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उपन्यास बदलने से ही बनती है फिल्म: विष्णु खरे

रायपुर | एजेंसी: जानेमाने फिल्म समीक्षक और साहित्यकार विष्णु खरे का कहना है कि बॉलीवुड में 100 में से दो फिल्में ही उपन्यास पर बनती हैं. उनमें भी अंग्रेजी उपन्यासों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है. फिल्में हिंदी उपन्यास पर भी बनती हैं, लेकिन कथा-वस्तु में हेर-फेर किया जाता है, वरना फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लग जाएगी.

रायपुर के कालीबाड़ी स्थित डिग्री गर्ल्स कॉलेज में ‘साहित्य और सिनेमा के अंतसर्ंबध’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में खरे ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा, “उपन्यासों पर फिल्में बनती तो हैं लेकिन वो जिस रूप में हमारे सामने आती हैं, वो परिवर्तित होती हैं. अगर असल उपन्यास की कथा को छेड़े बिना फिल्म बने तो प्रतिबंधित हो जाएगी.”

उन्होंने कहा कि फिल्मों की जान पटकथा होती है. बेहतर पटकथा लेखन के लिए साहित्य की जानकारी जरूरी है. फिल्मों में साहित्यिक शब्दों का उपयोग कोई आज की बात नहीं है. बांग्ला जगत का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां फिल्मों की पहचान किसी किताब के नाम से ही मिलती है.

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ उपन्यासों का गढ़ है. यहां ऐसे-ऐसे उपन्यासकार हुए हैं जिनके उपन्यासों पर फिल्म बनाई जाए तो वे सफलता के नए आयाम बुन सकती हैं. यही नहीं, यहां की लोक-संस्कृति भी अभी तक परदे की दुनिया से नदारद है.

खरे ने कहा, “यह दुर्भाग्य की बात है कि देश में बनने वाली 100 फिल्मों में से केवल दो फिल्में ही उपन्यासों पर आधारित होती हैं और जो फिल्में बनती हैं उनकी कहानी में बदलाव कर दिया जाता है.”

उपन्यास आधारित फिल्मों की बात करते हुए उन्होंने कहा कि उपन्यास में कई किरदार होते हैं, जिन्हें अभी तक पहचान नहीं मिली है. शकुंतला पर 70 वर्षो से कोई फिल्म नहीं बनी. इसी प्रकार अगर महाभारत पर सही तरीके से फिल्म बने तो कम से कम 150 करोड़ रुपये में बनेगी.

फिल्मों से जुड़ी विवादित बातों पर उन्होंने ‘3 इडियट्स’ का उदाहरण देते हुए कहा, “बॉलीवुड में उपन्यासों के लेखक की अनुमति के बिना उसके विचार और किरदारों की नकल की जा रही है. यह एक बड़ी समस्या है, जिससे आज का लेखक जूझ रहा है.”

हिंदी साहित्य परिषद के इस आयोजन में और भी कई वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचकों ने अपने विचार रखे.

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