को ठीक कराने सरकारी मदद की गुहार लगाते और इंदिरा आवास की राह ताकते उसकी आंखें पथरा गई है. पूरा गांव दुधमत बाई को महा गरीब मानता है. पूंजी के नाम पर इसके पास एक झोपड़ी है. जिसमें वह अपने कथित पागल बेटे के साथ रहती है.

दुधमत बाई कहती है कि करीब पचास साल पहले पति पवन दास की मौत के बाद मेहनत मजदूरी करके चार बच्चों का लालन पालन किया. इसमें से बड़े बेटे की मौत काफी पहले हो चुकी है. दो बेटे हैं जो उसे यहां छोड़कर जांजगीर और बिलासपुर के नजदीक देवरीडीह में अपने परिवार के साथ रहते है. जो बीते पांच सालों में एक बार भी मां का हाल चाल पूछने नही आएं है. घर का जिक्र छेड़ते ही कहती है कि क्या करे साहब रहने की जगह नहीं है बारिश होने पर पूरा पानी अंदर चला जाता है तब तो पैर रखने की जगह नहीं होती है. तालाब जैसा पानी घर में भर जाता है. कई साल हो गए सरकारी मदद के लिए पंच सरपंच को बोलते कोई कुछ नही कर रहा है. एक दो दिन के अंताराल में उनके घर मदद मांगने चली जाती हुं पर कोई सुनने वाला नहीं है. घर के खर्चे के बारे में पूछने पर कहती है कि 35 किलो चावल और छह सौ रूपए पेंषन मिलता है उसी से गुजारा चलता है. कुछ मदद गांव वाले भी कर देते है.

इस मामले में नवागांव डो्रगी के उप सरपंच महावीर साहु भी इस बुजुर्ग महिला का महागरीब मानते हुए कहते है कि उसकी हालत देखकर उसका अंत्योदय का कार्ड बनाया गया है. जिससे उसे 35 किला चावल मिलता है. इसके साथ ही उसे हर माह छह सौ रूपए निराश्रित पेंशन भी मिलता है. जिससे वह अपना और अपने बेटे का भरण पोषण करती है. महावीर कहते है कि उनके लिए इंदिरा आवास स्वीकृत करने की पहल शुरू हुई पर अधिकारियों की लापरवाही के चलते इनका नाम गरीबी रेखा की सर्वे सूची में नहीं है. जिससे आवास बनाने सरकारी मदद नही मिल पा रही है. वे कहते है कि पूरे गांव के लोगों की मांग है कि गांव के इस बुजुर्ग महिला को सरकारी मदद मिले.

अब पूरा गांव जिसे महा गरीब मानता हो उसका नाम गरीबी रेखा की सर्वे सूची में कैसे छूट गया ये जांच का विषय हो सकता है. पर अभी इसका खामियाजा तो इस निराश्रित वृद्व महिला को भुगतना पड़ रहा है. जिसके सिर के उपर का छत कब धरासायी हो जाए ओर कोई गंभीर हादसा हो जाए.

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