छत्तीसगढ़

भूख से नहीं मरे थे रिबई पंडो

रायपुर | संवाददाता: 1992 में रिबई पंडो की भूख से मौत नहीं हुई थी. असल में 80 साल के रिबई पंडो की बहु और पोते की भूख से मौत हुई थी. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिंहाराव को सरगुजा आना पड़ा था.

लेकिन अधिकांश स्थानों पर रिबई पंडो की मौत के ग़लत तथ्य प्रकाशित व प्रसारित होते रहे. कई शोधग्रंथों और किताबों में भी रिबई पंडो की भूख से मौत के बाद प्रधानमंत्री के सरगुजा आने का उल्लेख आज तक जारी है. संभवतः आज छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव भी इसी भुलावे में आ गये.

गुरुवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा में भूख से मौत को लेकर होने वाली बहस पर भाजपा प्रवक्ता और विधायक शिवरतन शर्मा को चुनौती देते हुये नेता प्रतिपक्ष ने विधानसभा सचिव को सशर्त इस्तीफा दे दिया. नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का कहना था कि 1992 में रिबई पंडो की भूख से मौत हुई थी. सरकार इस बात की जांच करा ले. अगर उनकी कही बात ग़लत साबित हो जाये तो फिर उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाये.

तथ्य ये है कि आज के बलरामपुर ज़िले के बीजाकुरा गांव के रिबई पंडो की बहु जकली बाई और उसके पोते की मौत हुई थी और इसकी खबर सबसे पहले दैनिक देशबन्धु में पत्रकार कौशल मिश्रा ने 29 फरवरी 1992 को प्रकाशित की थी.

बाद में कई महीनों तक रिबई पंडो के साथ-साथ जकली बाई के पति रामविचार पंडो से देसी-विदेशी मीडिया ने बातचीत की. रिबई से श्यामाचरण शुक्ल औऱ मोतीलाल जैसे तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने मुलाकात भी की.

3 अप्रैल 1992 को सरगुजा के तत्कालीन सांसद खेलसाय सिंह ने इस मुद्दे को लोकसभा में उठाते हुये सरकार से कहा कि सुंदरलाल पटवा की सरकार अकाल और भूख से हो रही मौतों को लेकर गंभीर नहीं है. रिबई पंडो की बहु और उसके पोते की भूख से मौत हो गई क्योंकि न तो उनके पास अनाज है और ना ही पैसे. यहां तक कि रिबई पंडो का भाई भी भूख के कारण गंभीर हालत में है. खेलसाय सिंह ने इस मामले में केंद्र से एक प्रतिनिधिमंडल भेजने की भी मांग की थी. लोकसभा में दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने भी मंदसौर और सरगुजा में भूख से मौत को लेकर सवाल खड़े किये थे.

अंततः मई 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव सरगुजा पहुंचे. उसी समय प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिंहा राव ने ने नई खाद्य नीति की घोषणा भी की थी.

लेकिन बाद के दिनों में भी रिबई पंडो की ही भूख से मौत की खबर मीडिया में छाई रही. जिस देशबन्धु अखबार ने 29 फरवरी 1992 को सबसे पहले रिबई पंडो की बहु और पोते के भूख से मौत की खबर छापी थी, उस अखबार ने भी 10 फरवरी 2007 समेत कई अवसरों पर यही छापा कि फरवरी 1992 में रिबई पंडो की भूख से मौत हो गई थी.

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