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आजादी के बाद से गिरा रुपया

नई दिल्ली | एजेंसी: आजादी की इस वर्षगांठ पर जब हम अपने देश की मुद्रा रुपये की ओर देखते हैं तो पता चलता है कि भारतीय रुपये का मूल्य आजादी मिलने के समय 1947 में अमेरिकी डॉलर के बराबर ही था. आज डॉलर की कीमत 61.80 रुपये है. इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय रुपये में पिछले 66 वर्षो में डॉलर की तुलना में 62 गुना गिरावट आई है.

भारतीय मुद्रा की स्थिति पिछले दो वर्षो से काफी डावांडोल है. पिछले तीन महीनों से वृद्धि, महंगाई, व्यापार और निवेश से जुड़े आंकड़ों के प्रभाव से रुपये की स्थिति अत्यधिक कमजोर हो गई है.

देश के आर्थिक नीति निर्माताओं के सामने रुपये की अस्थिरता को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है. केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रुपये की अस्थिरता को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं. इन प्रयासों के बावजूद रुपया अस्थिर बना हुआ है. निकट भविष्य में रुपये की अस्थिरता दूर होने के आसार भी नहीं हैं.

एंजेल ब्रोकिंग की गैर कृषि कमोडिटी और मुद्रा की मुख्य प्रबंधक रीना रोहित ने आईएएनएस से कहा, “हमें लगता है कि रुपया और टूटेगा. एक या दो महीनों में यह 63 रुपये प्रति डॉलर के स्तर तक गिर सकता है.” उन्होंने कहा कि रुपये में गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा है. इसने महंगाई बढ़ाई है और आर्थिक वृद्धि को प्रभावित किया है.

स्वतंत्रता के बाद से भारतीय रुपये में लगातार गिरावट देखी जा रही है. पिछले 66 वर्षो में कई भूराजनीतिक और आर्थिक घटनाओं ने रुपये को प्रभावित किया है.

अपना देश 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ और उस समय रुपये की कीमत डॉलर के बराबर थी. देश के ऊपर उस समय कोई विदेशी कर्ज नहीं था. आजादी के बाद भारत ने जन कल्याण और विकास योजनाओं के लिए धन जुटाने की खातिर विदेशों से कर्ज लेना शुरू किया. इसके लिए रुपये के अवमूल्यन की जरूरत पड़ी.

स्वतंत्रता के बाद भारत ने फिक्स्ड रेट मुद्रा व्यवस्था चुना. रुपये की कीमत 1948 से 1966 के बीच 4.79 रुपये प्रति डॉलर हो गई. चीन के साथ 1962 में और पाकिस्तान के साथ 1965 में हुए दो युद्धों का परिणाम यह हुआ कि भारत का बजट घाटा बढ़ गया. इससे बाध्य होकर सरकार ने रुपये का अवमूल्यन किया और डॉलर की कीमत 7.57 रुपये तय की गई.

भारतीय रुपये का संबंध 1971 में ब्रिटिश मुद्रा से खत्म कर दिया गया और उसे सीधे तौर पर अमेरिकी मुद्रा से जोड़ दिया गया. भारतीय रुपये की कीमत 1975 में तीन मुद्राओं -अमेरिकी डॉलर, जापानी येन और जर्मन मार्क- के साथ संयुक्त कर दी गई. उस समय एक डॉलर की कीमत 8.39 डॉलर थी. 1985 में रुपये की कीमत गिरकर 12 रुपये प्रति डॉलर हो गई.

भारत के सामने 1991 में भुगतान संतुलन का एक गंभीर संकट पैदा हो गया और वह अपनी मुद्रा में तीव्र गिरावट के लिए बाध्य हुआ. देश उस समय महंगाई, कम वृद्धि दर और विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा था. विदेशी मुद्रा तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पर्याप्त नहीं थी. इन स्थितियों के तहत रुपये का अवमूल्यन करके उसकी कीमत 17.90 रुपये प्रति डॉलर तय की गई.

वर्ष 1993 भारतीय रुपये के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है. इस वर्ष रुपये को बाजार के हिसाब से परिवर्तनीय घोषित कर दिया गया. रुपये की कीमत अब मुद्रा बाजार के हिसाब से तय होनी थी. इसके बावजूद यह प्रावधान था कि रुपये की कीमत में अत्यधिक अस्थिरता की स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक हस्तक्षेप करेगा. 1993 में डॉलर की कीमत 31.37 रुपये थी.

रुपया 2001 से 2010 के दौरान 40 से 50 रुपये प्रति डॉलर के बीच रहा. अधिकांशत: डॉलर की कीमत 45 रुपये रही. रुपया सबसे ऊपर 2007 में रहा, जब डॉलर की कीमत 39 रुपये रही. 2008 की वैश्विक मंदी के समय से भारतीय रुपये की कीमत में गिरावट का दौर शुरू हुआ.

एक आर्थिक विशेषज्ञ और ब्रोकरेज फर्म केएएसएसए के सलाहकार सिद्धार्थ शंकर ने आईएएनएस से कहा, “भारत अत्यधिक महंगाई के साथ एक विकासशील देश है. मुद्रा का अवमूल्यन सामान्य है. रुपये का अवमूल्यन अच्छा है, लेकिन उसमें अस्थिरता ठीक नहीं है. पिछले कुछ महीनों में रुपये की कीमत में जो अत्यधिक गिरावट देखी गई है, वह ठीक नहीं है.”

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