प्रसंगवश

बस्तर से जॉली एलएलबी तक

कैरेक्टर आर्टिस्ट के रुप में फिल्मों में भूमिका अदा कर रहे दिनेश नाग छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में जन्मे एवं वहीं पर आदिवासी बच्चों के शिक्षण, स्वास्थ्य सहित कई विषयों पर काम कर रही सामाजिक संस्था रामकृष्ण मिशन आश्रम में उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ली. दिनेश को यह पता भी था कि वे किसी सुपरमैन अथवा टॉम बॉय की तरह दिखने वाले व्यक्ति नहीं हैं और ना ही उनका कोई मुंबइया फिल्मी उद्योग में कोई गॉडफादर ही है, बावजूद इसके उन्होंने थियेटर के रास्ते अभिनय यात्रा की शुरुआत की थी और आज रिलीज होने वाली फिल्म जॉली एल.एल.बी-2 में वह सहयोगी अभिनेता के रूप में हम सब को रूपहले पर्दे पर दिखलाई देंगे.

उनका काम कितना गुणवत्तापूर्ण है या अबतक का मुकाम कितना बड़ा, इस पर बहस हो सकती है, किन्तु दिनेश के साहस और लगनशीलता का ही परिणाम है कि उन्होंने मुंबई में होने वाले संघर्ष से मुंह नहीं मोड़ा, जिसके फलन में उनको सधे हुए अभिनेताओं, जिनमें संजय मिश्रा से लेकर अक्षय कुमार शामिल हैं, के साथ काम करने का, देर से ही सही, मौका मिला.

जो भी लोग छत्तीसगढ़ के बस्तर जा चुके हैं, वे जानते ही होंगे कि सुविधाओं का अभाव आज भी वहां घना है और कई स्थानीय प्रतिभाएं केवल इसलिए उभरकर सामने नहीं आ पाती क्योंकि सूचना और रहवासियों के बीच एक लंबी खाई कई वर्षों तक रही है. सूचनाओं के संप्रेषण में एक अघोषित ‘फिल्टर’ हरदम बस्तर और देश के बीच रहा है, जिसे कुछ हद तक हटाने का प्रयास शासन की ओर से अपेक्षाकृत कम ही हुआ है. इंटरनेट क्रांति से लेकर नोटबंदी तक का असर बस्तर पर नकारात्मक ही पड़ता है और बहुतेरे समाज को उससे कोई लेना देना नहीं. बस्तर से निकलकर विभिन्न क्षेत्र में अपना परचम लहराने वाले लोगों पर दण्तेवाड़ा में ही पले-बढ़े साहित्यकार राजीव रंजन ने बहुत ही सार्थक कार्य किया है.

फिल्मकार सुभाष कपूर ने अपने ढंग से छोटे बजट में कुछ प्रासंगिक मुद्दों को अपनी फिल्मों में बिना किसी तामझाम के हास्य का पुट के साथ उठाया है. इसी क्रम में उन्होंने अपनी पहली फीचर फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ में दिनेश को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया था. इसके बाद जॉली एल.एल.बी-2 में भी दिनेश को काम मिलना इस बात की तस्दीक करता है कि फिल्म निर्देशक को उनका काम बेहद पसंद आया है.

मुंबई में भारी संख्या में संघर्ष करने युवा आते हैं और कुछ तो देश के दो प्रतिष्ठित संस्थानों- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एन.एस.डी) और भारतीय फिल्म एवं टेलीविज़न संस्थान (एफ.टी.आई.आई)- से अध्ययन सीख चुके लोग भी शामिल होते हैं.

यह भी सर्वविदित है कि फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाने के उद्देश्य से मुंबई में आने वाले उन सभी युवाओं का संघर्ष लगभग एक जैसा ही होता है, साथ ही स्थापित हो गए लोगों को भी वहां रोज ही अपने होने को प्रमाणित करने के लिए नए संघर्ष से रू-ब-रू होना पड़ता है.

दिनेश पर तो अभिनय का ऐसा भूत सवार था कि अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई नारायणपुर से पूरी करने के बाद उन्होंने सीधे भिलाई आकर नाटकों में काम शुरू कर दिया था. इसके बाद रायपुर में एन.एस.डी. की एक कार्यशाला में उन्हें यह अहसास हुआ कि अभिनेता बनने के लिए उन्हें किसी बड़े शहर की ओर रुख करना पड़ेगा. साल 2004 में दिनेश भोपाल से होते हुए मुंबई पहुंचे और फिर अंतहीन संघर्ष से उन्हें दो-चार होना पड़ा. वे आज भी खुद को संघर्षशील अभिनेता मानते हैं.

जॉली एल.एल.बी-2 की शूटिंग पूरी होने के बाद कुछ महीने पूर्व एक शॉर्ट फिल्म में काम करने के लिए दिनेश रायपुर आये थे तो कुछ मित्रों से चर्चा में उन्होंने फिल्म से जुड़े कुछ रोचक किस्से सुनाए. दिनेश की खुशी देखते ही बन रही थी कि उन्हें छोटे ही सही, रोल तो मिलते ही जा रहे हैं. वे कैरेक्टर आर्टिस्ट हैं और ज्यादातर मुख्य अभिनेताओं के ही आस-पास उनकी भूमिका गढ़ी जाती है. यह उन्हें भलीभाँति पता भी है और उसको जीना ही उनके जीवन का उत्सव है.

फिल्मी दुनिया में काम करने की इच्छा रखने वाले हजारों युवाओं के संघर्ष को ध्यान में रखकर दिबाकर बैनर्जी ने साल 2013 में बनी फिल्म ‘बॉम्बे टॉकीज’ की चार कहानियों में से एक ‘स्टार’ नामक कहानी को निर्देशित किया था. वह कहानी महान फिल्मकार सत्यजीत रे द्वारा लिखित लघु कथा ‘पटोल बाबू फिल्म स्टार’ पर आधारित थी और नवाजुद्दीन सिद्दीकी की अभिनय कला उस फिल्म के अंत में देखने योग्य है, जहां ‘केवल मौन का भी एक संगीत होता है’ का संप्रषण सीधे दिल को छूता है एवं हमारे अवचेतन पर गहरी पैठ बनाता है.

इन सब के बीच, नारायणपुर में सिनमाहॉल के आभाव में वहां के लोग दिनेश की यात्रा के गवाह नहीं बन पा रहे हैं. सिनेमा केंद्रित स्तम्भों में लगातार प्रदेश में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की सिकुड़ती संख्या पर चिन्ता व्यक्त की जा रही है, जिस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए ताकि बस्तर सहित समूचा प्रदेश देश के अन्य भू-भागों के साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान का तादात्म्य स्थापित कर सके. फिलहाल दिनेश की अनथक यात्रा के लिए उन्हें बधाई.

(बस्तर इम्पैक्ट से साभार)

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