छत्तीसगढ़

खामोश, किसान आत्महत्या जारी है

रायपुर | जेके कर: धान के कटोरे में पिछले चार माह में 33 किसानों ने आत्महत्या की है. ताजा मामला राजनांदगांव का है जहां पर दो किसानों ने किसानी के कारण आत्महत्या कर ली है. किसानी के कारण आत्महत्या करने का अर्थ किसान की किसानी के फेल हो जाना है. जिसके तहत सूखे के कारण फसल बर्बाद होना व कर्ज न चुका पाने की विवशता मुख्य कारण है.

राजनांदगांव के मोहला दुग्गाटोला गांव के 35 वर्षीय हरिशचंद्र भूआर्य ने जहर खाकर आत्महत्या की है. उसे इलाज के लिये अस्पताल में भर्ती कराया गया परन्तु चिकित्सा विज्ञान के पास किसानी से आत्महत्या रोकने का कोई उपाय नहीं था. यह इलाका सूखा प्रभावित घोषित है. हालांकि, प्रशासन दावा कर रहा है कि हरिशचंद्र पर कोई कर्ज नहीं था.

दूसरी घटना बालोद के आदिवासी किसान 48 वर्षीय किसान अंकलूराम ने कर्ज न चुका पाने के कारण फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. अंकलूराम के परिवार ने मीडिया को बताया कि बारिश कम होने के कारण धान की फसल ठीक से नहीं हुई थी.

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने सबसे ज्यादा राशि 28 करोड़ रुपये राजनांदगांव को ही सूखे के कारण दी है.

इसके अलावा रायपुर को एक करोड़, महासमुंद को एक करोड़ 25 लाख, धमतरी चार करोड़ 20 लाख, गरियाबंद को 13 करोड़, दुर्ग को 50 लाख, बालोद को 11 करोड़, बेमेतरा को तीन करोड़ 75 लाख, राजनांदगांव को 28 करोड़, कबीरधाम को पांच करोड़ 50 लाख, बिलासपुर को 10 करोड़ 25 लाख, मुंगेली को 75 लाख, कोरबा को पांच करोड़ 20 लाख, जांजगीर-चांपा को तीन करोड़, रायगढ़ को दो करोड़ 25 लाख, बस्तर को पांच करोड़ 25 लाख, कोण्डागांव को तीन करोड़ 75 लाख, कांकेर को एक करोड़ 50 लाख, नारायणपुर को एक करोड़ 50 लाख, सुकमा को तीन करोड़ 20 लाख, बीजापुर को तीन करोड़, दंतेवाड़ा को तीन करोड़ 75 लाख, सूरजपुर को तीन करोड़, कोरिया को 11 करोड़, बलरामपुर को चार करोड़ 50 लाख रुपए और जशपुर जिले को चार करोड़ 50 लाख रुपए दिये गये हैं.

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में सूखा प्रभावित किसानों की बेटियों की शादी के लिये 30 हजार रुपये देने की घोषणा की है. इसके लिये 134.60 करोड़ रुपये जारी भी कर दिये गये हैं. जाहिर है कि छत्तीसगढ़ के किसानों को बेटियों की शादी से ज्यादा चिंता अपने कर्ज न चुका पाने की है.

गौरतलब है कि कलेक्टरों की जांच रिपोर्टो में दावा किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या के पीछे कारण पारिवारिक अशांति, बीमारी तथा शराब का नशा कारण रहा है. जिन तीन कारणों से आत्महत्या का दावा किया जा रहा है वे तीनों कारण के पीछे मुख्यतः आर्थिक तंगी ही हुआ करती है.

क्या आपने कभी सुना है कि अमुक उद्योगपति ने पारिवारिक अशांति के कारण, बीमारी के कारण या शराब के नशे में आत्महत्या की है. इक्का-दुक्का मामलों को छोड़कर.

कभी धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के लिये इससे दुख की बात क्या हो सकती है कि पिछले चार माह में हर तीसरे दिन एक किसान ने किसानी के कारण आत्महत्या कर रहें हैं.

इस विषय पर कृषि वैज्ञानिक तथा सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संकेत ठाकुर जो आम आदमी पार्टी से हैं उनका फेसबुक पर लिखा पोस्ट पढ़ना गलत न होगा-

आत्महत्या करते लाचार किसान और बेबस महतारी के आंसू

आत्महत्या करते लाचार किसान और बेबस महतारी के आंसूछत्तीसगढ़ में सूखा पड़ने के आसार अगस्त के अंतिम सप्ताह में दिखने लगे थे जब 60 प्रतिशत से अधिक किसान बियासी नही कर पाये या रोपाई समय पर नही हो सकी । सूखे की आशंका से किसान थर्रा उठे और उनपर भयंकर आर्थिक संकट का खतरा मंडराने लगा था । सितम्बर के प्रथम सप्ताह में स्थित गम्भीर होने लगी और दूसरे सप्ताह में सूखा का परिणाम भी दिखाई देने लगा । सूखा की भयावहता का बयां बागबाहरा के किसानो ने किया था जब कुरा गांव के किसानो ने खड़ी फसल को गायों के चरने के लिए छोड़ दिया था । इन्ही परिस्थितियों में छत्तीसगढ़ के किसानो में गहन शोक की लहर फ़ैल गई जब आरंग ब्लाक के रीवा ग्राम के कर्जे से दबे किसान गोकुल साहू ने ट्रेन के सामने कटकर अपनी जान दे दी । लेकिन सरकार ने अपनी कमजोरी को छिपाने इसकी वजह किसान का बीमारी से त्रस्त होना बताया । 11 सितम्बर से लेकर आज मानवाधिकार दिवस 10 दिसम्बर तक याने 3 महीनो में 25 किसान आधिकारिक तौर पर आत्महत्या कर चुके है । जिसकी एकमात्र वजह फसल का बर्बाद होना परिणामस्वरूप कर्ज न चुका पाने की आशंका है । किसानो की आत्महत्या के आंकड़ो में गत एक महीने में एकाएक वृद्धि हुई है क्योंकि 16 नवम्बर से शासकीय धान खरीदी प्रारम्भ होने के साथ साथ सहकारी सोसायटी और बैंक द्वारा किसानो को कर्ज पटाने का नोटिस थमा देने का सिलसिला भी चल पड़ा है । इधर फसल की बर्बादी और उधर कर्ज पटाने का नोटिस, इन दोनों से किसान बेहद भयभीत और घबराये हुए है । इस घबराहट और बेचैनी में किसान आत्महत्या जैसे भयानक कदम उठा रहे है । इस बेहद संवेदनशील मामले का दुखद पहलु यह है कि राज्य शासन ने सूखा राहत के नाम पर कोई बेहतर कदम तो उठाया नही उलटे घनघोर संवेदनहीनता का परिचय देते हुए पूरे मामले में अपने आपको पाक साफ बताने का प्रयास किया है । यह इतना जघन्य कृत्य है कि अन्नदाता किसानो की आत्महत्या के मूल कारण सूखा एवम् कर्ज को छिपाने के लिये सरकार किसानो को शराबी, बीमारी से त्रस्त, मानसिक रोगी और पारिवारिक कलह से पीड़ित बता रही है । अपने आपको गांव गरीब किसान का मसीहा बताने वाली भाजपा सरकार किसानो के जख्म को दूर करने के स्थान पर लगातार गहरे घाव करती जा रही है । मृत किसानो के परिवारो से मिलकर उनके दुःख में सहभागी होने मैं अपने आम आदमी पार्टी के साथियो के साथ जाता रहा हूँ । आज मानवाधिकार दिवस के दिन विगत दिनों धमतरी के निकट स्थित गांव खपरी में आत्महत्या किये किसान राधेश्याम साहू के घर हम लोग गए थे । स्व साहू जी की विधवा ने अपने पति की लाचारी को व्यक्त किया जिनकी 3 एकड़ की फसल माहो कीट के प्रकोप से 80% से भी अधिक चौपट हो गई लेकिन पटवारी ने खेत का मुआयना कर 45% ही बर्बाद होना रिपोर्ट किया । रु 85000 के बैंक लोन और निजी स्रोतों से लोन लेकर कुल ढाई लाख के कर्ज में डूबे लाचार राधेश्याम जी ने कीटनाशक पीकर अपनी जान दे दी । लेकिन पुलिस ने मौके पर आकर यह रिपोर्ट बनाकर दी कि मृतक शराबी था और नशे की हालत मे उसने धोखे से कीटनाशक का सेवन कर लिया । स्व. राधेश्याम जी की पत्नी का अश्रुपूरित बयान अन्नदाता किसान और छत्तीसगढ़ की महतारी की व्यथा को स्वतः स्पष्ट करता है । क्या यह सरकार महतारी के इन आंसुओ और किसान के जान की कीमत कभी समझ पायेगी ?

Posted by Sanket Thakur on Thursday, December 10, 2015

इसके बाद तो यही कहा जा सकता है कि खामोश, छत्तीसगढ़ में किसानी से किसान आत्महत्या जारी है.

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