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वित्त आयोग: राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ी

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: प्रधानमंत्री मोदी ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशे मान ली है जिससे राज्यों को केन्द्रीय करों में से 32 के स्थान पर 42 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलेगी. इससे राज्यों की आय बढ़ेगी तथा संघवाद को मजबूत किया जा सकेगा. दरअसल, 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को मिलने वाले वर्तमान कर संग्रह के हिस्से में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का सुझाव दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं. मोदी ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है, जब उनकी सरकार सप्ताहांत में अपना पहला पूर्ण बजट पेश करने जा रही है.

केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ा कर 10 प्रतिशत कर दी गई है.

मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में कहा है, “हमने खुले दिल से 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें स्वीकार ली है. हालांकि इससे केंद्र के वित्त प्रबंधन पर भारी दबाव पड़ेगा.”

प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान के मुताबिक, उन्होंने कहा, “14वें वित्त आयोग ने केंद्र सरकार के कर संग्रह में से राज्यों को मिलने वाली हिस्सेदारी में रिकॉर्ड 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी की सिफारिश की थी.”

14वें वित्त आयोग की रपट में बढ़ाई गई हिस्सेदारी के मुताबिक, राज्यों को 2014-15 में 348,000 करोड़ रुपये और 2015-16 में 526,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे.

पीएमओ ने कहा है, “केंद्र सरकार की ओर से योजना और अनुदान आधारित मदद के स्थान पर अब हिस्सेदारी आधारित मदद का प्रावधान किया जा रहा है. इसलिए विभाज्य संसाधनों का 42 प्रतिशत बंटवारा.”

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संवाददाताओं से कहा, “ग्राम पंचायतों और नगर निकायों की मजबूती के लिए कुल कर का 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिए जाने के आलावा एक अतिरिक्त राशि भी 11 राज्यों को आवंटित की गई है. लेकिन इसके बाद भी इन राज्यों में राजस्व घाटे की स्थिति रहेगी.”

सर्वाधिक घाटे वाले राज्यों में विभाजन के बाद का आंध्र प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं, जबकि मणिपुर और नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में कम घाटा होगा.

2015-20 के दौरान की अवधि में राज्यों के राजस्व और खर्चो का आंकलन करने के बाद वित्त आयोग ने इन 11 राज्यों के घाटे की क्षतिपूर्ति के लिए 1.94 करोड़ रुपये की सहायता देने का सुझाव दिया था.

जेटली ने कहा, “राज्य केंद्र पर निर्भर नहीं रह सकते. इससे पूर्व भी अधिकार और नियंत्रण प्रणाली से कुछ फायदा नहीं हुआ. यह सहकारी संघवाद की भावना है, जिसने नीति आयोग के संविधान को मजबूती प्रदान की है.”

उन्होंने कहा, “पूर्व में वित्त आयोग ने राज्यों को दिए जाने वाले करों में बढ़ोतरी का सुझाव दिया था, वह एक से दो प्रतिशत के दायरे में था.”

सरकार ने स्थानीय निकायों को अधिक संसाधन देने पर भी आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर ली है.

पंचायतों और नगरपालिकाओं सहित सभी स्थानीय निकायों को 31 मार्च, 2020 को समाप्त होने वाले पांच वर्ष की अवधि के लिए कुल 288,000 करोड़ रुपये अनुदान का प्रावधान किया गया है.

भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई के पूर्व गवर्नर वाई.वी. रेड्डी की अध्यक्षता वाले आयोग को अंशकालिक सदस्य अभिजित सेन ने एक असहमति पत्र भेजा है. वह प्रथम वर्ष में विभाज्य पूल के 38 प्रतिशत की हिस्सेदारी देने की सिफारिश की थी.

मौजूदा 32 प्रतिशत हिस्सेदारी में हुई भारी वृद्धि, राज्यों की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी की मांग से थोड़ी ही कम है. वित्त आयोग के सिफारिशों के अनुसार केैन्द्रीय कर संग्रह में से राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ा देने से केन्द्र के वित्त प्रबंधन पर प्रभाव पड़ेगा. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे सहकारी संघवाद बताया है.

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