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वन भूमि प्रबंधन में 64 करोड़ का घपला

रायपुर: छत्तीसगढ़ में वन भूमि प्रबंधन महकमा के अफसरों के कारण 64.49 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है. राज्य के वन विभाग का भूमि प्रबंधन महकमा जंगल राज की तर्ज पर काम कर रहा है. सरकारी नियम कायदों को ताक पर रख कर काम करने वाले अफसर इतने लापरवाह हैं कि उनके कारण विभाग को अरबों रुपये का नुकसान हो चुका है. सरकारी ऑडिट रिपोर्ट में ही वन भूमि प्रबंधन महकमा के अफसरों के कारण 64.49 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है लेकिन इस पर कार्रवाई करने के बजाये विभाग इन अफसरों को बचाने में जुटा हुआ है.

वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा 2 के अनुसार वन क्षेत्रों में गैर वनीकरण के कार्यों के लिये क्षतिपूर्ति राशि जमा की जाती है. यह क्षतिपूर्ति राशि 29,725 रुपये प्रति हेक्टेयर असिंचित वृक्षारोपण के लिये और 1,04,500 प्रति हेक्टेयर सिंचित वृक्षारोपण के लिये तय की गई है. इसमें हर साल 10 प्रतिशत वृद्धि का प्रावधान है.

नवंबर 2012 की वन महकमें की रिपोर्ट बताती है कि 32 में से 13 वन मंडलों में 2002-03 से 2009-10 में 3,085.351 हेक्टेयर वन क्षेत्रों को गैर वनीकरण के कार्यों के लिये परिवर्तित किया गया है. इसमें से 7,230.860 हेक्टेयर वन क्षेत्रों के लिये 32.72 करोड़ रुपये का राशि क्षतिपूर्ति के लिये जमा की गई.

वन क्षेत्रों के गैर वनीकरण के लिये परिवर्तन व क्षतिपूर्ति राशि की जांच से यह पता चलता है कि क्षतिपूर्ति राशि 29,725 रुपये व 1,04,400 की दर से वर्ष 2002-03 में जो राशि जमा की गई है, वह वास्तव में 2001-02 के हिसाब से थी और उसमें जाने किन प्रलोभन और दबाव में 10 प्रतिशत की रकम को जोड़ा ही नहीं गया, जिसके कारण वन विभाग को 5.07 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. करोड़ों रुपये की चपत लगाने के ये मामले 10 वनमंडलों- रायपुर, रायपुर पश्चिम, धमतरी, जगदलपुर, कोंडागांव दक्षिण, कटघोरा, कोरबा, कोरिया, मरवाही और रायगढ़ के ही 43 प्रकरणों में सामने आये.

वन विभाग के अफसर अपनी गलती को छुपाने के लिये यह थोथी दलील दे रहे हैं कि यह क्षतिपूर्ति राशि भारत सरकार के मार्च 2002 के आदेशानुसार तय की गई है. लेकिन केंद्र सरकार के जिस आदेश का हवाला देकर वन अफसर गोल माल कर रहे हैं, वह आदेश 2001-02 के लिये था. जबकि छत्तीसगढ़ में क्षतिपूर्ति राशि 2002-03 के लिये ली गई थी.

दिलचस्प ये है कि नवंबर 2012 में जब जब इस मामले में महालेखाकार ने आपत्ति दर्ज कराई तो वन विभाग जांच कराने की बात कह कर मामले की लीपापोती में जुट गया है. इस मामले में वन सचिव भी चुप हैं और राज्य के वन मंत्री विक्रम उसेंडी भी दम साधे हुये हैं. कहा जा रहा है कि नंदन वन को रायपुर में जंगल सफारी के नाम पर लाने के लिये मंत्री ने अफ्रीका का जो दौरा किया था, उसमें वन भूमि प्रबंधन के सीसीएफ मुदित कुमार सिंह भी शामिल किये गये थे और उस दौरे के बाद से ही वन मंत्री के साथ उनके रिश्ते और मजबूत हो गये हैं.

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