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छत्तीसगढ़ राज्योत्सव में जन कहां

दिवाकर मुक्तिबोध
इस वर्ष का राज्योत्सव छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के लिए खास महत्व का है. यह गंभीर चुनौतियों की दृष्टि से भी है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति की वजह से भी. मोदी राज्योत्सव का उद्घाटन करेंगे तथा काफी वक्त बिताएंगे. जाहिर है उनकी उपस्थिति को देखते हुए राज्य सरकार विकास की झलक दिखाने और बहिष्कार पर आमादा कांग्रेस व अन्य पार्टियों से राजनीतिक स्तर पर निपटने में कोई कोर कसर नहीं छोडऩी चाहती.

प्रधानमंत्री को यह दिखाना जरूरी है कि राज्य में सब कुछ ठीक-ठाक है, अमन-चैन है, सरकार की योजनाएं द्रुत गति से चल रही हैं और विकास छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में पसरा नजर आ रहा है. राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में भी सरकार और पार्टी सफल है तथा सन् 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव व उसके अगले वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के संदर्भ में प्रधानमंत्री को फिकर करने की जरूरत नहीं है. इसके लिए सब कुछ युद्ध स्तर पर चल रहा है, राजनीतिक मोर्चे के साथ ही सामाजिक व आर्थिक मोर्चे पर भी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह संदेश देने, उन्हें आश्वस्त करने सरकार और पार्टी जी तोड़ मेहनत कर रही है.

राज्य जवान हो चुका है. 16 वर्ष का. दसवीं वर्षगांठ के बाद यह विचार चल पड़ा था कि राजधानी में राज्योत्सव के दिनों को कम करके, तामझाम को सीमित रखा जाए, खर्च भी कम किया जाए. अब सलमान खान या करीना कपूर जैसी फिल्मी हस्तियों को भी बुलाने की जरूरत नहीं जिन्होंने चंद घंटों के लिए लाखों रुपए सरकार से वसूले थे. इस वर्ष भी यह सोचा गया कि राज्योत्सव सिर्फ एक दिन का हो. हवाला सूखे का दिया गया पर वर्षा औसत से कहीं अधिक हो गई.

खैर सूखे की चिंता जाती रही. चूंकि घोषणा एक दिन के राज्योत्सव की थी, लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्य अतिथि के रूप में राज्य सरकार के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया तो यह पांच दिन का हो गया. अब 1 नवम्बर से 5 नवम्बर तक राज्य की जनता छत्तीसगढ़ में दनादन विकास के कथित प्रवाह से अभिभूत होगी और अपना मनोरंजन करेगी.

प्रधानमंत्री के प्रवास के मद्देनजर, तैयारियों के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पार्टी के नेताओं को निर्देशित किया था कि मुख्य समारोह में कम से कम एक लाख की भीड़ आनी चाहिए. जब मुख्यमंत्री स्वयं ऐसा कहे तो जाहिर है केन्द्र की परीक्षा में पास होने की उन्हें कितनी चिंता है. यह पहली बार है जब मुख्यमंत्री ने संख्या में बात कही. बहरहाल तैयारियां अंतिम दौर में है किंतु इसकी वजह से सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की दिवाली चौपट हो गई. बहरहाल इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री संतुष्ट होकर जाएंगे क्योंकि राजधानी गुलजार है, शहर गुलजार है.

लेकिन क्या वास्तव में राज्य के हालात काबू में है? संतोषजनक है? जनहित के मुद्दों पर खूब शोर-शराबा मचा रही कांग्रेस और नई नवेली जोगी कांग्रेस के तेवरों, राजनीतिक विवादों और आरोप-प्रत्यारोप को छोड़ दें तो क्या आम आदमी विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों तक राज्य एवं केन्द्र सरकार की योजनाओं का समुचित लाभ पहुंच पा रहा है? जनकल्याणकारी योजनाएं दर्जनों हैं पर क्या वे वास्तव में फलदायी हैं? क्या लोगों का कल्याण हो पा रहा है?

आंकड़े बताते हैं कि राज्य में गरीबी व बेरोजगारी बढ़ी है. यह अलग बात है कि इसके बावजूद छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों में अव्वल है. विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए उसे वर्ष 2015-16 के दौरान ही एक दर्जन से अधिक पुस्कार मिल चुके हैं. यदि इन पुरस्कारों की विश्वसनीयता पर संदेह न किया जाए तो यह मानना होगा राज्य में सर्वत्र खुशहाली है और विकास द्वार-द्वार तक पहुंच रहा है. पर क्या यह सच है?

आधारभूत संरचनाओं की दृष्टि से देखें तो क्रांतिकारी परिवर्तन नज़र आएंगे. पिछले डेढ़ दशक में राजधानी सहित प्राय: सभी बड़े शहरों की तस्वीर बदल गई है, बदल रही है. सोलह साल के पहले के छत्तीसगढ़ और आज के छत्तीसगढ़ में जमीन आसमान का अंतर है. यह अंतर प्राय: सभी स्तरों पर दिखाई पड़ता है. पर यह सब कुछ शहरियों के लिए है. लेकिन क्या चमचमाती सड़कों, सुंदर-सुंदर इमारतों, रोशनी बिखरते सोडियम लैम्पों या मेट्रो का अहसास कराने विमानतल को राज्य के सर्वांगीण विकास का पैमाना माना जा सकता है?

इसमें गरीब कहां है, खेत-खलिहान कहां है, गांव कहां हैं, शिक्षा की नींव मजबूत करने वाली प्राथमिक शिक्षा कहां है, शिक्षित युवाओं को नौकरियां कहां हैं, उच्च गुणवत्ता वाली उच्च शिक्षा कहां है, स्वस्थ रहने के लिए शुद्ध हवा कहां है, दर्द से तड़पते गांव के गरीबों के लिए सर्वसुविधायुक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र कहां है और कहां है शुद्ध पेयजल जिसके अभाव में आदिवासी बहुल गांवों में डायरिया जैसी बीमारी से प्रतिवर्ष सैकड़ों मरते हैं. वर्षों से मर रहे हैं.

दरअसल विकास के तमाम दावों के बावजूद गरीब किसानों, खेतिहर मजदूरों, निम्न व अति निम्न के दायरे में आने वाले लोगों का जीवन कठिन है. भ्रष्टाचार, महंगाई, नौकरशाही की असंवेदनशीलता और नौकरी के लगातार घट रहे अवसरों के कारण यह वर्ग खुशहाली से कोसों दूर है. सरकार चुनौतियों का सामना तो कर रही है पर विश्वास के साथ नहीं. फैसलों में विलंब सरकार की दुविधापूर्ण स्थिति का प्रतीक है. नक्सल मोर्चे पर हाल ही में घटित घटनाओं जिसमें आला अफसरों का व्यवहार भी शामिल है, से सरकार की किरकिरी हो रही है.

भौतिक संरचनाओं पर यदि अरबों रुपए खर्च किए जा सकते हैं तो किसानों को बोनस भी दिया जा सकता है जिससे सरकार मुकर रही है. जबकि यह उसका चुनावी वायदा रहा है. राजनीतिक मोर्चे पर भी सरकार और पार्टी हैरान-परेशान है. जबकि चौथी पारी के लिए उसकी राजनीतिक कवायद अरसे से तेज है. दिनों दिन तेज होती सत्ता विरोधी लहर उसकी सबसे बड़ी चिंता है. इसमें भी कोई शुबहा नहीं कि पिछले दो कार्यकालों की तुलना में उसका तीसरा कार्यकाल ज्यादा कठिन और चुनौती भरा है.

चुनावी वर्ष 2018 तक सरकार को दो और राज्योत्सव देखने हैं. यानी सरकार के पास अभी दो वर्ष है. अब इन दो वर्षों में विकास के केंद्र में सिर्फ और सिर्फ गांव और ग्रामीण रहेंगे तथा शासन-प्रशासन शतप्रतिशत जनोन्मुखी रहेगा तो एक नई तस्वीर उभरेगी जो गौरवपूर्ण होगी और तब राज्योत्सव सही अर्थों में राज्योत्सव होगा, जन उत्सव होगा.

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